बुधवार, फ़रवरी 17, 2010

कालीबंगा पर कविताएं कैसे ?


http://kankad.wordpress.com/2010/02/15/kagad/

नीरज दइया के शब्‍दों में वे वक्‍त के साथ आगे बढ़ने वाले कवि हैं. वे चंद्र सिंह बिरकाळी के सबसे चहेते कवियों में रहे और तैस्‍सीतोरी के धोरे पर काव्‍य पाठ करने वाले कवियों में से एक हैं. कवि हैं और दिल से कवि हैं.जागती जोत के संपादक रहे व राजस्‍थान क्रिकेट संघ की समिति के सदस्‍य भी. ओम पुरोहित कागद जिनकी मानव मात्र में भी उतनी ही आस्‍था जितनी ज्‍योतिष विद्या में. उनका मानना है कि रचनाकार को जमीनी होना चाहिए क्‍योंकि वही उसकी थाती है. कागद जी के दो काव्‍य संग्रह पिछले दिनों आए और विशेषकर कालीबंगा पर लिखी उनकी कविताओं की खासी चर्चा है. लीक से हटकर और इस विषय पर लिखी अपने आप में अनूठी कविताएं. हनुमानगढ़ में रहने वाले कागद जी नई कविताओं पर हाल ही में चर्चा हुई देखें……Prithvi's Blog कांकड़


मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

ढोली ढोल बजाओ,गैरिया गैर रमै

१० गैरिया गैर रमै
आपणी भाषा-आपणी बात


ढोली ढोल बजाओ,

गैरिया गैर रमै

-ओम पुरोहित 'कागद'


रंग रूड़ो राजस्थान। चोगड़दै रंगां री रेळ-पेळ। रंग-रंगीलै तीज-तिंवारां री छोळ। तातै लोही री राती होळी रमण री रीत। मोट्यार रंगारा। धरा रंगीजै। सीळवत्यां हथळेवै सूं सीधी अगन री पीळी झाळां साम्ही। रंगां री ऊजळी कीरत। आ कीरत होळी सूं कमती कद!


बसंत पांच्यूं धरा रंगीजै। रूंखां-झाड़कां, बांठकां माथै कूंपळां फूटै। फोगड़ा पांगरै। चीणा अर कणक माथै होळा लागण ढूकै। हरिया पानका। लाल, पीळा, केसरिया, हिरमिच, बैंगणियां अर धोळा पुहुप। फागण रो बाजै बायरियो। फूल-पानका लहरियो करै। फागणियो फरफरावै। लोगड़ा कैवै- भगवान किरसण फाग रमै। आठ्यूं सूं लागै होळका। होळी रो डांडो रुपै। मोट्यार साम्भै डफ, झींझा, बांकिया, थाळी, झालर, घूघरा, चिमटा अर ढोल। चूनड़ी रा साफा। लेहरियो, मोलियो, पंचरंगी पेचा बांध आय ढूकै चौपाळां। डांडिया रमै। तरवारां भांजै। लट्ठ बजावै। झीणी-झीणी गुलाबी सर्दी पड़ै। धूणी चेतन करै। डफ ताता करै अर बजावै। भेळा होय गोळ में गावै- 'उठ मिल लै रे भरत भाई, हर आयो रे, कै उठ मिल लै।' दूजै गोळ में सुणीजै- 'थारै तो कारण म्हैं मोहन हिरणी होई, होय हिरणी जंगळ सारो हेरयो रे।' 'ढोली ढोल बजाओ, गैरिया गैर रमै।' छोरयां आठ्यूं सूं ही गोबर रा बड़कूलिया बणावणां सरू करै। गोबर सूं शंख, तारा, झेरणो, गट्ट, चाँद, सूरज, पान, दिवलो, होळका री मूरत आद बणावै। होळी मंगळावण सूं पैली बड़कूलिया सूकै। आं री माळा बणावै। होळी रै दिनां बैनां भायां रै सिर सूं उंवारै। वारणा लेवै। भाई री लाम्बी उमर री कामना करै। आई उतार'र बड़कूलियां री माळा नै झळती होळी में न्हांखै। पून्यूं रै दिन होळी मंगळाइजै। इण दिन लोगड़ा छाणा, थेपड़ी, लकड़ी आद बळीतै री चौक में ढिगली करै। बड़कूलियां भेळीजै। ढिगली रै सूंऐ बिचाळै प्रहलाद रूपी खेजड़ी रो हरियो डाळो रोपीजै। पंडितजी मंगळावण रो मुहरत काढै। पूजा करै। बडेरो लांपो लगावै। होळी मंगळाइजै। कुंवारा मोट्यार इण प्रहलाद नै काढ भाजै। सुगनी झळ में सुगन देखै। झळ जिण दिस जावै उण दिस जमानो जबर बतावै। लोग-लुगाई होळी रै खीरां में पापड़, खीचिया, कणक रा सिट्टा सेकै। होळा करै। आं नै बारा म्हीनां साम्भै। मानता है कै ऐ पापड़-खीचिया टाबरां रो खुलखुलियो ठीक करै। कुंवारी छोरयां राख सूं पिंडोळ्यां बणावै। आं पिंडोळ्यां सूं सोळा दिन गवर पूजै। होळका मंगळावण रै दूजै दिन गैर रमीजै। इण दिन नै छारंडी, धुलंडी अर धूड़िया-फूसिया कैवै। लोग-लुगाई अर टाबर-बडेरा झांझरकै ई घरां सूं निकळै। हाथां में रंग-गुलाल, पिचकारी अर रंग री बोतलां। साथी-संगळी, भायेला-पापेला अर सग्गा सोई नै रंगै। टोळ रा टोळ बगै। धमाळां गावै। डफ बजावै। सूगला बोलै। मसखरियां करै। गळी-गळी में भाठां, डोलच्यां रा फटीड़ अर कोरड़ां रा सरड़ाट सुणीजै। देवर-भोजाई रंगण नै खसै। कादो मसळै। थोबड़ा ऐड़ा रंगीजै कै बेमाता ई नीं पिछाणै। गधे़डां चढै। मींगणां री माळा। खल्लां रा मौड़। डील माथै राख-धू़ड-कादो मसळै। मै'री नचावै। गैर रम्यां पछै भोजायां देवर अनै दूजां नै पैलड़ै दिन बणायोड़ा पकवान परोसै। कनाणा (बाड़मेर) री गैर, शेखावाटी री गींदड़, बीकाणै री अमरसिंघ हेड़ाऊ, मै'री री रम्मत अर हरसां-ब्यासां री होळी। भरतपुर री लट्ठमार होळी अर रसिया इणी दिन रंग में आवै।
हिरणाकुस री बैन होळका। होळका नै अगन सिनान रो वरदान। अगन सिनान सूं उणरो रूप निखरै। होळका रो भतीजो प्रहलाद बिस्णु रो भगत। हिरणाकुस बिस्णु नै मानै दुसमण। होळका प्रहलाद नै बाळ मारण री धारै। प्रहलाद नै गोदी में लेय'र अगन-सिनान करै। वरदान फुरै। होळका बळै। पण प्रहलाद बच जावै। इण री साख में होळी मंगळाइजै। हिरणाकुस री बैन होळका रो ब्याव राजस्थान रा ईलोजी साथै बसंत पांच्यूं नै तय। ईलोजी जान लेय'र ढूकै। होळका रै बळ मरण रो समचार मिलै। ईलोजी बगना हो जावै। गैलायां करै। भौमका जाय'र राख में लिटै। धूळ-कादो मसळै। लोगड़ा उण माथै पाणी फैंकै। गुलाल-कादो न्हाखै। ईलोजी बसंत पांच्यूं सूं पून्यूं तक गै'ला हुयोड़ा फिरै। छेकड़ हरीसरण होय देवता बणै। लोगां नै परचा देवै। एकर सीतळा माता वरदान देवै- ईलोजी रूसो मती ना, जिका थानै होळी रै दूजै दिन पूजैला, वांका कारज सरैला। बस उणी दिन सूं धुलंडी मनाईजै। इण दिन लोगड़ा ईलोजी दांई बगना होय गैलायां करता दोपारै तांईं गैर रमै। दोपारां पछै जाणकारां रै घरां राम रमी करण निसरै।

म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी

६ म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी
आपणी भाषा-आपणी बात



म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी

-ओम पुरोहित 'कागद'
कानाबाती- 9414380571


फागण बजै मदन-मास। कामदेव रो धरती पर वास। बसंत पंचमी सूं सरूआत। भळै कामदेव अर रति रा करतब। लोग-लुगायां रै मन पर धणियाप। सुरसत तजै रसना। आय बिराजै कामदेव अर रति। लोग-लुगायां री बूरीज्योड़ी काम-चेतना कोठै सूं होटै आवै। मोट्यार इण भड़ास नै डफ री ताल अर धमाळ में काढै। छोरै नै छोरी यानी मै'री बणावै। मै'री भेळा नाचै। फीटा बोलै। फीटा गावै। भाठां सूं खेलै। गई रात तांईं माल्ला ऊंचावै। छैल कबड्डी खेलै। 'हाड़ मिरकली हड़ियो चोर, हड़ियै री मां नै लेयग्या चोर' रमै। गधै-गधड़ी री सवारी करै। भोजायां साथै रिगळ करै। भांत-भांत सूं मन री हबडास काढै। लुगायां पण लारै क्यूं रैवै। देवर-भोजायां में कोरड़ा, लट्ठ, डोलची सूं फागण रमीजै।

मोट्यार आपरी दब्योड़ी भावना धमाळां में काढै। धमाळ अर चंग री थाप माथै नाचता काढै। इणी भांत लुगायां लूर गाय'र मन री हबड़ास काढै। लूर राजस्थानी लोकगीत-निरत। फगत लुगायां रो। होळी माथै ई गाईजै। लूर मतलब मन री लहर। लूर गावै छोर्यां-छापर्यां, जवान-बू़ढी-डोकर्यां अर बीनण्यां। लूर सारू गांव सूं कीं अळगी जावै। गौरवैं भेळी हुवै। गोळ घेरियो बनावै। नाचै-गावै- 'खेत तो खड़ियोड़ो पड़ियो, धरती धान मांगै रे।' लुगायां चंग, खड़ताळ, खंजरी, थाळी-बेलण अर ताळी बजावै। एक जणी मिनख बणै। उणसूं सगळी लुगायां किलोळ्यां करै- 'धोती में लांग है तो घाघरै में नाड़ो रे, खदबद बोलै राबड़ी गायां में पाड़ो रे, जमानो बोदो रे, हां हां जमानो बोदो रे, अखन कंवारी ले भागो जवान जोधो रे।' कंवारी पण परणावण सावै छोर्यां गावै-


'ए मां काकीजी नै कैयी कै मनै चू़डलो मंगाइद्यै ए
म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी
ए मां भावज नै कैयी कै मनै रखड़ी मंगाइद्यै ए
म्हैं खेलण जास्यूं लूरड़ी।'


लूर खेलण सारू लुगायां दो दळ बणावै। एक दळ गांवतो-नाचतो दूजै दळ री लुगायां सा'मीं जावै। सा'मली लुगायां गांवती-नाचती उणरो पडूत्तर देवै। पैलड़्यां नै पाछी आपरै पाळै ढुकावै। उण घड़ी रै गीतां मांय बांकी-बावळी बातां। फीटा इसारा होवै- 'काजळियो काढूं तो म्हारै नैणां पाणी आवै रे, ओढणियो ओढूं तो कोई लारै पड़ जावै रे, बालम रांडापो, हां रे बालम रांडापो, रामजी हराम होग्यो रे बालम रांडापो।'
लूर रै खेल में सवाल-जवाब होवै। एक दळ बोलै- 'बाई ए आटी-डोरा-कांगसी, सीस गुंथावा जाय।' दूजो दळ ऊथळो देवै- 'सा'मा मिलग्या सायबा कोई छाती धड़का खाय।' दूजो सवाल- 'बाई ए गोरी ऊभी गोखड़ै कोई गज-गज लाम्बा केस।' ऊथळो- 'साजन फेरी दे गया सजी कर जोगी को भेष'
लूर रमती लुगायां नै गांव रा मोट्यार छाना-छाना देखै। सांवळा होटां, मूंछ पाटता मोट्यार सगळां सूं आगै। पण जे किणी लुगाई री निजर उण माथै पड़ ज्यावै तो मत पूछो! बा गत बणै उणरी कै कई साल बो तो नांव ई नीं ल्यै लूर रो।
लूर नै लूअर, लूवर, लूरड़ी, लोहर, लूमर अर लूम्बू भी कैवै। लूर लगोलग दोय हजार बरसां सूं धुर मध्य एशिया में गाईजै-नाचीजै। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, अर उजबेकिस्तान में लूर री गूंज। मध्य एशिया अर हिंदुकुश परबत रै ताळ सूं ओमान नदी नै लांघतां लूर ढूकी मेसोपोटामिया रै सुमेरियन नाचां में। पच्छम रा सम्राट मिहिरकुल अर भारत रा खिलजी सम्राट अल्लाउदीन खिलजी रै दरबार में भी लूर रा रंग बरसता। गिरासिया अर नागजाति इण री खेवणहार। अब जणां मायड़भासा राजस्थानी में ई बीखो तो लूर रै खूटण-टूटण-छूटण नै कुण ढाबै?

'आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी'

२६ 'आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी' लेखमाळा 1 सदा भवानी दाहिनी
आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २६/३/२००९


आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी

आपणी भाषा-आपणी बात स्तंभ में आज सूं रामनवमी तांईं आपां राजस्थानी रा लूंठा लिखारा ओम पुरोहित 'कागद' रा नवरात्रां रै मंगळ मौकै सारू लिख्योड़ा खास लेख बांचस्यां। 27 मार्च नै घटस्थापना रै साथै ई देवी आराधना रा अनुष्ठान सरू व्है जावैला। 'आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी' लेखमाळा रै पैलै दिन आज जाणो नोरतां रो पूजन विधान।


सदा भवानी दाहिनी

-ओम पुरोहित कागद


राजस्थान रजपूतां-रणबंका री खान। पण सारू रण। पण पाळै अर रण भाळै। जीत री पाळै हूंस। हूंस पण स्यो-सगत रो वरदान। इणीज कारण स्यो रा गण भैरूं अठै पूजीजै। मां सगत दुरग रूखाळी। इणीज कारण दुरगा बजै। रणबंका खुद नै सगत रा पूत बतावै। मरूधरा रै कण-कण में रण री छाप। रण री देवी रणचंडी री ध्यावना आखो राजस्थान करै। नोरतां में तो कैवणो ई काँईं।घर-घर दुरगा री पूजा हुवै। सरूपोत में गजानंद महाराज अर सुरसत सिंवरीजै। भळै मात भवानी ध्यावै।


सिमरूं देवी सारदा। गुणपत लागूं पांय।।
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख होय गणेश।
पांच देव रक्षा करै, ब्रह्मा विष्णु महेश।।


एक साल में च्यार नोरता आवै। चैत, आसाढ, आसौज अर माघ रै चानण पख री एक्युं सूं नौमीं ताईं। चैत रा नोरतां नै वासन्तिक नौरता। आसाढ अर माघ रा नोरता गुप्त नोरता। आसोज रा नोरता बजै शारदीय नोरता। नोरता में जगजामण मां भागोती रै सैंकड़ूं रूपां री पूजा होवै। तीन मूळ देवियां- महालक्षमी, महाकाळी अर महासरस्वती। शक्ति रा उपासक आं री ध्यावना करै। शक्ति रा उपासक इणी पाण शाक्त बजै।
दीठमान जग रै सरूपोत में बिरमा जी परगट्या। एकला डरप्या। साथ री गरज पाळी। खुद रै ई रूप सूं देवी परगटाई।इण सारू बिरमा अर सगत में राई-रत्ती रो ई भेद नीं मानीजै। महादेवी कैवै- म्हैं अर बिरम सदीव एक हां। बुद्धि रै भरम सूं ई भेद लखावै। इणी जग जामण शून्य जगत नै पूरण करियो। महादेवी यानी महालक्ष्मी देवियां अर देव परगटाया। महालक्ष्मी पैली महाकाळी अर महासरस्वती नै प्रगट करी। भळै आं दोन्यां नै एक-एक स्त्री-पुरूष सिरजण री आज्ञा दीवी। खुद बिरमां अर लक्ष्मी नै सिरज्या। महाकाळी शंकर अर त्रयी नै। महासरस्वती विष्णु अर गौरी नै। पछै आपस में जोड़ा बनाया। शंकर-गौरी, विष्णु-लक्ष्मी, बिरमा-त्रयी(सुरसत) रा जोड़ा बण्या। भळै बिरमां अर सुरसत जगत रच्यो। विष्णु अर लक्ष्मी जगत नै पाळ्यो। शंकर अर गौरी परळैबेळा में जगतसंहार करियो।
महालक्ष्मी-महाकाळी अर महासरस्वती ई नौ देवियां परगट करी। शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी अर सिद्धिदात्री। आं रा दूजा रूप है-चामुंडा, वाराही, ऐन्द्री, वैष्णवी, महेश्वरी, कौमारी, लक्ष्मी, ईश्वरी अर ब्राह्मामी। नोरतां में इणी नौ देवियां री पूजा देवी भागवत मार्कण्डेय पुराण अर दुर्गासप्तसती में बताई विधि मुजब नौ दिनां तक होवै। पैलै दिन केश-संस्कार। दूजै दिन केश गूंथण-संस्कार। तीजै दिन सिंदूर-आरसी संस्कार। चौथै दिन मधुपर्क तिलक संस्कार। पांचवै दिन अंगराग-आभूषण संस्कार। छठै दिन पुष्पमाळा संस्कार। सातवैं दिन ग्रहमध्य पूजा। आंठवैं दिन उपवास अर पूजन। नौवैं दिन कुमारी पूजा। कुमारी कन्यावां नै जीमाइजै। दसवैं दिन पूजा करणियैं री पूजा अर जीमण, दान-दखणां। नौ रातां ताणी एकत करै। इणी कारण ऐ नौ दिन नोरता बजै।


नोरतां रो पूजन विधान


पैली घट थापना होवै। बेकळा री वेदी थरपीजै। वेदी में जौ-कणक रा ज्वारा बाईजै। इण माथै सोनै, चांदी, तांबै या माटी रो कळसियो धरै। कळसियै माथै देवी री फोटू लगावै। फोटू ना होवै तो कळसियै रै लारै साथियो। असवाड़ै-पसवाड़ै त्रिसूळ। पोथी या साळगराम धरै। पैलै नोरतै में स्वस्तिवाचन अर शान्ति पाठ कर'र संकळप लेईजै। भळै गणपत, षोडष मात्रिका, लोकपाळ, खेतरपाळ, नवग्रह, वरूण, ईष्टदेव री ध्यावना करै। प्रधान देवळ री षोडषोपचार सूं पूजा होवै। अनुष्ठान में महाकाळी अर महासरस्वती री पूजा होवै। नौ दिन तक दुर्गा-सप्तशती रा पाठ करै। नौ रातां दिवळो चेतावै। आधीरात, भखावटै अर दिनूगै जोत करीजै। सम्पदा चावणियां आठवैं दिन अर आखी धरती रै राज री मनस्या राखणियां नौवैं दिन माताजी री कढ़ाई करै। कढ़ाई रै दिन कुमारी पूजन होवै। कन्यावां नै देवी मान पग धोय'र गन्ध पुहुप सूं पूजा करियां पछै जीमावै। चूनड़ी-गाभा भेंटै। नोरतां में कन्यावां री पूजा रा फळ बखाणीजै। एक सूं एश्वर्य। दो सूं भोग अर मोक्ष। तीन सूं धर्म अर्थ अर काम। च्यार सूं राज्यपद पांच सूं विद्याङ्क्तबुद्धि। छै सूं षटकर्म सिद्धि। सात सूं राज्य। आठ सूं सम्पदा अर नौ सूं पिरथी री प्रभुता मिलै । दस वर्ष सूं कम री कन्यावां न्यारी-न्यारी देवी मानीजै। दो बरस री कन्या कुमारी। तीन बरस री त्रिमूर्तिनी। च्यार बरस री कल्याणी। पांच बरस री रोहिणी। छै: बरस री काळी। सात बरस री चंडिका। आठ बरस शाम्भवी। नौ बरस री दुर्गा अर दस बरस री कन्या सुभद्रा या स्वरूपा बजै।