रविवार, मई 20, 2012

एक हिन्दी कविता

सावन में प्यार
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आग लगे
इस सावन को
तन मन के साथ
घर की छत पर भी
चढ़ आता है ।

आसमान में आज फिर
बादल घुमड़ आए हैं
जल्दी खत्म करो
प्यार की बातें
जम कर बरस गया तो
चू जाएगी छत
अकेली है घर में अम्मा
कौन चढ़ेगा छत पर
बिगड़ जाएगी गत ।

तन की नहीं
मुझे चिंता है
चूल्हे की
कैसे जलेगी
भीगी लकड़ियां
धुआंएंगी
अम्मा की आंखों
जो बरस गया मोतिया
थमेगा नहीं
तुम तो थमो
ये प्यार व्यार
फिर कर लेंगे
यदि इस बार
सावन से बच लेंगे !

मुझे बहुत आते हैं
सावन के गीत
फिर कभी सुनाऊंगी
अभी तो छोड़ो
पहले घर बचाऊंगी !

मेहंदी का क्या
क्या सावन
क्या माघ
रच ही जाएगी
गोबर थाप कर
धो लूंगी हाथ
मेहंदी तो
उस के बाद भी
खूब रच जाएगी
तब तक क्या
उम्र निकल जाएगी ।

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