रविवार, जनवरी 31, 2010

ओम पुरोहित कागद की राजस्थानी कविताएं

१. मां

घर के अन्दर
एक जुदा घर
बसाए रखती है
मेरी मां

दमे से
उचाट हुई
नीन्द से उठकर
देर रात तक
समेटती रहती है
अपनी तार-तार हुई
सुहाग चूनरी.

बदलती रहती है ्कागज
हरी काट लगे
सुहाग-कङलों
रखङी-बोरियै-ठुस्सी के
पुडियों का
अमूमन हर रात.


२. लोकराज

रामलाल !
तुम गाय जैसे आदमी हो
इसलिए
घास खाओ.

वो बिचारा
शेर जैसा आदमी है
इसलिए मांस खाएगा
तुम्हारा.

देखा !
कोई भुखा नहीं सोता
लोकराज में.

३. दुनिया

बहुत छोटी है
यह दुनिया
आंख खोलें
तो दिखे
बन्द करें तो
अदीठ !


४. केवल में जानता हूं

अपनी
जमीन से
जुङा रहना
कितना लाजमी है
ये आप जानते हैं
या फिर मैं

पर
मेरे पांवों तले
जमीन कितनी
चिकनी है
फ़िसलने का
कितना खतरा है
केवल में जानता हूं
आप कहां ?

अनुवाद: डॉ. मदन गोपाल लढा



५. सर तक

पानी पहुंच जाने के पश्चात
हाथ-पांव मारने में
क्या सार है ?
ऐसी स्थिति में
बचने और बचाने की
आशा करना ही बेकार है ।

हवा में नमी देखकर ही
चेत जाना चाहिए
कि आने वाले समय में
दुर्घट घट सकता है ।
पानी सीधा ही कब पहुचा था
तुम्हारी नाक तक
पहले जरूर आया होगा
पांवों तक
तो पांवों से ले कर सिर तक
पानी की यात्रा
तुम्हारी मर्जी से हुई
इसे स्वीकारो,
तो पानी का दोष कहां
और आप निर्दोष कहां ?
पानी अपनी यात्रा में
बढ़ेगा ही
आप किसी के सामने
यदी घोड़ा बन जाएं
तो वह चढ़ेगा ही ।

अनुवाद : मोहन आलोक

मंगलवार, जनवरी 12, 2010

कालीबंगाः कुछ चित्र

1
इन ईंटों के
ठीक बीच में पडी
यह काली मिट्टी नहीं
राख है चूल्हे की
जो चेतन थी कभी
चूल्हे पर
खदबद पकता था
खीचडा
कुछ हाथ थे
जो परोसते थे।


आज फिर
जम कर हुई
बारिश
पानी की चली
लहरें
कालीबंगा की गलियों में
लेकिन नहीं आया
भाग कर
कोई बच्चा
हाथों में लेकर
कागज की नाव
हवा ही लाई उडाकर
एक पन्ना अखबार का
थेहड को मिल गया
मानवी स्पर्श।

3
थेहड में सोए शहर
कालीबंगा की गलियाँ
कहीं तो जाती हैं
जिनमें आते जाते होंग
लोग
अब घूमती है
सांय-सांय करती हवा
दरवाजों से घुसती
छतों से निकलती
अनमनी
अकेली
भटकती है
अनंत यात्र में
बिना पाए
मनुज का स्पर्श।

4
न जाने
किस दिशा से
उतरा सन्नाटा
और पसरता गया
थिरकते शहर में
बताए कौन
थेहड में
मौन
किसने किसे
क्या कहा - बताया
अंतिम बार
जब बिछ रही थी
कालीबंगा में
रेत की जाजम।

5
कहाँ राजा कहाँ प्रजा
कहाँ सत्तू-फत्तू
कहाँ अल्लादीन दबा
घर से निकलकर
नहीं बताता
थेहड कालीबंगा का
हड्डियाँ भी मौन हैं
नहीं बताती
अपना दीन-धर्म।

6
इतने ऊँचे आले में
कौन रखता पत्थर
घडकर गोल-गोल
सार भी क्या था
सार था
घरधणी के संग
मरण में।
ये अंडे हैं
आलणे में रखे हुए
जिनसे
नहीं निकल सके
बच्चे
कैसे बचते पंखेरू
जब मनुष्य ही
नहीं बचे।

7
मिट्टी का
यह गोल घेरा
कोई मांडणा नहीं
चिह्न है
डफ का
काठ से
मिट्टी होने की
यात्र का।
डफ था
तो भेड भी थी
भेड थी
तो गडरिए भी थे
गडरिए थे
तो हाथ भी थे
हाथ थे
तो सब कुछ था
मीत थे
गीत थे
प्रीत थी
जो निभ गई
मिट्टी होने तक।
राजस्थानी से अनुवाद - मदन गोपाल लढ़ा


सोमवार, जनवरी 11, 2010

बीकानेर राज थापणा उच्छब : आखाबीज

२२ बातां रुळगी भाषा लारै
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- २२/४/२००९
बातां रुळगी भाषा लारै
-ओम पुरोहित कागद
राजस्थानी संस्कृति रा ठरका निराळा। संस्कृति पण कांण राख्यां। कांण रैवै राख्यां। हाल घड़ी बडेरां कांण राख राखी है। पण कीं अरथां में मोळी पड़ती लखावै। सरूआत आंगणै सूं। आंगणै सूं सबद खूट रैया है। काको, मामो, मासो, फूंफो, कुलफी आळै भेळो अंकल। मामी, मासी, भूआ, काकी, नरसां भेळी अंटी बणगी। देखतां-देखतां ई आपणी संस्कृति खुर रेई है। ढाबै कुण? मोट्यार तो अंग्रेजी रा कुरला करै। सो कीं भूल'र माइकल जै सन रा नातेदार बणन ढूक्या है।बात नातां-रिस्तां री। नातेदार बै जका आपरी पांचवीं पीढी सूं पैली फंटग्या। पण भाईपो कायम। रिस्तेदार बो जकै सूं आपरो खून रो रिस्तो। यानी चौथी पीढी सूं लेय'र आप तांई। गिनायत कैवै खुद रै गोत नै टाळ आप री जात रै दूजै लोगां नै। जिण सूं आपरा ब्याव-संबंध ढूक सकै। कड़ूंम्बो कैवै दादै रै परिवार नै। लाणो-बाणो हुवै खुद रो परिवार। गनो होवै संबंध। जियां म्हारी छोरी रो गनो व्यासां रै ढूक्यो है। तो ओ होयो गनो। छोरै अर छोरी रै सासरै आळा होया सग्गा। ऐ बातां अब कुण जाणै?आजकाळै कीं रिस्ता-नाता तो इलाजू कळा जीमगी। कूख मौत होवण सूं काका-काकी, बाबो-बडिया, भाई-भौजाई, मासो-मासी, फूंफो-भूआ, नणद-नणदोई, जेठ-जेठाणी, देवर-देराणी, काकी सासू, बडिया सासू, भूआ सासू, मासी सासू, मामी सासू जै़डा सबद आंगण में लाधणा दौ'रा होग्या। जद ऐ नामी रिस्तेदार, नातेदार अर गिनायतिया ई नीं लाधसी तो टाबरियां री ओळ कठै।भेळप अर ऐ कठ राजस्थान्या री आण। पण अब तो ब्याव रै तुरता-फुरती न्यारा होवण री भावना। कुण जाणै कै देवर रो छोरो देरुतो, छोरी देरुती, जेठ रो बेटो जेठूतो, बेटी जेठूती, नणद रा बेटा-बेटी नाणदो अर नाणदी, काकै अर भूआ रा बेटा-बेटी, भतीजा-भतीजी, आजकाळै एक छोरै रो चलण। छोरी तो होवण ई नीं देवै। एक छोरै रै एक छोरो। बाकी रिस्तां रै लागै मोरो। आ होयगी भावना। घणकरै दिनां में टाबर पूछसी- 'पापा ये भूआ और फूंफा या होता है? मासा-मासी किसे कहते हैं?' ना साळा-साळी रैसी, ना मासा-मासी अर ना मामा-मामी। काका-काकी, भूआ-फूंफा अर बाबा-बडिया सोध्यां ई नीं लाधैलादूसरो ब्याव करणियो दूजबर, किणी रै बिना ब्याव बैठणो, चू़डी पैरणो बजै। इण नै नातो कैवै। नातै जावण आळी लुगाई नै नातायत। नातै गयोड़ी लुगाई रै लारै आयोडै टाबर नै गेलड़ कैवै। जद रिस्ता-नाता, गन्ना, अर कड़ूम्बै रो ग्यान नीं तो संस्कारां रो ध्यान कठै। बडै रै पगाणै बैठणो, सिराणै नीं। भेळा जीमतां टाबर पछै जीमणो सरू करै पण चळू पैली करै। बडेरो आदमी जीमणो पैली सरू करै पण चळू छेकड़ में करै। सवारी माथै लुगाई लारलै आसण बैठै। आगलै पासै बैन, भौजाई, मा, दादी, काकी, बडिया, भूआ आद बैठै। अब पण ऐ बातां तो भाषा रै लारै ई रुळगी। मायड़ भाषा नै मानता मिलै तो पाछी बावड़ै। अब बांचो रिस्ता जाणण री दोय आड्यां-
(१)पीपळी रै चोर बंध्यो, देख पणियारी रोई।
काईं थारै सग्गो लागै, काईं लागै थारै सोई।।
नीं म्हारै सग्गो लागै, नीं लागै म्हारै सोई।
ईं रै बाप रो बैन्दोई, म्हारै लागतो नणदोई।। (बेटो)
(२)जांतोड़ा रै जांतोड़ा, थारै कड़ियां लाल लपेटी।
आ आगलै आसण बैठी, थारै बैन है का बेटी।।
नीं म्हारै आ बैन है, नीं है आ म्हारी बेटी।
ईं री सासू अर म्हारी सासू, है आपस में मा-बेटी।। (बेटै री बू)

रविवार, जनवरी 10, 2010

दुरगा अष्टमी री धिराणी महागौरी

३ दुरगा अष्टमी / श्रीरामनमी
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- ३/४/२००९
दुरगा अष्टमी री धिराणी महागौरी-

ओम पुरोहित कागद
आज आठ्यूं-नोम्यूं भेळी। आठवों-नौवों नोरता भेळा। आज माताजी रै दो सरूपां री पूजा। महागौरी अर सिद्धिदात्री। आठ्यूं बजै दुरगा अष्टमी। नोम्यूं बजै महाष्टमी।माता दुरगाजी रो आठवों रूप महागौरी। आप रो रूप जबर गोरो। आप रो पैराण भी गोरो। धोळा गाभा। आपरी उमर आठ बरस री मानीजै। दुरगा अष्टमी री धिराणी महागौरी। आपरै च्यार हाथ। जीवणै पासै रै एक हाथ में तिरसूळ। दूजो हाथ वरदान देवण री छिब में। डावै पासै रै एक हाथ में डमरू। दूजो हाथ डर भगावण री छिब में। महागौरी री सवारी बळद। आपरी पूजा सूं तुरता-फुरत अर ठावा फळ मिलै। फळ पण अचूक अर बिना मांग्यां मिलै। इणां री ध्यावणां सूं पापां रो हरभांत सूं कल्याण होवै। भगतां रा पुरबला पाप मिटै। आगोतर सुधरै। परलै लोक री सिध्यां मिलै। जका भगत दूजां नै टाळ फगत महागौरी नै ध्यावै, वांरा मनोरथ फळै। इंछाफळ मिलै।महागौरी पूजा आठ्यूं नै होवै। इण दिन ध्यावणिया वरत करै। आठ्यूं नै कढाई भी बणै। कढाई में रंधै सीरो। सीरै रो माताजी रै भोग लागै। आखै दिन श्री दुर्गा-सप्तसती रो पाठ होवै। इण दिन कुंवारी छोर्यां री पूजा होवै। कन्यावां नै कंजका रूप पुजीजै। पग धोय जीमाईजै। चूनड़ी-गाभा अर दखणा भेंटीजै।
अष्ठसिद्धि अर नवनिधि री दाती सिद्धिदात्री
माता जी रो नोवों सरूप सिद्धिदात्री। संसार में नव निध्यां अर अष्ठ सिध्यां बजै। आं नै देवण आळी माताजी सिद्धिदात्री। निध्यां अर सिध्यां री भंडार। सामरथवाण। आद देव स्यो भी सिध्यां बपरावण सारू आं री सरण गया।जगजामण मात भवानी सिद्धि दात्री रै च्यार हाथ। जीवणै हाथां में गदा अर चक्कर। डावै हाथां में पदम अर शंख। सिर माथै सोनै रो मुगट। गळै में धोळै फूंलां री माळा धारै। कमल पुहुप आसन। इणी कारण एक नांव कमलासना। मात भगवती सिद्धिदात्री री ध्यावना सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता, असुर अर माणस सगळा करै। नौवैं नोरतै आं री खास पूजा। खास अराधना। नौंवै, नोरतै री पूजा होवै। नूंत जीमाईजै। दान-दखणां देईजै। इण कारण ओ दिन कुमारी पूजा रो दिन बजै। जपियां, तपियां, हठियां, जोधावां, छतर्यां अर जोग्यां री साधना फळै। मनवांछत फळ मिलै। अलभ लभै। भगतां में सो कीं करण री सहज सगती संचरै।
रामनमी सांवटै पूरबलां रा पाप
आज ई श्रीरामनमी भी। आज रै ई दिन पुनरवसु नखत में भगवान विष्णु आयोध्या में राजा दशरथ अर माता कौशल्या रै घरां श्रीराम रूप औतार लियो। श्रीराम औतार रो दिन होवण रै पाण ई आज रो दिन रामनमी। आज रै दिन विष्णु भगवान रा भगत विष्णुजी नै धोकै। बरत करै। खास पूजा करै। इण दिन झांझरकै ई संपाड़ा कर पूजा सारू ढूकै। घर रै उतराधै पसवाड़ै पूजा मंडप बणावै। ऊगतै पासै शंख, चक्कर अर हनुमानजी री थापना करै। दिखणादै बाण, सारंग, धनख अर गरूड़जी। पच्छम में गदा, खड़ग अर अंगदजी। उतराधै पदम, साथियो अर नीलजी थरपै। बिचाळै च्यार हाथ री बणावै वेदका। वेदका माथै सोवणां-मोवणा गोखड़ा अर तोरण सजावै। इण मोवणै मंडप में श्रीराम री थापना करीजै। कपूर अर घी रो दीयो चेतन करै। दीयै में एक, पांच या इग्यारा बाट धरीजै। थाळी में धूप अगर, चनण, कमल पुहुप, रोळी-मोळी, सुपारी, चावळ, केसर अर अंतर धर'र आरती करीजै। आखै दिन श्रीरामचरितमानस रा अखंड पाठ चलै। आठ्यूं-नोमी भेळी होयां विष्णु भगत बरत दस्यूं नै खोलै। मानता कै रामनमी रो बरत-पूजा करणिया पुरबला पापां सूं मुगत होवै। सगळै जलमां रा पाप सांवटीजै। भगतां नै विष्णु लोक में परमपद मिलै।आज छेकड़लो नोरतो। इणी दिन नोरतां री महापूजा। काल दस्यूं। दस्यूं नै पूजा-पाठ करणियां नै दान-दखणां देय बिदा करीजै। राजस्थान रै सगळै देवी मिंदरां में नो दिनां ताणी देवी री पूजा होई। काल जाणस्यां राजस्थान रा ठावा देवी मिंदर। इणी रै साथै पूरीजसी नोरतां री खास लेखमाळा 'आओ, म्हारै कंठा बसो भवानी'। जै माताजी री!

गुरुवार, जनवरी 07, 2010

कार्तिकेय जननी स्कन्द माता-

३१ कार्तिकेय जननी स्कन्द माता
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- ३१/३/२००९
कार्तिकेय जननी स्कन्द माता-
ओम पुरोहित कागद
आज माताजी रो पांचवों नोरतो। चौथै नोरतै री धिराणी स्कंद माता। स्कन्द माता दुरगाजी रो पांचवों सरूप। स्कन्द रो एक नांव कार्तिकेय भी। कार्तिकेय पण माताजी रो लाडेसर बेटो। कार्तिकेय री जामण होवण रै कारण ई इण सरूप रो नांव स्कन्द माता। देवतावां रै बैरी तारकासुर नै स्कन्द माता जमलोक पुगायो। माताजी रै च्यार हाथ। जीवणै पसवाड़ै रै एक हाथ सूं आपरै लाडेसर नै गोद्यां बैठाय'र झालियोड़ो दूजै हाथ में कमल पुहुप। डावै पसवाड़ै रै एक हाथ में आसीस छिब। दूजै हाथ में भळै कमल पुहुप। सिर माथै सोनै रो मुगट बिराजै। कानां में सोनै रा गैणा। सिंघ री सवारी। स्कन्द माता संसार्यां नै मोख दिरावै। ध्यावणियां भगतां री मनस्यावां पूरै। पांचवै नोरतै में ध्यावणिया जोग्यां रो मन विशुद्ध चक्र में थिर रैवै। इण कारण ध्यावणियां रै मनबारै री अनै भीतरली चित्त वरत्यां रो लोप हो जावै। पांचवै नोरतै नै साधक माताजी रै अंगराग अर चनण रा लेप करै। भांत-भांत रा गैणा-गांठा पैरावै।
लिछमी पांच्यूं
आज लिछमी पांच्यूं भी। लिछमी भी माताजी रो एक सरूप। लिछमीजी कमल आसन माथै विराजै। कमल मतलब पदम। इण सारू आप रो एक नांव पदमासना भी। बिणज-बौवार करणियां नैं माताजी रो ओ रूप डाडो भावै। ऐ लोग माताजी रै लिछमी रूप नै ध्यावै। बिणज अर धन रै बधेपै री कामना करै। माताजी बां रा मनोरथ पूरै।
खाता उल्टा पल्टी रो दिन
दिनबिणज-बोपार में आज रो दिन रोकड़ खाता पल्टी रो। वित्तीय लेखा बरस रो पैलो दिन। इण दिन बोपारी हिसाब फळावै। लेण-देण चुकावै। तळपट मिलावै। आपरै बिणज री बईयां बदळै। रोकड़, खाता अर चौपड़ी पलटै। लेण-देण री खतोन्यां खतावै। नूवीं बईयां री पूजा करै। नूवीं रोकड़, खाता अर चौपड़ी रै पैलै पानै माथै 'गणेशाय नम:' लिखै। रोळी सूं साथियौ (साखियौ) मांडै। उण माथै पान-सुपारी, रोळी-मोळी अर फळ-प्रसाद चढावै। दूजै पानै माथै लिखै- 'लिछमीजी महाराज सदा सहाय छै। लाभ मोकळा देसी।' इणी माथै लिछमी सरूप 'श्री' इण भांत लिखै-
श्री
श्री श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
इण रै असवाड़ै-पसवाड़ै 'शुभ-लाभ' अर 'रिद्धि-सिद्धि' लिखै। रोळी कूं-कूं चिरचै। चावळ भेंटै। नूंई लेखणी-कलम-कोरणी बपरावै। इण माथै भी मोळी बांधै। अब पण लोगड़ा कम्प्यूटर-लेपटाप बपरावै तो इण जूंनी परापर नै कठै ठोड़!

मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा

२९ मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा/ गणगौर
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- २९/३/२००९
मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा

-ओम पुरोहित कागद
आज तीजो नोरतो। तीजै नोरतै री मैमा न्यारी। ध्यावै जगती सारी। तीजो नोरतौ जगजामण मात रै तीजै सरूप चंद्रघण्टा रै नांव। मात चंद्रघण्टा रै मस्तक माथै घण्टैमान चंद्रमा बिराजै। चंद्रमा मस्तक माथै सौभा पावै। इणी कारण माताजी रो तीजो सरूप चंद्रघण्टा। मात चंद्रघण्टा दस हाथ धारै। जीवणै पसवाड़ै रा पांच हाथ अभय दिरावण री छिब में। सरीर सोनै वरणो। एक हाथ में कमल। दूजै में धनुख। तीजै में बाण। चौथै में माळा। पांचवौ हाथ आसीस में उठियो थको। माताजी रै डावै हाथां में भी अस्तर। एक हाथ में कमण्डळ। दूजै में खड़ग। तीजै में गदा। चौथै में तिरसूळ। अर एक हाथ वायुमुद्रा में। चंद्रघण्टा रै शेर री सवारी। कंठा पुहुपहार। कानां सोनै रा गैणा। सिर सोनै रो मुगट। चंद्रघण्टा दुष्टां रो खैनास करण नै उंतावळी। दुष्टदमण सारू हरमेस त्यार। मानता कै चंद्रघण्टा नै ध्यावणियां शेर री भांत लूंठा पराकरमी अर भव में डर-मुगत भंवै। मात चंद्रघण्टा आपरै भगतां नै भुगती अर मुगती दोन्यूं एकै साथै देवै। मन-वचन-करम अर निरमळ हो विधि-विधान सूं चंद्रघण्टा रै सरणै आय जकौ ध्यावै उण नै मन-माफक वरदान मिलै। ऐड़ा भगत सांसारिक कष्टां सूं मुगत होय परमपद ढूकै। तीजै नोरतै री खास बात। इण नोरतै में माताजी नै खुद रो फुटरापो गोखाईजै। इण दिन उणां नै आरसी में मुंडो दिखाईजै। इणीज दिन माता जी नै सिंदूर भेंटीजै।
गणगौर पूजा
नोरते रै तीजै दिन यानी चैत रै चानण पख री तीज नै गौरी-शंकर री पूजा होवै। गौरी मात जगदम्बा यानी पार्वती। पार्वती रा धणी शंकर। इण दिन आं दोन्यां री पूजा ईसर-गणगौर रै रूप में होवै। पार्वतीजी शंकर नै वर रूप पावण सारू तप करियो। शंकरजी राजी होया। वरदान मांगण रो कैयो। पार्वतीजी शंकरजी नै ई वर रूप मांग्यो। पारवती री मनसा पूरण होई। बस उणीज दिन सूं कुंवारी छोरियां मनसा वर पावण सारू ईसर-गणगौर पूजै। सुहागणां धणी री लाम्बी उमर सारू पूजै।गणगौर री पूजा चैत रै अंधार पख री तीज सूं सरू होवै। होळका री राख सूं छोरियां बत्तीस पिंडोळिया बणावै। घर में थरपै अर सोळै दिनां तांणीं गणगौर पूजै। सोळै दिनां तांई भागफाटी उठ दूब ल्यावै। बाग-बाड़ी में गावै-
'बाड़ी आळा बाड़ी खोल, बाड़ी री किवाड़ी खोल, धीवड़्यां आई दूब नै।
'दूब लेय घरां आवै। माटी का काठ री गणगौर री देवळ नै दूब सूं काचै दूध रा छांटा देवै। राख री पिंडोळ्यां माथै कूं-कूं री टिक्की लगावै। कुंवार्यां अर सुहागणां भींत माथै कूं-कूं अर काजळ री टिक्की काढै। गावै-
'टिक्की राम्मा क झम्मा, टिक्की पान्ना क फूलां।
'कांसी री थाळी में दई, पाणी, सुपारी अर चांदी री टूम धर दूब सूं गणगौर नै संपड़ावै। गावै-
'केसर कूं-कूं भरी ऐ तळाई, जामें बाई गवरां ऐ न्हाई।
'आठवैं दिन ईसर बाई गवरजा नै लेवण सासरै ढूकै। इण दिन छोरियां कुम्हार रै घर सूं पाळसियो अर माटी ल्यावै। घरां माटी सूं ईसर, ढोली अर माळण बणावै। सगळी देवळ नै गणगौर भेळै पाळसियै में बैठावै। आगलै आठ दिन तक बनौरा काढै। दाख, काजू, बिदाम, मिसरी, मूँफळी, पतासा सूं दोन्यां री मनावार करै। सौळवैं दिन दायजै रो समान- दूब अर पुहुप भेळा करै। जीमण सारू बाजरी रा ढोकळा बणावै। ढोकळा चूर'र सक्कर बुरकावै अर ऊपर धपटवों घी घालै। जीमा-जूठी पछै बाई गवरजा नै आज रै दिन सासरै पधरावै। नदी, तळाब का कूवै नै सासरो मानै। भेळी होय ईसर-गणगौर री सवारी गाजै-बाजै सूं काढता थकां बठै ढूकै। देवळ्यां नै विद्या दीरीजै। कूवै, नदी का तळाब में पधरावै।गवर पूजण आळ्यां सोळै दिन ऐकत राखै। इण दिन बरत खोलै। पग रै आंटै सूं ढोकळा जीमै। सुहागणां ब्यांव रै बाद गणगौर रो अजूणौ करै। अजूणै में ढोकळां री ठोड़ खीर-पू़डी अर सीरो बणै अर सौळै सुहागणां नै नूंत जीमावै।गणगौर पूजा आखै राजस्थान में। उदयपुर री घींगा गवर, बीकानेर री चांदमल डढ्ढा री गवर नामी। उदयपुर रा महाराजा राजसिंह छोटी राणी नै राजी करण सारू चानण-पख री तीज री जाग्याँ अंधार-पख री तीज नै गणगौर री सवारी काढी। ओ काम धिंगाणै करीज्यो। इण सारू धींगा गवर बजै। बूंदी रा राजा जोधासिंह हाडा सम्वत में चैत रै चानण-पख री तीज नै गणगौर री देवळ अर आपरी जोड़ायत भेळै नाव चढ तळाब में सैर करै हा। अचाणचक नाव पळटी अर दोन्यूं धणी-लुगाई गणगौर समेत डूबगया। बस इणी दिन सूं बूंदी में गणगौर पूजण रो बारण। बूंदी में कैबा चालै- हाडो ले डूब्यो गणगौर।

म्हारै टाबरियां नै ठंडा झोला देई म्हारी माय-

१७ म्हारै टाबरियां नै ठंडा झोला
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- १७/३/२००९
म्हारै टाबरियां नै ठंडा झोला देई म्हारी माय-

ओम पुरोहित 'कागद'
राजस्थान में बारै म्हीना त्योहार। रुत रा त्योहार पण लूंठा अनै अरथाऊ। गरमी, सरदी, बसंत अर बरसाळै री मैमा निराळी। बरतां रा खान-पान ई रुत मुजब। रुत बदळण अर दूजी रुत आवण रै बिचाळै रा बरत। नूंई रुत नै सै'न करण रा बरत। आखातीज, सकरांत, निरजळा इग्यारस, सावणी तीज, भादू़डै री तीज अर बासीड़ा बी ऐड़ा ई त्योहार। राजस्थान सारू बासीड़ां री मैमा मोकळी। आखो राजस्थान धोकै। सीतळा-बासीड़ा-सेडळ रूपा काळका री ध्यावना करै।सीतळा अष्टमी ई बासीड़ां रो त्योहार। ओ त्योहार चैत रै अंधार पख री आठ्यूं नै आवै। पण सोरफ सारू होळी रै बाद पैलै सोमवार का बिस्पतवार नै भी धोकण री छूट। नवदुर्गा में सूं मा 'कालिरात्रि' यानी काळका माता नै ई लोक में सीतळा माता कैवै। मा काळका रै गधै री सुवारी। उणी भांत सीतळा माता री सुवारी भी गधो। मा काळका पड़तख काळ रूप। बिरमा-बिस्णू अर महेश ई डरै। भूत-प्रेत, रोग-बिजोग, काळ-अकाळ, देव-मिनख अर राखस रो तो डोळ ई कांईं। काळका माता रै सीतळा माता रूप री भी आ ई मैमा। इणी कारण राजस्थान्यां री मानता कै सीतळा माता नै धोक्यां अबखो नीं पड़ै। इण दिन बरत राखै। मानता कै बरत करणियां रै कुटुम्ब-कबीलै में तातो ताव, पीळियो, हाडतोड़ बुखार, बांसणियां-दुखणिया, आंख रोग, गुरांदणी, बड़ी माता, छोटी माता, ऊपरलै रा रोग अर भूत-प्रेत री मार नीं हुवै।बासीड़ां सूं पैलै दिन भोग बणाईजै। मीठा चावळ, खीर, भांत-भांत री पू़ड्यां, छिलका मूंग री दाळ, कढ़ी, राबड़ी, कांजीबड़ा, दई बड़ा, सांगरी, फोफळिया, कैरिया-कूमटा, भे, मोठोडी, गुवार फळी रा साग, मूंग-मोठ-बाजरी रो रंधीण, दई, पापड़, मोठ-बाजरी रा बी'रा भोग सारू त्यार करीजै। बासीड़ां रै दिन रसोई में घर-धिरयाणी घी सूं हाथ रा छापा छापै। छापां माथै रोळी-चावळ चिरचै। पुहुप चढ़ावै। दीयो चेतन करै। धूप-बत्ती करै। हाथा जोड़ी कर सीतळा माता सूं अरज करै-
'म्हारै टाबरियां नै ठंडा झोला देई म्हारी माय।
म्हारै टाबरियां रा सगळा जतन पुराई म्हारी माय।।'
गीत रै बीच में घर रै सगळै टाबरां रा नाम ई लेवै। झांझरकै ई बास-गळी री लुगायां भेळी होवै। थाळी में पूजा रो समान- रोळी, मोळी, कूं-कूं, चावळ, काजळ, टिक्की, होळका री राख री सात पिंडोळ्यां, जळ रो लोटियो, धूप-अगरबत्ती अर पुस्प सजावै। भोग सारू बणाई बासी रसोई थाळी में सजावै। घर रै सगळां रा हाथ लगुवावै। हाथां उंचाया गीत गांवत्या सीतळा माता रै मिंदर पूगै। पूजा करै। भोग लगावै। पाछी घरां आय पिंडोळ्यां पळींडै थरपै। घर रा सगळा बठै धोक लगावै। पूजा रो जळ आंख्यां लगावै। लुगायां चौक माथै भी पूजै। मोठ-बाजरी रै बी'रां माथै रिपियो राख सासू नै भेंटै। पगां लागै। सासू आसीस देवै- 'दूधां न्हावो-पूतां फळो।' पछै सगळी लुगायां सीतळा माता री कथा सुणै। जीमै अर बरत खोलै।
शीतळा माता री कथा
राम जी भला दिन देवै तो... एक ही बूढळी। ठंडो ई खांवती, ठंडो ई पींवती। ठंडो ई पै'रती अर ठंडो ई बोलती। बासी खांवती। बासीड़ा धोकती। पूरो परवार निरोगो। एक दिन गांव पाटै उतरग्यो आग में सगळां रा घर बळग्या। पण डोकरी रो घर बंचग्यो। लोगां पूछ्यो- डोकरड़ी इयां-किंयां? के टूणा-कामण करया? डोकरी बोली- म्हनै तो सीतळा माता तूठ्या है। म्हैं तो बासीड़ा धोकूं। बासी खाऊं। सीतळा माता रा बरत करूं। म्हारी अर म्हारै परवार री रिछपाळ सेडळ माता करी है। छेकड़ में कथा कैवण वाळी बोलै- 'हे सेडळ माता! हे सीतळा माता!! जियां डोकरी नै तूठी, बिंयां ई सगळां नै तूठी!'

भाषा खूट्यां आप री,नईं बचैलो मान-

२६ भाषा खूट्यां आप री
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- २६/२/२००९
भाषा खूट्यां आप री,नईं बचैलो मान-
ओम पुरोहित 'कागद'
आपरी भासा पिछाण बणावै। भासा गमै तो पिछाण गमै। होड़-ठिकाणां रा नांव। गांवां रा नांव। चीज-बस्त रा नांव। भासा पाण चालै। भासा खुरै या मिटै तो ठोड़-ठिकाणां, गांव-सैर अर चीज-बस्त रा नांव खुरै-मिटै। दूजी भासा रै राज में नांव बदळै। अंग्रेजां री टैम कोलकाता सूं कलकत्ता, चैन्नई सूं मद्रास, बैंगलूरु सूं बंगलोर अर मुम्बई सूं बोम्बे या बम्बई होग्या। ओ बदळाव बठै री मायड़भासा री संकड़ाई अर अंग्रेजी रै बिगसाव पेटै होयो। ऐड़ा उदाहरण इतिहास में पण भरियोड़ा है। आ ई हालत आज राजस्थान री है। अठै री मूळ भासा राजस्थानी माथै धूळ जमाय दी। हिन्दी-अंग्रेजी रै प्रभाव में आय'र ठोड़-ठिकाणां, गांव-सैर अर चीज-बस्तां रा नांव ओळ-पंचोळा होयग्या। अब ऐड़ा नांव ना हिन्दी रा रैया, नां राजस्थानी रा।आपणै अठै मूंग-मोठ-चीणां री दाळ होंवती। पण आ दाळ, दाळ सूं दाल होयगी। चावळ सूं चावल, बळीतै सूं बलीतो, कळ सूं कल, फळ सूं फल, बळ सूं बल, झळ सूं झल, टाळ सूं टाल, नाळी सूं नाली, फळी सूं फली, काळ सूं काल, पाणी सूं पानी, दळियै सूं दलिया, कांधळ सूं कांधल, बणीरोत सूं बनीरोत, बीकाणो सूं बीकानो, कांधळोत सूं कांधलोत होग्या। ऐड़ा उदाहरण है। आप कीं मैणत करो अर फड़द बणाओ।इणी भांत गांव-सैरां रा नांव ओळ-पंचोळा होग्या। बिगड़ीयोड़ा नांव बांच-बांच हांसी भी आवै अर झाळ भी। पण करां कांई। किण रै आगै कूकां। आओ देखां, आपणी निजरां साम्हीं कांईं रैयो। कींया खुर रैयी है आपणी मायड़ भासा राजस्थानी। गांव रा नांव आपां बोलां कांई हां अर लिखां कांई हां। गांव सैरां रा नांव बदळतां-बदळतां एहलकारां रै हाथां राज रै कागदां में कींया चढग्या।आपणो गांव धोळीपाळ हो। धोळी यानी सफेद। पाळ यानी 'बट' का रेत री भींत। बदळ'र होग्यो धोलीपाल। अब कठै रैयो धोलीपाल में धोळीपाळ रो अरथ? इयां ई परळीका सूं परलीका, जसाणा सूं जसाना, कमाणां सूं कमाना, दुलमाणां सूं दुलमाना, दीपलाणा सूं दीपलाना, पीळीबंगा सूं पीलीबंगा, काळीबंगा सूं कालीबंगा, अयाळकी सूं अयालकी, गोरखाणा सूं गोरखाना, ढाळिया सूं ढालिया, भिराणी सूं भिरानी, फेफाणा सूं फेफाना, गाढवाळो सूं गाढवालो, किळचू सूं किलचू, रूणीचै सूं रूनीचा, काळियां सूं कालियां, डबळी सूं डबली देखतां-देखतां ई बणग्या। राज रै कागदां में चढग्या। कीं रै कह्यां बदळ्या? कोई ठाह नीं। अब पण पाछा कींया बदळीजै। इण सारू खेचळ री पण दरकार। पाठक आप-आप रा गांवां रा नांव संभाळो। सागी जूनो अर इतिहासू नांव सोधो अर सूची बणाओ। आपरो इतिहास अंवेरण में संको क्यां रो!
भाषा राखै देस री, आन-बान अर स्यान।
भाषा खूट्यां आप री, नईं बचैलो मान।।

सिव-सिव रटै, संकट कटै-

२३ सिव-सिव रटै
आपणी भाषा-आपणी बातातारीख- २३/२/२००९
सिव-सिव रटै, संकट कटै-
ओम पुरोहित 'कागद'
तीन महादेव बिरमा-बिसणु-महेस। ऐ तीन देव एड़ा, जकां रै मां-बाप रा नांव किणी ग्रंथ मांय नीं लाधै। आं में ओ भेद भी नीं कै तीनां में सूं कुण पैली परगट हुयो। रिषि-मुनि सोध-सोध थक्या। छेकड़ आदि-अनादि-अनन्त कैय'र पिंड छुडायो। इण में सूं भगवान महेस नै देवां रो देव महादेव बतायो। इणी महादेव रै बिरमा-बिसणु रै बीच ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगटण री रात नै कैवै- स्योरात। आ फागण रै अंधार-पख री चवदस नै आवै। मानता है कै जको इण दिन बरत राखै। अभिसेक करै। गाभा, धूप अर पुहुपां सूं अरचना करै। जागण करै। 'ऊँ नम: शिवाय' पांचाखर रो जाप करै। रूद्राभिषेक, रूद्राष्टाध्यायी अर रूद्री पाठ करै। बो शिव नै पड़तख पावै। उणमें सूं विकारां रो खैनास व्है जावै। उणनै परमसुख, शांति अर अखूट सुख मिलै।स्योरात नै शिवपुराण में महाशिवरात्रि, इणरै बरत नै बरतराज कैयीज्यो है। स्योरात जम रो राज मिटावण वाळी। शिवलोक ढुकावण वाळी। मोक्ष देवण वाळी। सातूं सुख बपरावण वाळी। पाप अर भै नास करण वाळी मानीजै।राजस्थान सूरवीरां री धरा। शिव अर सगति री मोकळी ध्यावना। अठै गढ़ां अर किलां में माताजी, भैरूंजी अर शिवजी रा मोकळा मिंदर। धरणीधर महादेव, शिवबाड़ी, गोपेश्वर महादेव, जैनेश्वर महादेव (बीकानेर), नीलकंठ महादेव (अलवर), हरणीहर महादेव (भीलवाड़ा), मंडलनाथ महादेव, सिद्धनाथ महादेव, भूतनाथ महादेव, जबरनाथ महादेव (जोधपुर), गुप्तेश्वर महादेव, परसराम महादेव (पाली), एकलिंगनाथजी (उदयपुर), ताड़केश्वर महादेव, रोजगारेश्वर महादेव, गळताजी (जयपुर), शिवमंदिर (बाड़ोली), पाताळेश्वर महादेव, पशुपतिनाथ महादेव (नागौर), रा मिंदर नांमी। महादेवजी रा इण मिंदरां में महाशिवरात्रि रा मेळा भरीजै।
अर अबार बांचो, एक लोककथा-
मैणत-सारएकर मादेवजी दुनियां माथै घणो कोप कीधो। खण लियो कै जठा तांईं आ दुनियां सुधरै नीं, तठा तांईं संख नीं बजावै। मादेवजी संख बजावै तो बरसात व्है। काळ माथै काळ पड़िया। पांणी री छांट ई नीं बरसी। दुनियां घणी कळपी। घणो ई पिरास्चित करियो। पण मादेवजी आपरै प्रण सूं नीं डिगिया।एकर मादेवजी अर पारवतीजी गिगन में उडता जावै हा। कांईं देख्यो कै एक जाट सूखा में ई खेत खड़ै। परसेवा में घांण व्हियोड़ो। लथौबत्थ। भोळै बाबै मन में इचरज करियो कै पांणी बरसियां नै तो बरस व्हिया, पण इण मूरख रो ओ कांई चाळो! विमांण सूं नीचै उतरया। चौधरी नै पूछ्यो- बावळा, बिरथा क्यूं आफळै? सूखी धरती में क्यूँ पसीनो गाळै? पांणी रा तो सपनां ई को आवै नीं। चौधरी बोल्यो- साची फरमावो। पण खड़ण री आदत नीं पांतर जावूं, इण खातर म्हैं तो आयै साल सूड़ करूं, खेत जोतूं। जोतण री जुगत पांतरग्यो तो म्हैं पाणी पड़ियां ईं नीं जै़डो। बात महादेवजी रै हीयै ढूकी। मन में बिचार करियो... म्हनै ई संख बजायां नै बरस बीत्या। संख बजांणो भूल तो नीं गियो। खेत में ऊभा ई जोर सूं संख पूरियो। चौफेर घटा ऊमड़ी। आभै में गड़गड़ाट माची। अणमाप पांणी पड़्यो। जठै निजर ढूकै, उठी जळबंब-ई-जळबंब!
आपणी भाषा-आपणी बातातारीख- २३/२/२००९
सिव-सिव रटै, संकट

कटै-ओम पुरोहित 'कागद'

तीन महादेव बिरमा-बिसणु-महेस। ऐ तीन देव एड़ा, जकां रै मां-बाप रा नांव किणी ग्रंथ मांय नीं लाधै। आं में ओ भेद भी नीं कै तीनां में सूं कुण पैली परगट हुयो। रिषि-मुनि सोध-सोध थक्या। छेकड़ आदि-अनादि-अनन्त कैय'र पिंड छुडायो। इण में सूं भगवान महेस नै देवां रो देव महादेव बतायो। इणी महादेव रै बिरमा-बिसणु रै बीच ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगटण री रात नै कैवै- स्योरात। आ फागण रै अंधार-पख री चवदस नै आवै। मानता है कै जको इण दिन बरत राखै। अभिसेक करै। गाभा, धूप अर पुहुपां सूं अरचना करै। जागण करै। 'ऊँ नम: शिवाय' पांचाखर रो जाप करै। रूद्राभिषेक, रूद्राष्टाध्यायी अर रूद्री पाठ करै। बो शिव नै पड़तख पावै। उणमें सूं विकारां रो खैनास व्है जावै। उणनै परमसुख, शांति अर अखूट सुख मिलै।स्योरात नै शिवपुराण में महाशिवरात्रि, इणरै बरत नै बरतराज कैयीज्यो है। स्योरात जम रो राज मिटावण वाळी। शिवलोक ढुकावण वाळी। मोक्ष देवण वाळी। सातूं सुख बपरावण वाळी। पाप अर भै नास करण वाळी मानीजै।राजस्थान सूरवीरां री धरा। शिव अर सगति री मोकळी ध्यावना। अठै गढ़ां अर किलां में माताजी, भैरूंजी अर शिवजी रा मोकळा मिंदर। धरणीधर महादेव, शिवबाड़ी, गोपेश्वर महादेव, जैनेश्वर महादेव (बीकानेर), नीलकंठ महादेव (अलवर), हरणीहर महादेव (भीलवाड़ा), मंडलनाथ महादेव, सिद्धनाथ महादेव, भूतनाथ महादेव, जबरनाथ महादेव (जोधपुर), गुप्तेश्वर महादेव, परसराम महादेव (पाली), एकलिंगनाथजी (उदयपुर), ताड़केश्वर महादेव, रोजगारेश्वर महादेव, गळताजी (जयपुर), शिवमंदिर (बाड़ोली), पाताळेश्वर महादेव, पशुपतिनाथ महादेव (नागौर), रा मिंदर नांमी। महादेवजी रा इण मिंदरां में महाशिवरात्रि रा मेळा भरीजै।
अर अबार बांचो, एक लोककथा-
मैणत-सारएकर मादेवजी दुनियां माथै घणो कोप कीधो। खण लियो कै जठा तांईं आ दुनियां सुधरै नीं, तठा तांईं संख नीं बजावै। मादेवजी संख बजावै तो बरसात व्है। काळ माथै काळ पड़िया। पांणी री छांट ई नीं बरसी। दुनियां घणी कळपी। घणो ई पिरास्चित करियो। पण मादेवजी आपरै प्रण सूं नीं डिगिया।एकर मादेवजी अर पारवतीजी गिगन में उडता जावै हा। कांईं देख्यो कै एक जाट सूखा में ई खेत खड़ै। परसेवा में घांण व्हियोड़ो। लथौबत्थ। भोळै बाबै मन में इचरज करियो कै पांणी बरसियां नै तो बरस व्हिया, पण इण मूरख रो ओ कांई चाळो! विमांण सूं नीचै उतरया। चौधरी नै पूछ्यो- बावळा, बिरथा क्यूं आफळै? सूखी धरती में क्यूँ पसीनो गाळै? पांणी रा तो सपनां ई को आवै नीं। चौधरी बोल्यो- साची फरमावो। पण खड़ण री आदत नीं पांतर जावूं, इण खातर म्हैं तो आयै साल सूड़ करूं, खेत जोतूं। जोतण री जुगत पांतरग्यो तो म्हैं पाणी पड़ियां ईं नीं जै़डो। बात महादेवजी रै हीयै ढूकी। मन में बिचार करियो... म्हनै ई संख बजायां नै बरस बीत्या। संख बजांणो भूल तो नीं गियो। खेत में ऊभा ई जोर सूं संख पूरियो। चौफेर घटा ऊमड़ी। आभै में गड़गड़ाट माची। अणमाप पांणी पड़्यो। जठै निजर ढूकै, उठी जळबंब-ई-ज

रविवार, जनवरी 03, 2010

आपणा इलाका : आपणा नांव

१८ आपणा इलाका : आपणा नांव
आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १८/२/२००९
आपणा इलाका : आपणा नांव
-ओम पुरोहित 'कागद'
राजस्थान जूनो प्रदेश। जूनी मानतावां। जूनो इतिहास। जूनी भाषा। जूनी परापर। परापर एड़ी कै आज तक इकलग चालै। खावणै-पीवणै, उठणै-बैठणै अनै बोवार री आपरी रीत। रीत में ठरको। ठरकै में इतिहास री ओळ। ग्यान-विग्यान अर भूगोल री ओळ। बात-बोवार अर नांव में राजस्थानी री सौरम। इण सौरम रो जग हिमायती। आजादी सूं पैली राजस्थान में घणा ठिकाणा। घणा ई राज। राजपूतां रा राज। इणी पाण राजपूताना। राजा राज करता पण धरती प्रजा री। प्रजा राखती नांव धरती रा। नांवकरण में ध्यान धरती रै गुण रो। राजवंश, फसल, माटी, पाणी, फळ, पसु-पखेरू धरती रा धणी। आं री ओळ में थरपीजता इलाकै रा नांव।बीकानेर रा संस्थापक राव बीकाजी रै नांव माथै बीकाणो। बीकाणै में बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, भटिंडा, अबोहर, सिरसा अर हिसार। राव शेखाजी रै नांव माथै शेखावाटी। शेखावाटी में चूरू, सीकर अर झुंझुणू। मारवाड़ में जोधपुर, पाली जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर। मेवाड़ में उदयपुर, चितोड़ , भीलवाड़ा अर अजमेर। बागड़ में बांसवाड़ा अर डूंगरपुर। ढूंढाड़ में जयपुर, दौसा, टोंक, कीं सवाईमाधोपुर। हाड़ौती में कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़, कीं सवाईमाधोपुर। मेवात में अलवर, भरतपुर। जैसलमेर में माड़धरा, हनुमानगढ़ नै भटनेर, करोली-धोलपुर नै डांग, अलवर नै मतस्य, जयपुर नै आमेर, अजमेर नै अजयमेरू, उदयपुर नै झीलां री नगरी, जैसलमेर नै स्वर्णनगर, जोधपुर नै जोधाणो अर सूर्यनगरी, भीलवाड़ा नै भीलनगरी, बीकानेर नै जांगळ अर बागड़ भी कैईजै। राजस्थान रै हर खेतर रा न्यारा-निरवाळा नांव। कीं नांव बिणज-बोपार माथै। कीं नांव जमीन री खासियतां रै पाण। बीकाणै में भंडाण, थळी, मगरो अर नाळी जे़डा नांव सुणीजै। ऐ हाल तो बूढै-बडेरां री जुबान माथै है। बतळ में उथळीजै। पण धीरै-धीरै बिसरीज रैया है। आओ आपां जाणां आं नांवां री मैमा।
भंडाण भंडाण बीकानेर जिलै री लूणकरणसर, बीकानेर अर कीं कोलायत तहसील रै उण गांवां नै कैवै जकां रै छेकड़ में 'ऐरा' लागै। जियां- हंसेरा, धीरेरा, दुलमेरा, खींयेरा, वाडेरा।भंडाण रा मतीरा नांमी होवै। मीठा। अठै री आल जबर मीठी होवै। आल लाम्बै मतीरै नै कैवै। भंडाण री गायां-भैंस्यां, भेड-बकरयां अर ऊंट नांमी। भंडाण रो घी, मावो अर मोठ नांमी। मतीरो भंडाण रो सै सूं सिरै। अठै रै मतीरै सारू कैबा है-
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा।बीकाणा थारै देस में, बड़ी चीज मतीरा।।थळीथळी चूरू जिलै रै रतनगढ़ अर सुजानगढ़ रै खेतर नै थळी कैवै। इण खेतर रा लोग थळिया। थळी री बाजरी, मोठ, काकड़िया, मतीरा नांमी हुवै। थळी री बाजरी न्हानी अर मीठी होवै। थळी रा वासी मोटो अनाज खावै। काम में चीढा अनै जुझारू अर तगड़ा जिमारा होवै। थळी सारू कैबा है-
खाणै में दळिया, मिनखां में थळिया।
मगरोबीकानेर जिलै री कोलायत तहसील अर इणरै लागता जैसलमेर रा कीं गांवां नै मगरो कैवै। अठै री जमीन कांकरा रळी। मगर दाईं समतळ। पधर। इण कारण नांव धरीज्यो मगरो। मगरै रा ऊंट, गा-भेड अर बकरी नांमी। कोलायत धाम भी मगरै में पड़ै।
नाळीहनुमानगढ़, सूरतगढ़, पीळीबंगा, अनूपगढ़, विजयनगर अर हरियाणा रै सिरसै जिलै रै गांवां नै नाळी कैवै। अठै बगण आळी वैदिक नदी सुरसती जकी नै अजकाळै घग्घर भी कैवै। इण नदी खेतर नै नाळी कैईजै। इण इलाकै रो नांव नाळी क्यूं थरपीज्यो। इण सूं जुड़ियोड़ी एक रोचक बात है। आओ बांचां-जद घग्घर में पाणी आंवतो। बीकानेर रा राजा नदी पूजण हनुमानगढ़ आंवता। एकर राजाजी हनुमानगढ़ आयोड़ा हा। लारै सूं एक जणो अरदास लेय'र महलां पूग्यो। राजाजी नीं मिल्या। पूछ्यो तो लोगां बतायो, नदी पूजण गया है। बण पूछ्यो, नदी के होवै? एक कारिंदै जमीन माथै माटी में घोचै सूं लीकटी बणाई। लोटै सूं उण में पाणी घाल्यो। बतायो, नदी इयां होवै। बण कैयो, ऐ डोफा! आ क्यांरी नदी ? आ तो नाळी है, नाळी। बस उण दिन रै बाद इण इलाकै रो नांव नाळी पड़ग्यो। नाळी रा चावळ, कणक अर चीणा जग में नांमी। नाळी री जमीन घणी उपजाऊ होवै।

स्यावड़ माता सहाय करी

१० स्यावड़ माता सहाय करी
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- १०/२/२००९
स्यावड़ माता सहाय करी,अन्न-धन सूं भंडार भरी।


-ओम पुरोहित 'कागद'
धीरज-धरम अर आस्था राजस्थान्यां री पिछाण। खेती पण अठै री आन-बान अर स्यान। आखै राजस्थान री जीयाजूण खेती सूं पळै। कैबा चालै- खेती खसमा सेती। पण राजस्थान रो किरसो खुद नै खेती रो खसम नीं मानै। उणरी आस्था कै 'देव तूठै तो खेती ठूठै'। खेत अर खेत री कांकड़ में देई-देवतावां रा थान थरपै। आपरै बडेरां रा थान। बोरड़ी, खेजड़ी या जाळ तळै भोमियां, भैरूवां अर खेतरपाळां रा थान। मन में पण स्यावड़ माता। कई लोग पण स्यावड़ी माता भी कैवै। खेती सरू करती बगत सूं लेय'र खळै तक स्यावड़ माता धोकै। 'स्यावड़ माता सहाय करी, अन्न-धन सूं भंडार भरी'। कई ठोड़ बोलीजै- 'स्यावड़ माता सत करियै, बीज म्होड़ो भळ करियै'।किरसो मानै कै फगत स्यावड़ धोक्यां धान नीं वापरै। हाड़-तौड़ मेहणत करणी पड़ै। 'जको खट्टै, बो मोठ पट्टै।' आ भी मानता है कै हाड़-तौड़ मेहणत करणियै किरसै नै स्यावड़ माता तूठै। ईं सारू राजस्थानी करसो हाड़-तौड़ मेहणत करै। अर स्यावड़ माता नै धोकै। कागडोड या डोडकाग अनै सोनचिड़ी रै दरसण नै स्यावड़ माता रा पड़तख दरसण मानै। आं रै दरसण नै सुभ मानै। दरसण वेळा जकी चीज हाथ आवै, बा भेंट करै। और नीं तो पैरियोड़ा गाभा मांय सूं सूत री तांत काढ'र बीं दिस में अरपित करै, जिण दिस डोडकाग या सोनचिड़ी बैठी होवै। ऐ पंखेरू हरी डाळी माथै बैठ्या डाडा सुभ मानीजै। दरसण सूं कोड चढै अर मेहणत में दूभरिया लागै। डोडकाग सूं सीख लेवै कै खेती में डोड-चेष्टा करियां ई फळ मिलसी।खेती सरू करतां किरसो स्यावड़ धोकै। खळो काढतां कोड करै। खळै री वेळा डाभ री स्यावड़ बणावै। गाभा नीं पैरावै। पण डाभ सूं बणायोड़ी उघाड़ी स्यावड़ माता रै डील माथै लोह री बसत बांधै। इणनै धान री ढिगली में राखै। धान री ढिगली गाभै सूं ढकै। ढिगली रो मूंडो दिखणादै राखीजै। अन्न काढणियो उतरादै कानी मूंडो राखै। धान बोरां में भरै। जठै तक धान नीं भरीजै। बठै तक सगळा मून रैवै। एक जणो इकलग ढिगली कानी देखतो रैवै। खळो सळट्यां पछै स्यावड़ माता रै नांव माथै गरीब-गुरबां अर सवासण्यां नै अन्नदान करीजै।स्यावड़ माता पण ही कुण? मार्कण्डेय पुराण रै त्हैत रचिज्योड़ी दुर्गा सप्तशती में शाकम्भरी देवी रो बखाण आवै। विद्वान बतावै कै दुर्गा रूप माता शाकंभरी रो ई राजस्थानी रूप स्यावड़ी या स्यावड़ माता है। किरसाणां री लुगायां स्यावड़ माता रा बरत करै। बरत आळै दिन भेळी हुय'र कथा सुणै- एक किरसै रै गणेशजी रो इष्ट हो। उणरो बिसवास कै खेती रा सगळा काम गणेश भगवान री किरपा सूं हुवै। एक दिन गणेशजी किरसै नै समझायो, तूं स्यावड़ माता नै धोक। खेती में बधेपो हुसी। पण बो नीं मान्यो। गणेशजी नै धोकतो रैयो। एक दिन गणेशजी स्यावड़ माता नै साथै लेय'र किरसै रै खेत ढूक्या। स्यावड़ माता रा गाभा एकदम मैला हा। गणेशजी बोल्या- आपरा गाभा उतार'र म्हनै देवो। म्हैं सारलै तळाव में धोय ल्याऊं। स्यावड़ माता खळै में बड़'र गाभा उतारया। गणेशजी नै झलाया। गणेशजी गाभा लेय'र इस्या गया कै आज आवै। बो दिन अर आज रो दिन। स्यावड़ माता किरसाणां रै खळै री ढेरी में वास करै। किरसाणां रै अन्न-धन बपरावै।इण कथा री आण में आज भी डाभ री स्यावड़ माता बणाय'र खळै री ढेरी में राखीजै। पग-पग माथै धोकीजै। खेत में जद बाजरी रा च्यार सिट्टा भेळा दिखै तो स्यावड़ माता रो पधारणो मानीजै। हळोतियै री बगत स्यावड़ माता अर गणेशजी धोकीजै। हळ री पै'ली ओड काढती वेळा आं नै गु़ड, लापसी अर सीरो चढ़ाइजै। स्यावड़ माता सूं अरदास करीजै- 'हे स्यावड़ माता सहाय करी, सगळां रै भाग रो अन्न दीजै। गायां रै भाग रो, चिड़ी-कमे़डी रै भाग रो। हाळी-बाळदी रै भाग रो, बैन-सवासणी रै भाग रो। राजा-प्रजा रै भाग रो।'खळो काढती वेळा कोई बेतियाण नीं आवै इण सारू एक कैवै, 'हरे स्यावड़ माता!' दूजो कैवै, 'स्यावड़ माता ढिग करै'। खळै रै एक पासै स्यावड़ थरपै। गोबर रो थान बणावै। च्यार सिट्टां नै उण माथै स्यावड़ माता रै रूप थरपै। गुळ-घूघरी चढावै। धान री ढिगली गाभै सूं ढक'र राखीजै। ढिगली रै च्यारूंमेर राख सूं लिछमीजी रै नांव सूं कोर काढीजै। किरसो आज भी समूळ चावना-भावना सूं स्यावड़ धोकै। खेती रा नूंवा लटका-झटका बपरांवता मोट्यार-किरसाणां में पण आ भावना मौळी पड़ रैयी है।

शनिवार, जनवरी 02, 2010

सुरगां सूं भी सोवणा

सुरगां सूं भी सोवणा
आपणी भाषा-आपणी बाततारीख- ४/२/२००९
सुरगां सूं भी सोवणा,राजस्थानी गांव
-ओम पुरोहित 'कागद'
खे़डा फोगां खेजड़ां, चोखा-चोखा नांव।

सुरगां सूं भी सोवणा, राजस्थानी गांव।।
राजस्थानी संस्कृति जूनी। जूनी पण जतनां ताण। जतन सांवठा। सगळां नै सिकार। सगळां रै मनभावणा। जतनां री रिछपाळ। संस्कृति नै अंगेजण री चावना-भावना अर ध्यावना। इणी मठौठ रै पांण, आज भी जींवता ऐ जूना ऐनांण। जूण रै हर खेतर में संस्कृति री सौरम। संस्कृति रा दीठाव। खानपान हुवै या रैवास। मिंदर-देवरा हुवै या मै'ल-मा'ळिया-झूंपड़ा। ढाणी-गांव हुवै या स्हैर-परगना। सगळां में सस्कृति रा चितराम। गांव रो नांव लेवतां ई इतिहास अंगड़ाई तोडतो लखावै। गांव रो बसाव इतिहासू। इतिहास पण नांव में। आओ, आपां जाणां गांव-स्हैर अर परगनां री थरपणा रो इतिहासू मनोविग्यान।राजस्थान रा गांवां रै नामकरण में इतिहास रो घणो महत्त। घणी'क बार धरा-धणी रै नांव सूं गांव बसै। कई बार किणी कुटुम्ब-धणी रै नांव सूं बसी ढाणी ई गांव बणै। गांव-रिछपाळ रै नांव सूं भी गांवां रा नांव थरपीजै। ठाडा-ठावा वीर, रणबंका, जूझार, राजा अर राणी रै नांव सूं गांव। चाकर-ठाकर, दास-दासी, गुमासता, पगेरू, जीवजंत, चारण, देई-देवता, भोमिया, गढ़, तळाब अर रूंखां रा नांव सूं भी गांवां रा नांव थरपीजै। पण इण थरपणा रै लारै इतिहास री औळ रैवै।राजस्थान में ढाणी बसावण री जूनी परापरी। गांव अळगो हुवण रै कारण खेतीखड़ लोग आपरै खेत में ढाणी बसावता। धीरै-धीरै कड़ूम्बो बधतो। लाणो-बाणो पसरतो। बधतां-बधतां ढाणी गांव बण ज्यांवती। ढाणी रो नांव धरा-धणी रै नांव सूं या चलबल आळै बडेरै रै नांव सूं राखीजतो। जियां बलवीरसिंह री ढाणी, नंदराम री ढाणी, सवाईसिंह री ढाणी, खेतैआळी ढाणी। एक ई जात रै लोगां री भेळप में बसायोडी ढाणी रो नांव जातिसूचक होंवतो। जियां कै बामणां री ढाणी, खातियां री ढाणी, सारणां री ढाणी, चारणां री ढाणी, खोथांवाळी ढाणी, अराइयां वाळी ढाणी। ढाणी सूं गांव बण्यां पछै ढाणी सबद हट जावतो। जियां कै भगवानसर, धांधूसर, सुरजनसर, शेरगढ़, बामणवाळी आद। गांव रै नांव री थरपणां में भी इतिहास। जको गांव किणी तळाब रै कांठै बसै, उणरै नांव रै छेकड़ में 'सर' लागै। 'सर' आपणी भासा में तळाव रो पर्याय है। आप गीत सुण्यो हुसी- 'सरवर पाणीड़ै नै जाऊं सा, निजर लग जाय।'इतिहास पुरख या पूजनीक, जूझार, रणबंका, राजा, राणी, आद रै नांव सूं गांव बसाइजतो तो पैली बठै तळाव खुदाइजतो। पछै थरपीजतो गांव रो नांव। बीकानेर रै राजा लूणकरणसिंह रै नांव माथै लूणकरणसर। कवि-चाकर राजिया रै नांव सूं राजियासर। राव अरजनसिंह रै नांव सूं अरजनसर। राणी मळकी रै नांव सूं मळकीसर। राणी केसरदे रै नांव माथै केसरदेसर। निहालदे रै नांव सूं निहालदेसर। कोडमदे रै नांव सूं कोडमदेसर।इयां ई आपणै औळै-दौळै देखां तो लाधसी- टीडियासर, भोजासर, लिखमीसर, पाबूसर, सालासर, तोळियासर, करणीसर। देई-देवतावां अर संतां रै नांव माथै- गुगाणो, गोरखाणो, गुगामे़डी, बालाजी, नागणेची, रामदेवरा, पाबूसर। रूंखां रै नांव माथै- फोगां, खेजड़ां, खेजड़ली, कीकरवाळी, नीमलो, जाळवाळी, कैरांवाळी, रोहिड़ांवाळी। पसु-पांख्यां रै नांव माथै- बुगलांवाळी, हिरणांवाळी, मिरगलो।आपां माथापच्ची करां तो आ फड़द घणी लाम्बी बण सकै। आप जागरुक पाठक हो। आ खेचळ करो देखांण। पसु-पांखी, रूंख, देई-देवता, जात, रणबंकां, जुझारुआं आद रै नांव सूं थरपीज्योडा गांवां री न्यारी-निरवाळी फड़द बणाओ।गांव रै नांव री थरपणां में इतिहास री एक पुट और देखो। जकै गांव-कस्बै-स्हैर मांय गढ़ बण्योडा हुवै, उणरै नांव रै छेकड़ में 'गढ़' लागै। गढ़ कैवां किलै नै। जियां कै जूनागढ़, लालगढ़, अनूपगढ़, फतेहगढ़, कुम्भलगढ़, सूरतगढ़, सूरजगढ़, मेहरानगढ़, किशनगढ़, चितोडगढ़ अर अजीतगढ़। जका गांव कीं बड़ा हुवै, यानी स्हैर सरीखा, उण गांव रै छेकड़ में 'पुर' या 'नगर' लागै। करणपुर, केसरीसिंहपुर, पदमपुर, बीकमपुर, गंगापुर, सादुलपुर, श्रीगंगानगर इणरा उदाहरण है।
आज रो औखांणोऊजड़ खे़डा भल बसै, निरधनियां धन होय।गियो न जोबन बावड़ै, मूवो न जीवै कोय।।उजड़ा हुआ गांव फिर बस जाता है, निर्धन के पास धन होना भी सम्भव है, लेकिन बीता हुआ यौवन लौट कर नहीं आता और न ही मरा हुआ इंसान फिर से जीवित होता। उम्र का एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हर क्षण अमूल्य है।