गुरुवार, दिसंबर 31, 2009

छम छम करती लोहड़ी आई

१३ छम छम करती लोहड़ी आई
राजस्थानी रंग में लोहड़ी पर्व
'आपणी भाषा-आपणी बात' में आज पढ़ें 'छम-छम करती आई लोहड़ी'। राजस्थानी भाषा के सुप्रसिद्ध कवि ओम पुरोहित 'कागद' ने भास्कर के अनुरोध पर यह लेख लिखकर राजस्थानी और पंजाबी संस्कृति के अपनेपन को भी दर्शाया है।~ कीर्तिराणा ओमपुरोहित 'कागद' रो जलम ५ जुलाई, १९५७ नै केसरीसिंहपुर मांय हुयो। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर रै सुधीन्द्र पुरस्कार अर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रै गणेशीलाल व्यास 'उस्ताद' पुरस्कारां रा विजेता श्री कागद राजस्थानी अर हिन्दी रा नांमी कवि हैं। राजस्थान शिक्षा विभाग मांय चित्रकला अध्यापक अर अबार जिला साक्षरता समिति, हनुमानगढ़ रा जिला समन्वयक। राजस्थानी अर हिन्दी मांय आपरी १३ पोथ्यां छपी हैं। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर री मासिक पत्रिका 'जागती-जोत' रो आप दोय बरस तक संपादन कर्यो। आपरी कवितावां रा अंग्रेजी, हिन्दी, पंजाबी, गुजराती अर मराठी में भी अनुवाद हुया है। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- १३/१/२००९
छम छम करती लोहड़ी आई-
ओम पुरोहित 'कागद'
राजस्थानी धरा उच्छबां री खान। बा'रा म्हीनां उच्छब। देई-देवतां रा। भौमिया-पितरां रा। मौज-मस्ती रा। रीत-प्रीत रा। रुत-कुदरत रा। खेती-बाड़ी रा। रास-रम्मत रा। तिथ-तिंवारां रा। म्हीनै में तीसूं दिन तिंवार। अै तिंवार मिनखाजूण में मस्ती रा रंग भरै। इस्यो ई एक तिंवार, सकरांत रो तिंवार। जिणनै मकर-सक्रांति भी कैवै। सूरज भगवान माघ म्हीनै में धरती रै दिखणाधै अधगोळ सूं उतराधै अधगोळ में आवै। मकर रासि सूं मेळ करै। इणी दिन उतराधै अधगोळ में गरमी सरू हुवै। मानता है कै इणी म्हीनै सूत्या देव जागै। देवै जका देवता। देव सरीखी परकत, मतलब कुदरत मिनखां नै सौरफ री सौगात देवै। ठंड सूं पिंड छु़डावै। गरमी पसारै। फसलां माथै कूंपळां फूटै। फूल आवै। इणी कोड में सकरांत रो तिंवार आखो राजस्थान मनावै।सुहागणां तिल सकरिया लाडू, घेवर, मोतीचूर रै लाडू माथै रिपिया मैल'र सासू नै परोसै। सासू आसीस देवै। भावज देवर नै घेवर अर जेठ नै जळेबी परोसै। सुहागणां कोई न कोई आखड़ी, मतलब संकळप लेय'र किणी जिन्स रा चवदै नग जेठाणी, देवराणी, नणंद, काकी सासू, भुआ सासू, मासी सासू, मामी सासू, बडिया सासू अर बामणां नै दान करै। सुरजी री पूजा करै। भोजायां सासरै रै टाबरां नै मूंफळ्यां, रेवड़्यां, गज्जक अर तिल सकरिया बांटै। सनातनी पख बतावै कै इण दिन किरसणजी नै मारण सारू कंश लोहिता नांव री राखसणी नै गोकळ भेजी। लोहिता नै किरसणजी खेल-खेल में ई पाधरी करदी। इण घटना री याद में लोहड़ी मनाइजै। सिंधी समाज भी सकरांत सूं एक दिन पै'ली इण तिंवार नै 'लाल लोही' रै मिस मनावै।राजस्थान अर पंजाब रा आपस में रोटी-बेटी रा नाता। आं नातां साथै संस्कृति अर भाषा रा मेळ-मिलाप होया। इणी रै पांण पंजाब सूं वैसाखी अर लोहड़ी रा तिंवार राजस्थान पूग्या। आज आखै राजस्थान में मकर सक्रांति सूं एक दिन पै'ली लोहड़ी रो तिंवार मनाइजै। लोहड़ी रै दिन, दिनूगै-दिनूगै बास-गळी रा टाबर भेळा होवै। घरां सूं लकड़ी-छाणां मांगै। उछळता-कूदता गावै- ''लोहड़ी-लोहड़ी लकड़ी, जीवै थारी बकरी, बकरी में तोत्तो, जीवै थारो पोत्तो, पोतै री कमाई आई, छम-छम करती लोहड़ी आई।'' लकड़ी-छाणां भेळा कर'र रातनै चौपाळ में लोहड़ी मंगळावै। लोहड़ी री धूणी माथै आखो गांव भेळो हुवै। सिकताव करै। मूंफळी, रेवड़ी, गज्जक अर तिल-सकरिया खावै। लोहड़ी री आग में तिल अरपण करै। पंजाबी लोग-लुगायां गावै- ''आ दलिदर, जा दलिदर, दलिदर दी जड़ चूल्हें पा।'' इणी भांत राजस्थानी लोग बोलै- ''तिल तड़कै, दिन भड़कै।''पंजाबी री लोककथा है। एक बामण रै कुंवारी कन्या ही। नांव हो सुन्दर-मुन्दरी। बा भोत फूटरी ही। उणनै एक डाकू उठाय'र लेयग्यो। दुल्लै भट्टी नै ठाह पड़ी। दुल्लो भट्टी जको मुसळमान हो। बण बीं कन्या नै डाकू सूं छु़डाई अर एक बामण रै बेटै साथै परणाई। साथै सेर सक्कर भी भेंट करी। इण भलै मिनख नै आज भी लोग याद करै। टाबर दुल्लै भट्टी रा गीत गा-गा'र लोहड़ी सारू बळीतो भेळो करै- ''सुंदर-मुंदरिये...हो, तेरा कौण बिचारा....हो, दुल्ला भट्टी वाळा....हो, दुल्ले धी ब्याही...हो, सेर सक्कर पाई...हो, कु़डी दा लाल पिटारा...हो।''जिकै पंजाबी घर में नूंवी बीनणी आवै, बीं में न्यारी-निरवाळी लोहड़ी मनावै। बीनणी रै पी'रै सूं मूंफळ्यां, रेवड़्यां, गज्जक, तिलकुट्टा, घेवर, फीणी आवै। लोहड़ी री धूणी माथै बांटीजै। लोहड़ी रा गीत गाईजै। अजकाळै नूंवा लटका-झटका भी बपराईजै। डी.जे. लगाय'र घर रा सगळा जणां नाच-तमासा करै।
आज रो निवाणां-धरम ठिकाणां।नीर ढलान की ओर और धर्म अपनी ठौर।जल की हिफाजत के लिए उपयुक्त स्थान कुआँ है। उसी प्रकार धर्म या पुण्य भी उचित पात्र और स्थान को देखकर किया जाना चाहिए, अन्यथा उसका फल उलटा हो जाता है।संसार में प्रत्येक वस्तु के लिए अपनी ठौर निर्धारित है।

सवाल आपणा अजब-गजब

आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- १०/१/२००९
सवाल आपणा अजब-गजब
-ओम पुरोहित 'कागद'
जठै जकी भासा में भणाई हुवै बठै उणीज भासा में ग्यान-विग्यान अर गणित हुवै। कोई भासा खुरण ढूकै तो उणरो व्याकरण, ग्यान-विग्यान अर गणित भी सांवटीजण लागै। आपणै देस में संस्कृत भासा बौवार में नीं रैयी तो वैदिक गणित अर ज्योतिर्विग्यान भी अदीठ हुयग्या। आजादी सूं पै'ली राजस्थान री रियासतां में भणाई राजस्थानी भासा में होवती। उण घड़ी गणित, विग्यान, सामाजिक ग्यान, इतिहास आद सगळा राजस्थानी में होवता। अंग्रेज आया तो भणाई में पच्छम री रेळपेळ होयगी। आजादी पछै तो जाबक ई बदळाव आयग्यो। पण बूढै-बडेरां री जुबान माथै हाल मुहारणी-पावड़ा तिरै। टाबरां नै रमावता-बिलमावता ऐ डैण आज भी बिसरी बातां सुणावै। टाबरां नै बुलावै- 'पन्दरै ऐकै पन्दरै, पन्दरै दूणा तीस। तिंयाड़ा-पैंताळा, चौकां साठ। पांज पिचेतर, छक्कड़ा नब्बै। सत्त पिचड़ोत्तर, अट्ठां बीसे। नब्बड़ पैंतीसे, पंदरा दहाया डोढ सै!'गिणती-पहाड़ां री राग सुणनजोग हुवै। राग में गायोडा पहाड़ा चटकै ई कंठां हुवै। टाबरां सूं कटवां पहाड़ा पूछै, 'बताओ किसै पहाड़ै में तीनूं भाई एकसा?' टाबरां री बोली बंद। तो खुद ई बतावै डोकरो, सैंतीस रै पहाड़ै में एका, दूवा अर तीया एक सा भाई हुवै। सैंतीस तीया एक सौ इग्यारा (१११), सैंतीस छक्का दोय सौ बाईस (२२२) अर सैंतीस नौका तीन सौ तैंतीस (३३३)। पण अब कुण याद करै सैंतीस तक रा पहाड़ा। पाव, आधो, पूणो, सवायो, डोढो, ढूंचो तक रा पहाड़ां री रागां न्यारी-निरवाळी। राजस्थान री पौसाळां सूं राजस्थानी भासा अळगी होयी तो ऐ रागां भी जावती रैयी। अब री भणाई जूना लोगां रै अर जूनी पढाई आज रै टाबरां रै भेजै को ढूकै नीं। राजस्थानी रो गणित तो और भी निरवाळो। कटवां पहाड़ा अर कटवां गिणती रा जोड। अल-जबर, अकल-चरख अर लीलावती रा सवाल। अल-जबर में बीज गणित रा सवाल हुवै। अल-जबर स्यात अंग्रेजी आळो 'एलजेबरा' ई है। अल-जबर रा दोय सवाल आपरी निजर-
(१)आधी रोकड़ ब्याज में, चौथाई बाजार।हंसा-पांती सौळवां, पोतै पांच हजार।।(२)आधी पड़ी कीचड़ में, नवों भाग सींवार।बावन गज बारणै पड़ी, कैवो सिल्ला विस्तार।।इणी भांत अकल-चरख रा सवाल है। आं सवालां नै सुणतां अकल चरखै चढ़ जावै। ऊथळो ढूंढण में भोडकी भुंवाळी खावण लागै। दोय सवाल देखो-
(१)एक लुगाई पांच सेर सूत लेय'र हाट माथै गई। परचूणियै सूं बोली, म्हनै पांच सेर सूत सट्टै पांच सेर परचूण इण भांत देयद्यो-
सूत सवाई सूंठ दे, आधी दे अजवाण।घिरत बराबर तोल दे, दूणो दे मीठाण।।
(२)एकर री बात। सौदागर री नार दरपण में मूंढो देख हार पैर्यो। हार दाय नीं आयो। उण हार नै तोड बगायो। हार में आधा अटक्या। सेज में पन्दरा पटक्या। गोदी में रैया चाळीस। पल्लै में रैया सवाया। तीजो भाग पड़्यो भू पर। हिस्सा नौ का पता न लाग्या। गणित सार में जे हो चतर तो बताओ, हा कित्ता मोती?अकल-चरख रा सवाल तो म्हे अंवेर लिया। ऊथळा पण थे सोधो। कीं भोडकी पाठकां नै भी घुमावणी चाईजै। लीलावती रा कीं सवाल भी अंवेरण लागर्या हां। उडीक करो। आपरै औळै-दोळै जे अकल-चरख, अल-जबरा अर लीलावती रा सवाल लाधै तो अंवेरो अर भेजो।
आओ, छेकड़ में गणित री एक आडी बांचां-एक घरां घणा बटाऊ आया। मनवार होयी। बेळू, मतलब रात रा जीमण पछै पोढण री बेळ्यां आई। मांचा कमती पड़ग्या। दोय-दोय बटाऊ भेळा सोवै तो एक मांचो बधै। न्यारा-न्यारा सोवै तो एक बटाऊ बधै। बताओ कित्ता मांचा अर कित्ता बटाऊ?ल्यो, आडी रो पडूत्तर तो बांच ई ल्यो- तीन हा मांचा अर च्यार हा बटाऊ।
आज

संचै तीतर खाय, पापी रो धन परळै जाय।चींटी संचय करे, तीतर खाए, पापी का धन यों बह जाए।पापी का धन बुरे कामों ही खर्च होता है।

बोल्यां है मिणियां,माळा राजस्थानी

आपणी भाषा- आपणी बाततारीख- २५/१/२००९
बोल्यां है मिणियां,माळा राजस्थानी

-ओम पुरोहित 'कागद'
नदियां रै जळ सूं ई समंदर भरीजै। भरियो समंदर ई सोवणो लागै। बिना जळ तो समंदर एक दरड़ो। मोटो समंदर बो ईज। जकै में घणी नदियां मिलै। भासा भी समंदर होवै। बोलियां होवै नदियां। बा ईज भासा लूंठी जकी में घणी बोलियां। आ बात बतावै भासा विग्यानी। आपरी निजर है कीं भासा तणी बोलियां। उड़िया-24, बंगाली-15, पंजाबी-29, गुजराती-27, नेपाली-6, तमिल-22, तेलगु-36, कन्नड़-32, मलयालम-14, मराठी-65, कोंकणी-16, हिन्दी-43, अंग्रेजी-57 अर आपणी राजस्थानी में 73 बोलियां। अब बताओ दिखांण कुणसी भासा लूंठी? किणी भासा रो सबदकोस बोलियां रै सबदां री भेळप सूं सामरथवान बणै। जकी भासा में बोलियां कम। उणरो सबदकोस छोटो। आपणी मायड़भासा राजस्थानी रो सबदकोस दुनिया रो सै सूं मोटो। राजस्थानी भासा में एक एक सबद रा 500-500 पर्यायवाची। एक सबद रा इत्ता पर्यायवाची किणी भासा में नीं लाधै। भासा विग्यानी जार्ज ग्रियर्सन 'लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' में, डॉ. एल.पी. टेस्सीटोरी 'इंडियन एंटीक्यूवेरी' में अर डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी 'पुराणी राजस्थानी' में राजस्थानी नै दुनिया में सैसूं बेसी ठरकै आळी भासा बताई है।हरेक भासा में बोलियां होवै। एक भासा मुख सुख सूं बोलीजै। एक भासा बोली री ओळ में बोलीजै। पण अकादमिक भासा रो ठरको न्यारो। हिन्दी तो घणा ई लोग बोलै। हरेक री हिन्दी न्यारी-न्यारी। पण भणाई में पूरै देस री एक ई हिन्दी। जकी में पोथ्यां छपै। बा हिन्दी एक। आपणै पड़ोसी पंजाब नै ल्यो। पंजाब री राजभासा पंजाबी। पंजाबी में पटियाळवी, दोआबी, होशियारपुरी, मलवई, मांझी, निहंगी, भटियाणी, पोवाधि, राठी, गुरमुखी, सरायकी आद 29 बोलियां। पण बठै जका राजकाज रा दफ्तरी हुकम, अखबार-पत्रिकावां अर भणाई री पोथ्यां निकळै, बै एक इज भासा में निकळै। बा है मानक पंजाबी। राज रा हुकम सूं ई किणी भासा रो मानक थरपीजै। इकसार कायदो बणै। जकै दिन आपणी राजस्थानी राजकाज री भासा थरपीजसी। उण दिन मानक राजस्थानी भी थरपीजसी। सगळै दफ्तरां, अखबारां, पत्रिकावां अर पोसाळां री पोथ्यां में एक ई भासा चालसी। बा होसी मानक राजस्थानी। जद तक ओ काम नीं होवै, बठै तक लोग आप-आपरी बोली में लिखै। इण में हरज भी नीं है। अब देखो, पंजाब रै हर अंचल में न्यारी-न्यारी बोलियां बोलीजै। पण विधानसभा, कोट-कचे़ड्यां, पोसाळां, जगत-पोसाळां अर अखबार-पत्रिकावां में राज री थरपियोड़ी मानक पंजाबी ई बपराइजै। पंजाब रै भी हरेक लेखक री भासा में उणरै अंचल री महक भी आयबो करै। आवणी जरूरी है। इणसूं भासा रो फुटरापो बधै। आपणै राजस्थानी लेखकां री भासा में भी आपरै अंचल रो लहजो झलकबो करै। आपां हरेक अंचल री भासा रो सवाद चाखां। तो ठाठ ई न्यारा। बगीचै री सोभा भांत-भंतीला फूलां सूं ई बध्या करै। एक ई रंग-सुगंध रा फूलां रो किस्यो मजो।राजस्थानी में भी मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाती, वागड़ी, हाड़ोती, भीली, ब्रज अर मारवाड़ी समेत 73 बोलियां। आं सगळी बोलियां नै भेळ'र ई राजस्थानी भासा बणै। जकी भासा में जित्ती बेसी बोलियां, बित्ता ई क्रिया रूप। क्रिया विशेषण, कारक। विशेषण पर्यायवाची होया करै। हिन्दी में 'है' होवै, पण राजस्थानी में 'है', 'सै', 'छै', 'छ' आद कई रूप। हिन्दी में आपां कैवां- आपका। पण राजस्थानी में आपरो, आपनो, आपजो अर आपगो मिलै। राजस्थानी में कई जग्यां 'स' नै 'ह' बोलै। जियां साग नै हाग। सूतळी नै हूतळी। सीसी नै हीही। सासू नै हाहू। सात नै हात। अर सीरै नै हीरो। कोलायत सूं जैसलमेर तक री पट्टी नै मगरो कैवै। ल्यो मगरै री बात बताऊं। दोय मगरेची बंतळ करै--होनिया, हुणै है कांई?-हां, हूणूं हूं नीं, हैंग बातां।-होनिया यार, हाहू नै हौ बोरी हक्कर होमवार नै भेजणी है। बोरी हीड़ दे नीं। लै हूवो-हूतळी।-हूं बी हरहूं रै तेल री हो हीही हूहरै नै भेजणी है। म्हनै तो ओहाण ई नीं।अर अबार सुणो जनकवि कन्हैयालालजी सेठिया री कविता री ऐ ओळ्यां-
मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, वागड़ी, हाड़ोती मरुवाणी,सगळां स्यूं रळ बणी जकी बा, भासा राजस्थानी।रवै भरतपुर अलवर अलघा, आ सोचो यांताणी!हिन्दी री मा सखी बिरज री, भासा राजस्थानी।जनपद री बोल्यां है मिणियां, माळा राजस्थानी।
आज रो औखांणो
बोलै ज्यांरा बिकै बूमड़ा*, नींतर जवार पड़ी खोखा खाय।बोले जिसके बिकें बूमड़े, नहीं तो ज्वार पड़ी रह जाय।वाचाल व्यक्ति केवल अपनी जीभ के जोर पर बेइंतहा लाभ उठाता है, वरना चुप रहने वालों का अच्छा माल भी बिन बिका पड़ा रहता है।*अनाज के ऊपर वाले छिलके।