सोमवार, मार्च 29, 2010

राजस्थानी कविता-पाठ ओम पुरोहित 'कागद'

हाइकू ई हाइकू


ओम पुरोहित कागद

चारूं कूंटां है
खड़ी भींतां ई भींतां
आदमी कठै?

मरजी थांरी
फरमान आपरै
चालै है सांसा।

जग री राड़
मिटै मिनखां मतै
कठै है मतौ?

सिर गिणल्यौ
बगै है आ दुनियां
पग उठायां ।

भेजौ कविता
छपै जागती जोत
बांचसी कुण?

नूंईं कहाणी
लेखक री खेचळ
बोदी डकार।

लुगाई जात
प्रेम रो सागर
डूबै जगत।


मोह बादळ
सावण री बिरखा
मा रो परस।

घंटी खडक़ै
टण टणण टण
नीं जागै देव।


बोदिया बांस
नीं टिकी बा छात
पडग़ी धच्च।

थांरी सोगन
परभात हो ई सी
म्हारी सोगन।

अंतस पीड़
ऊबकी खद बद
टपकी आंख्यां ।

पीळा पानड़ा
हवा सूं बतळावै
झड़स्यां अब ।

घर रो मोह
कदै नीं छूटियौ
छूट्या बडेरा।

आया बातां में
भर दी सै ढोलक्यां
पडग़या वोट ।

करगया कोल
पाछा ई नीं बावड्या
चूकगया दिखां ।

अंधारो घणो
चाईजै जै चानणौ
कर खटकौ ।

ऊंचौ है आभौ
मिल ई सी मंजल
पग तो उठा ।

सिराध नेड़ा
टंक टळसी अबै
मिलसी नूंता ।

जूनी झूंपड़ी
बिरखा अणथाग
भीतर टोपा ।

मंजल दूर
पूगणौ बी लाजमी
बिसाई छोड ।

फूटरौ मुंडौ
आरसी मुंदगियौ
करड़ कच्च ।

खोपड़ी फूटै
सुण जग री बातां
चा सुरडक़ ।

चुप हा जितै
देवता गिणीजता
बोल्यां मिनख ।

थां री बकरी
परायौ खेत चरै
दूई देखाण ।

झीणा जे गाभा
मन ऊजळौ राख
उल्लू रा पट्ठा ।

किताबां पढ
लिख नां ओ कूटळौ
रूंख बकसी ।

कित्ती ई लिखी
कित्ती न कित्ती छपी
ले लै ईनाम ।

दुनियां घूम्या
कोई नीं सुणै बात
घर ई भलौ ।
गयौ सूरज
पूरब सूं पछम
अंधार घुप्प ।

बातां भोत है
करां तो कीयां करां
सिर रौ डर ।

देखता जितै
उतरगी फोटूड़ी
घरड़ घच्च ।

धरती फाड़
निकळ्यौ भंपोड़
अरड़ झप्प ।

फाटक माथै
आंवता ई खुलियौ
चरड़ ड? चूं ।

बोल देखाण
अणबोली ककर
भासा दिराव ।

धरम निभै
गऊ माता आपणी
बोखड़ी रूळै ।

परमेसर
पंच-सरंपचड़ा
जे नीं जीतै तो?

चढै परसाद
धाप गिटै पुजारी
देवता मून।

संपादक जी
रोज लिखै कविता
आप ई छापै ।

चाळीस पोथी
ईनाम नै उड़ीकै
बण कामरेड ।

सोमवार, मार्च 15, 2010

ओम पुरोहित 'कागद' की कविताएं एक प्रस्तुति

राजस्थानी का भविष्य सुनहरा है : कागद


कवि और आलोचक नीरज दइया की वेब पत्रिका "नेगचार" में मेरा एक संवाद प्रकाशित हुआ है, साथ ही इस में एक वीडियो मेरी "कालीबंगा" कविता का जारी हुआ है http://www.youtube.com/watch?v=Bz_N16JttCQ - वर्तमान राजस्थानी कविता में एक भरोसेमंद नाम है कवि श्री ओम पुरोहित कागद । पिछले वर्ष श्री कागद के राजस्थानी में दो कविता संग्रह बोधि प्रकाशन, जयपुर से पंचलड़ी और आंख भर चितराम प्रकाशित हुए । इन दिनों आपकी कालीबंगा शीर्षक से लिखी कविताएं चर्चा में है । आपका ब्लॉग है- www.omkagad.blogspot.com इस पर कवि का पूरा परिचय और रचनाएं देखी जा सकती है । पिछ्ले दिनों किसी कार्य के सिलसिले में कागद जी सूरतगढ़ आए थे तब उनसे कुछ बातें हुई । उनकी बातों को प्रश्नोत्तरी रूप में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है-

यह चित्र एक संयोग है और मेरा सबसे पहला सवाल यही है कि क्या आप आरंभ से ही गांधीवादी विचार-धारा के रहे हैं ? यानी जो भी बुरा है उस से दूर रहते हैं ?

मैं गांधीवादी तो नहीं हूं वैसे मैं कोई वादी भी नहीं हूं लेकिन सम्मान सब का करता हूं । बुरे और बुराई से तो सबको दूर रहना चाहिए ….. पूरा संवाद देखें- www.wpnegchar.blogspot.com कालीबंगा शीर्षक कविताएं पढ़ें- http://omkagad.blogspot.com/2010/03/blog-post_5920.html और एक कविता-पाठ इन कविताओं का नए रूप-रंग में देख सकते हैं-

http://www.youtube.com/watch?v=Bz_N16JttCQ

बुधवार, मार्च 10, 2010

ओम पुरोहित ‘कागद’ री कवितावां…..


मा- १
घर मांय बी
निरवाळौ घर
बसायां राखै
म्हारी मा।
दमै सूं
उचाट होयोड़ी
नींद सूं उठ’र
देर रात ताणी
सांवटती रे’वै
आपरी तार-तार होयोड़ी
सुहाग चूनड़ी।
बदळती रे’वै कागद
हरी काट लागियोड़ा
सुहाग कड़लां
रखड़ी-बोरियै-ठुस्सी री
पुड़ी रा
लगै-टगै हर रात।

मा- २
साठ साल पै’ली
आपरै दायजै मांय आई
संदूक नै
आपरी खाट तळै
राख’र सोवै मा।
रेजगारी राखै
तार-तार होयोड़ी सी
जूनी गोथळी मांय
अर फेर बीं नै
सावळ सांवट‘र
राख देवै
जूनी संदूक मांय।
पोती-पोतां सागै
खेलतां-खेलतां
फुरसत मांय कणां ई
काढ’र देवै
आठ आन्ना
मीठी फांक
चूसण सारू।

मा- ३
मुं अंधारै
भागफाटी उठ’र
पै’ली
खुद नहावै
फेर नुहावै
तीन बीसी बरस जूनै
पीतळ रै ठाकुर जी नै
जकै रा नैण-नक्स
दुड़ गिया
मा रै हाथां
नहावंता-नहावंता।
मोतिया उतरयोड़ी
आंख रै सारै ल्या
ठाकुर जी रो मुंडौ ढूंढ’र
लगावै भोग
अर फेर
सगळां नै बांटै प्रसाद
जीत मांय हांफ्योड़ी सी।

मा- ४
टाबरां मांय टाबर
बडेरां मांय बडेरी
हुवै मा।
टाबरां मांय
कदै’ई
बडेरी
नीं हुवै मा।
पण
हर घर मांय
जरुर हुवै मा
रसगुल्लै मांय
रस री भांत।

मंगलवार, मार्च 09, 2010

आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी

४ आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी
दैनिक भास्कर के अनुरोध पर पाठकों के लिए ओम पुरोहित कागद ने देवी आराधना की यह विशेष लेखमाला लिखी, जिसका आओ म्हारै कंठां बसो भवानी लेख के साथ समापन कर रहे हैं। लेखक श्री कागद राजस्थानी शिक्षा विभाग में चित्रकला अध्यापक हैं और वर्तमान में जिला साक्षरता समिति हनुमानगढ़ के जिला समन्वयक हैं। पाठकों ने इन लेखों को खूब पसंद भी किया। उनकी सुविधा के लिए लेखक का मोबाईल नंबर ९४१४३-८०५७१ और ईमेल भी दे रहे हैं ताकि पाठक उन्हें बधाई दे सकें।


आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी


-ओम पुरोहित कागद



राजस्थान में सगत पूजा री खास परापर। अठै रै जोधावां री सगती अपरम्पार। मिंदरां में गूंजै बाणी- तरवारां री टणकार आभै ताणी। जण-कण तरवारधणी। तिरसी मरूधरा री तिरस रगत सूं मेटी। रणचंडी रण में अर दुरगा दुरग में रिछपाळ करी। इणी रै पाण आखै राजस्थान में जगजामण मा सगत भवानी रा अलेखूं थान। थानां-मिंदरा में गूंजै बाणी-

आओ, म्हारै कंठा बसो भवानी।
थे धौळा रे गढ़ री राणी।।

राजस्थान में देवी रै सगळै रूपां री ध्यावना। नोरतां में पण देबी री खास पूजा। २७ मार्च सूं ३ अप्रेल ताणी रैया नोरता। नोरतां रो बरत राखणियां आज बरत खोलसी। पूजा करणियां नै दखणा दिरीजसी। इणी रै साथै ही नोरतां री पूजा पूरीजै। आओ, जाणां राजस्थान में किण-किण ठोड किण-किण मिंदरा में होई माताजी री पूजा।
शास्त्रां में बखाणीजी मूळ देवियां। लोक-देवियां। चौफैर चावी देवियां। चारणी-देवियां। वन-देवियां, सगत-देवियां। मावड़ियांजी। चौसठ जोगणियां। नौ दुरगा, दस महाविद्यावां। सोळा मातावां। कोई नगर-गांव ऐडो नीं जठै देवी रो मिंदर नीं।
अठै महालक्ष्मी, महासरस्वती अर महाकाळी सरीखी मूळ देवियां सूं लेय'र सतियां तक रा मिंदर। शास्त्रां में बखाणीजी पार्वती, उमा, सरस्वती, लक्ष्मी, राज लक्ष्मी, गंगा, गायत्री, यमुना, महेश्वरी, वैष्णवी, ब्रह्माणी, वाराही, नारसिंही, कौमारी, काळी, चंमुडा, ऐन्द्री, शाकम्भरी, भ्रामरी, त्रिपुरा-सुदरी, भवानी, जया, विजया, शाम्भवी, वनदुर्गा, मातंगी, कराला, विमला, कमला, नारायणी, भद्रकाळी, कात्यायनी, सावित्री, भगवती, अन्न्पूर्णा, संतोषी, ईश्वरी, जयंती, धात्री, जगदम्बा, महादेवी, महामाया, गौरी, रमा, शैलपुत्री, ब्रह्माचारणी, चंद्रघंटा, महातारा, बगुलामुखी, छिन्नमस्ता, घूमावती, भुवनेश्वरी, कमला, त्रिपुरा, भेरवी, ललिता, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धि-दात्री, तकात री ध्यावना।



देवियां रा मिंदर ठोड-ठोड



आईमाता(बिलाड़ा), जमवाय माता(अजमेर), ऊंटा देवी(जोधपुर), खोखरी माता(तिंवरी), उष्ट्र-वाहिनी(बीकानेर), सचियाय माता(ओसियां), जीण माता, आवड़ माता(झुन्झुनू), अरबुदा, अधरदेवी, अगाई, ज्वाला देवी(आबू), शिला देवी(आमेर), लक्ष्मीनारायण मंदिर(जयपुर, बीकनेर), सास-बहू(नागदा), अंबिका माता(जगतपुरा), सामीजी नसियां(अजमेर), सावित्री(पुस्कर), काळका माता (चित्तोड़), दधिमति माता(जायल), भांवल माता(भांवल-मे़डता), सात सहेली(झालरापाटन), गंगा मंदिर(भरतपुर), शारदा देवी(पिलाणी), शाकम्भरी(शाकम्भरी), मंदोदरी माता(महेदरा-जोधपुर), त्रिपुरा सुंदरी(तलवाड़ा), भद्रकाळी(अमरपुरा थे़डी), बिरमाणी(पल्लू), मुसाणी (मोरखाणा), जाबर(उदयपुर), केला देवी(करौली), संगियां-स्वांगिया(जैसलमेर), सकराय(जयपुर), शीला देवी(झालावाड़), चाहिनी(लोद्रवा), शीतला माता(वल्लभनगर), बीज माता(देवगढ़), नरकंकाळी(बिजोळिया), मनसा, खेरतल, राजेश्वरी(भरतपुर), सूंधा(जालौर), जोबनेर, वसुंधरा, विंध्यांवासिनी, भवाळ(जोबनेर), वकेरण(भींडर), जोगण्यां(बेगूं), काळका(भींडर), आईमाता(मीठी धाम), करणी माता(देशनोक), जीण माता(सीकर), जिळाणी(बहरोड), सकराय(उदयपुरवाटी), इया माता(गावड़ी), आमजी(केलवाड़ा), आशापुरा(पोकरण), लटियाळ(लुद्रवा, फळोदी, बीकानेर), भादरिया माता(भादरियाजी), चक्रेश्वरी(जोधपुर), नागणेचियां(नागाणा), कातणियां, मेहरवाणियां(जैसलमेर), तन्नौट माता(तन्नौट), राड़द्रीजी, बायांस(सिरोही), हेमड़ेराय माता(भू-गोपा), हिंगळाज, आवड़ा, कालेडूंगर, भादरिया, पवगादरिया, नारायणी(राजगढ़), नागणेची(बीकानेर), दसविद्या मंदिर शनिशक्ति पीठ(जोधपुर), इण रै अलावा चारणी देवियां रा अलेखूं मिंदर। चारणां री आद देवी हिंगळाज देवी। हिंगळाज रो अवतार आवड़ अर आवड़ री अवतार करणी माता। चारणां रै अठै देवी रा नौ लाख साधारण अर चौरासी असाधारण अवतार होया है। हिंगळाज, बांकळ, खूबड़, आवड़, खोडियार, गुळी, अम्बा, बिरवड़ी, देवल, लाछा, लाल बाई, फूल बाई, करणी, बैचरा, बीरी, मांगळ, सैणी, नागल, कामेही, सांइंर् नेहड़ी, माल्हण, राजल, गीगाय, मोटवी, चांपल, अणदू, साबेई, शीला, देमा, इंदूकंवरी, सोनळ, आद चावी चारणी देवियां मानीजै।
राजस्थान में रावतियां, रावरियां, रावतरियां, रेवतियां सात लोक देवियां री पूजा। रावतियां में सात ऊजळी अर सात मैली। ऐ सप्तमातरका सात मातावां अर सात मावड़ियां बजै। बायांसा जोगणियां ऊपरलियां, बींझबायल्यां अर काळी डूंगरयां री गांव-गांव में ध्यावना। देवियां रै इण मिंदरां में नोरतां में जागण होवै। जोत करीजै। चरजा करीजै। शांति में सिंघाऊ चरजा। भक्ति-विपती में धाड़ाऊ चरजा। पण सुख में चरजा नीं करीजै। माताजी जियां हाल तक तूठ्यां उण सूं सवाया तूठै आपनै। जय माताजी री!

दुरगा अष्टमी री धिराणी महागौरी

३ दुरगा अष्टमी / श्रीरामनमी
आपणी भाषा-आपणी बात



दुरगा अष्टमी री धिराणी महागौरी

-ओम पुरोहित कागद


आज आठ्यूं-नोम्यूं भेळी। आठवों-नौवों नोरता भेळा। आज माताजी रै दो सरूपां री पूजा। महागौरी अर सिद्धिदात्री। आठ्यूं बजै दुरगा अष्टमी। नोम्यूं बजै महाष्टमी।
माता दुरगाजी रो आठवों रूप महागौरी। आप रो रूप जबर गोरो। आप रो पैराण भी गोरो। धोळा गाभा। आपरी उमर आठ बरस री मानीजै। दुरगा अष्टमी री धिराणी महागौरी। आपरै च्यार हाथ। जीवणै पासै रै एक हाथ में तिरसूळ। दूजो हाथ वरदान देवण री छिब में। डावै पासै रै एक हाथ में डमरू। दूजो हाथ डर भगावण री छिब में। महागौरी री सवारी बळद। आपरी पूजा सूं तुरता-फुरत अर ठावा फळ मिलै। फळ पण अचूक अर बिना मांग्यां मिलै। इणां री ध्यावणां सूं पापां रो हरभांत सूं कल्याण होवै। भगतां रा पुरबला पाप मिटै। आगोतर सुधरै। परलै लोक री सिध्यां मिलै। जका भगत दूजां नै टाळ फगत महागौरी नै ध्यावै, वांरा मनोरथ फळै। इंछाफळ मिलै।
महागौरी पूजा आठ्यूं नै होवै। इण दिन ध्यावणिया वरत करै। आठ्यूं नै कढाई भी बणै। कढाई में रंधै सीरो। सीरै रो माताजी रै भोग लागै। आखै दिन श्री दुर्गा-सप्तसती रो पाठ होवै। इण दिन कुंवारी छोर्यां री पूजा होवै। कन्यावां नै कंजका रूप पुजीजै। पग धोय जीमाईजै। चूनड़ी-गाभा अर दखणा भेंटीजै।


अष्ठसिद्धि अर नवनिधि री दाती सिद्धिदात्री


माता जी रो नोवों सरूप सिद्धिदात्री। संसार में नव निध्यां अर अष्ठ सिध्यां बजै। आं नै देवण आळी माताजी सिद्धिदात्री। निध्यां अर सिध्यां री भंडार। सामरथवाण। आद देव स्यो भी सिध्यां बपरावण सारू आं री सरण गया।
जगजामण मात भवानी सिद्धि दात्री रै च्यार हाथ। जीवणै हाथां में गदा अर चक्कर। डावै हाथां में पदम अर शंख। सिर माथै सोनै रो मुगट। गळै में धोळै फूंलां री माळा धारै। कमल पुहुप आसन। इणी कारण एक नांव कमलासना। मात भगवती सिद्धिदात्री री ध्यावना सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता, असुर अर माणस सगळा करै। नौवैं नोरतै आं री खास पूजा। खास अराधना। नौंवै, नोरतै री पूजा होवै। नूंत जीमाईजै। दान-दखणां देईजै। इण कारण ओ दिन कुमारी पूजा रो दिन बजै। जपियां, तपियां, हठियां, जोधावां, छतर्यां अर जोग्यां री साधना फळै। मनवांछत फळ मिलै। अलभ लभै। भगतां में सो कीं करण री सहज सगती संचरै।


रामनमी सांवटै पूरबलां रा पाप


आज ई श्रीरामनमी भी। आज रै ई दिन पुनरवसु नखत में भगवान विष्णु आयोध्या में राजा दशरथ अर माता कौशल्या रै घरां श्रीराम रूप औतार लियो। श्रीराम औतार रो दिन होवण रै पाण ई आज रो दिन रामनमी। आज रै दिन विष्णु भगवान रा भगत विष्णुजी नै धोकै। बरत करै। खास पूजा करै। इण दिन झांझरकै ई संपाड़ा कर पूजा सारू ढूकै। घर रै उतराधै पसवाड़ै पूजा मंडप बणावै। ऊगतै पासै शंख, चक्कर अर हनुमानजी री थापना करै। दिखणादै बाण, सारंग, धनख अर गरूड़जी। पच्छम में गदा, खड़ग अर अंगदजी। उतराधै पदम, साथियो अर नीलजी थरपै। बिचाळै च्यार हाथ री बणावै वेदका। वेदका माथै सोवणां-मोवणा गोखड़ा अर तोरण सजावै। इण मोवणै मंडप में श्रीराम री थापना करीजै। कपूर अर घी रो दीयो चेतन करै। दीयै में एक, पांच या इग्यारा बाट धरीजै। थाळी में धूप अगर, चनण, कमल पुहुप, रोळी-मोळी, सुपारी, चावळ, केसर अर अंतर धर'र आरती करीजै। आखै दिन श्रीरामचरितमानस रा अखंड पाठ चलै। आठ्यूं-नोमी भेळी होयां विष्णु भगत बरत दस्यूं नै खोलै। मानता कै रामनमी रो बरत-पूजा करणिया पुरबला पापां सूं मुगत होवै। सगळै जलमां रा पाप सांवटीजै। भगतां नै विष्णु लोक में परमपद मिलै।
आज छेकड़लो नोरतो। इणी दिन नोरतां री महापूजा। काल दस्यूं। दस्यूं नै पूजा-पाठ करणियां नै दान-दखणां देय बिदा करीजै। राजस्थान रै सगळै देवी मिंदरां में नो दिनां ताणी देवी री पूजा होई। काल जाणस्यां राजस्थान रा ठावा देवी मिंदर। इणी रै साथै पूरीजसी नोरतां री खास लेखमाळा 'आओ, म्हारै कंठा बसो भवानी'। जै माताजी री!

सदा सुब करै काळी माता

२ सदा सुब करै
आपणी भाषा-आपणी बात



सदा सुब करै काळी माता

-ओम पुरोहित कागद


आज सातवों नोरतो। माता दुरगाजी रो काळरात सरूप। माताजी रै इण रूप नै काळी माता अर काळी माई बखाणीजै। कालरात्रि पण आपरो नांव। इण माताजी रो डील अंधारैमान काळो। सिर रा बाळ खिंडायोडा। गळै में बीजळी दाईं चमकती माळा। काळी माता रै तीन आंख्यां। नासां री सुंसाड सागै अगन री लपटां निसरै। आं री सुवारी गधे़डो। काळी माता रै च्यार हाथ। जीवणै पासै रो ऐक हाथ डरमुगत करण री अर दूजो हाथ वरदान देवण री छिब में। डावै पासै रै ऐक हाथ में लो' रो कांटो अर दूजै हाथ में तरवार। काळी माता रो सरूप देखण में जबर डरावणो। विकराळ। ऐ माता जी पण हरमेस भला फळ देवण आळी। हरमेस सुब-सुब ई करै। इण कारण इणां नै शुभंकरी भी कैईजै।
काळी माता नै घोर जपिया जपै। तपिया तपै। जादूगर इण माताजी रा लूंठा भगत। इंदरजाळ अर काळो जादू सीखण आळा काळी माता नै ध्यावै। लोगड़ा आपरै टाबरां नै उपरळी बीमारयां सूं बचावण रै मिस धोकै। भूत-प्रेत, टूणा-टसमण अर लाग-बांध नै टाळण सारू काळी माता नै ध्यावै। काळी माता री पूजा सात्यूं नै करीजै। इण दिन माताजी री पूजा घर रै बिचाळै करीजै। जोग्यां अर साधकां रो मन इण दिन सहस्त्र चक्कर में थिर रैवै। इण चक्कर में थिर मन रै लोगां सारू सिध्यां रो दरूजोखुल जावै। इण दिन साधक, तपिया, जपिया अर जोग्यां रा मन काळी माता रै मन में बिराजै। माता काळका भगतां रा दुख मेटै। सुख बधावै। दुष्टां रो खैनास करै। गिरै-गोचर री भिच्च यां दूर करै। माताजी रा साधक डरमुगत होय भंवै।
बंगाल में काळी माता री पूजा रा न्यारा ठरका। बंगाल रै घर-घर में काळी पूजा होवै। बठै री परापर में काळी पूजा री ठावी ठोड। मिंदरां में आरत्यां गूंजै। माताजी रै सरूप नै माटी सूं बणावै। भांत-भांत सूं सजावै। लूंठी-लूंठी देवळ्यां री सोभा-जातरा काढै। बंगालवासी जे बंगाल सूं बारै होवै तो इण दिनां पाछा बावड़ै। पाछो बावडंनो जे दौरो होवै तो जठै रैवै बठै ई काळी पूजा करै। राजस्थान में रैवणियां बंगाली चावना अर ध्यावना सूं काळी पूजा करै।

कालीबंगा: कुछ चित्र


1
इन ईंटों के
ठीक बीच में पडी
यह काली मिट्टी नहीं
राख है चूल्हे की
जो चेतन थी कभी
चूल्हे पर
खदबद पकता था
खीचडा
कुछ हाथ थे
जो परोसते थे।


आज फिर
जम कर हुई
बारिश
पानी की चली
लहरें
कालीबंगा की गलियों में
लेकिन नहीं आया
भाग कर
कोई बच्चा
हाथों में लेकर
कागज की नाव
हवा ही लाई उडाकर
एक पन्ना अखबार का
थेहड को मिल गया
मानवी स्पर्श।

3
थेहड में सोए शहर
कालीबंगा की गलियाँ
कहीं तो जाती हैं
जिनमें आते जाते होंग
लोग
अब घूमती है
सांय-सांय करती हवा
दरवाजों से घुसती
छतों से निकलती
अनमनी
अकेली
भटकती है
अनंत यात्र में
बिना पाए
मनुज का स्पर्श।

4
न जाने
किस दिशा से
उतरा सन्नाटा
और पसरता गया
थिरकते शहर में
बताए कौन
थेहड में
मौन
किसने किसे
क्या कहा - बताया
अंतिम बार
जब बिछ रही थी
कालीबंगा में
रेत की जाजम।

5
कहाँ राजा कहाँ प्रजा
कहाँ सत्तू-फत्तू
कहाँ अल्लादीन दबा
घर से निकलकर
नहीं बताता
थेहड कालीबंगा का
हड्डियाँ भी मौन हैं
नहीं बताती
अपना दीन-धर्म।

6
इतने ऊँचे आले में
कौन रखता पत्थर
घडकर गोल-गोल
सार भी क्या था
सार था
घरधणी के संग
मरण में।
ये अंडे हैं
आलणे में रखे हुए
जिनसे
नहीं निकल सके
बच्चे
कैसे बचते पंखेरू
जब मनुष्य ही
नहीं बचे।

7
मिट्टी का
यह गोल घेरा
कोई मांडणा नहीं
चिह्न है
डफ का
काठ से
मिट्टी होने की
यात्र का।
डफ था
तो भेड भी थी
भेड थी
तो गडरिए भी थे
गडरिए थे
तो हाथ भी थे
हाथ थे
तो सब कुछ था
मीत थे
गीत थे
प्रीत थी
जो निभ गई
मिट्टी होने तक।
राजस्थानी से अनुवाद - मदन गोपाल लढ़ा

(८)
बहुत नीचे जाकर
निकला है कुआं
रास के निसान
मुंह की
समूची गोलाई में
बने हैं चिन्ह
मगर नहीं बताते
किस दिशा से
कौनसी जाति
भरती थी पानी.
कालीबंगा का मौन
बताता है
एक जात
आदमजात
जो
साथ जगी
साथ सोई
निभाया साथ
ढेर होने तलक.
(९)
खुदाई में
निकला है तो क्या
अब भी जीवित है
कालीबंगा शहर
जैसे जीवित है
आज भी अपने मन में
बचपन
अब भी
कराता है अहसास
अपनी आबादी का
आबादी की चहल-पहल का
हर घर में पड़ी
रोजाना काम आने वाली
उपयोगी चीजों का
चीजों पर
मानवी स्पर्श
स्पर्श के पीछे
मोह-मनुहार
सब कुछ जीवित हैं
कालीबंगा के थेहड़ में.
(१०)
इधर-उधर
बिखरी
अनगिनत ठीकरियां
बड़े-बड़े मटके
ढकणी
स्पर्शहीन नहीं है.
मिट्टी
ओसन-पकाई होगी
दो-दो हाथों से.
जल भर
ढका होगा मटका
हर घर में
किन्हीं हाथों ने
सकोरा भरकर जल से
मिटाई होगी प्यास
अपनीओर आगंतुक की
कालीबंगा का थेहड़
आज भी समेटे हैं स्मृतियां
छाती पर लिये
अनगिनत ठीकरियां.

(११)
काली नहीं थी
कोई बंग
वस्त्र भी नहीं थे
मिट्टी सने जीवाश्म
जो तलाशे हैं आज
बोरंग चूनरी
केसरिया कसूम्बल में
सजी सुहागिनें
खनकाती होगी
सुहाग पाटले
लाल-पीले-केसरिया
वक्त के विषधर ने
डाह में डसा होगा
तब ही तो उतरा है
रंग बंग पर काला
कालीबंगा करता
सोनल अतीत को.
(१२)
ये चार ढेर
मिट्टी के
ढेर के बीचोबीच
नर कंकाल.
ढेर नहीं
चारपाई के पाये हैं
इस चारपाई पर
सो रहा था
कोई बटाउ
बाट जोहता
मनुहार की थाली की
मनुहार के हाथों से पहले
उतरी गर्द आकाश से
जो उटाई है
आज आपने
अपने हाथों
मगर सहेजें कौन ?
(१३)
सूरज
फ़िर तपा है
चमका है
धरा का कण-कण
कालीबंगा के थेहड़ में
नहीं ढूंढता छांह
तपती धूप में
न कोई आता है
न कोई जाता है
है ही नहीं कोई
जो तानता
धूप में छाता
वो देखो
चला गया
पूरब से पश्चिम
थेहड़ को लांघता
सूरज.
(१४)
ऊंचे
डूंगर सरीखे
थेहड़ तले
निकली थी हांडी
उसके नीचे
बचा हुआ था
ऊगने को हांफ़ता बीज
नमी पाकर
कुछ ही दिनों में
फ़ूट गया अंकुर
सामने देखकर
अनंत आकाश मेम
कद्रदान अन्न के.
(१५)
सब थे
उस घड़ी
जब
बरसी थी
आकाश से
अथाह मिट्टी
सब हो गए जड़
मिल गए
बनते थेहड़ में
आज फ़िर
अपने ही वशंजो को
खोद निकाला है
कस्सी
खुरपी
बट्ठल-तगारी ने !

(१६)
मिला है जब
कालीबंगा के थेहड़ में
राजा का बास
तो जरूर रहे होंगे
अतीत के आखर
कैसे मिट गए लेकिन
किसी ने जरूर
भगाई होगी भूख
कुछ दिन
तभी तो मिलता है
अस्थिपंजरों में
इतिहास कालीबंगा का.
(१७)
हांती-पांती
हक की लड़ाई
जरूर मची होगी
राजा-प्रजा में
कालीबंगा के भले दिनों
थेहड़ होने से पहले
जीती आखिरी जंग
कारू-कामगारों ने
बताते हैं
थेहड़ में मिले
दांती-कस्सिया-हंसिया
निश्चय ही
राजा ही भागा
आंगन में पड़ी
हाथी दांत की तलवारें
भरती हैं साख
पर उसके खोज
मिले कैसे ?
(१८)
भरपूर हुई फ़सल
बचे थे
कुछ पैसे
गुल्लक में रखकर
गाड़ दिए
धरती में
इनसे ही
करने थे
हाथ पीले
लाडली के
वे ही तो निकले हैं
कालीबंगा की खुदाई में
थेहड़ की कोख से
लाडली कब ब्याही !
(१९)
आई होगी
राजा की मदद
अपघटित के बाद
आज की तरह
कालीबंगा में
मिला होगा
सूना थेहड़
अनबोला सिसकता
अंदर ही अंदर
पर कौन सुनता
सुनता हे कौन
अंदर की बात
बस लांघते रहे थेहड़
बिचारे दिन-रात
काल को टरकाते
पन्ने कौन पलटता
पंचाग के
दीमक की भूख
मिटी कुछ दिन.
(२०)
यह
ऊंचा ढेर
मिट्टी का
केवल मिट्टी नहीं
दीवार है साळ की
दीवार में छेद
बेवजह नहीं है
इसमें थी खूंटी
काठ की
जिस पर
खेत से लौटकर
टांगा था कुरता
घर के बुजुर्ग ने
और
आराम के लिए
बंद की थी आंख
जो फ़िर नहीं खुली.
(२१)
कौन कहता है
इसे कीड़ीनगरा
चाहे
चींटिया आए-जाए
घूमे
बिल दर बिल
प्रत्यक्ष है
मिट्टी बनी बांसुरी
बांसुरी के छिद्रों में
घूमती है चींटिया
सुनती है
धीमी रागिनी
जो गूंजती है अब भी
ग्वालों के कंठों से निकलकर
कालीबंगा के
सूने थेहड़
सूनी गलियों में.
अनुवाद- मदनगोपाल लढ़ा
संपर्क- २४, दुर्गा कॊलोनी, हनुमानगढ़ संगम.
मो.-०९४१४३८०५७१ E-mail- omkagad@gmail.com

हाथ: पांच चित्र / ओम पुरोहित "कागद"




(१)
खुदा देता है
सब को
दो-दो हाथ
जन्म के साथ ही
दुआ-दया-खिदमत
इनायत के लिए
फ़िर भी
कुछ लोग
दो-दो हाथ
कर लेने का
भ्रम पालते हैं
फ़िर
उठ ही जाते हैं हाथ
बद सबब में.

(२)
मेरे हाथ
मेरे कंधों पर थे
फ़िर भी
लोगों ने
मेरे हाथ ढूंढे
क्रांतियो में
भ्रांतियो में
यानी
तमाम अपघटितों में
बेबाक गवाहियां
निर्लज्ज पुष्टियों में थी
जबकि मैं
असहाय मौन
दूर खड़ा
दोनों हाथ
मलता रहा.

(३)
कुछ लोग
जुबान चला रहे थे
कुछ लोग
हाथ चला रहे थे
कुछ लोग
इन पर
बात चला रहे थे
मामला शांत हुआ !
अब
लोग बतिया रहे थे;
मामला सुलझाने में
हमारी जुबान थी
कुछ ने कहा
हमारी बातों का
सिलसिला था
कुछ ने कहा
इस समझाइश में तो
हमारा ही हाथ था
में
ढूंढ रहा था
उन हाथों को
जिसने रचा था
इस घटनाक्रम को
आद्योपांत !

(४)
बहुत लोग थे वहीं
सब के सब
समझदार थे
धाए हुए भी थे
उनके बीच
किसी के हाथ
आसमान की ओर उठे
लोगों ने समझा
मांगेगा
या
मारेगा
कोई न था वहां
जो समझता
हाथ
कभी-कभी
दुआ में भी
उठते हैं.

(५)
लोगों ने
हाथ से हाथ मिलाए
दूर तक चलने की
शपथ ली
निकल भी पड़े
साथ-साथ
यात्रा में
किसी
मनचाही मंजिल की ओर
लेकिन
मन दौड़ रहे थे
विपरीत दिशाओं में
यात्रा के अंत में
लोग ढूंढ रहे थे
एक दूसरे का हाथ
खाली हाथ लौटने में
संपर्क- २४, दुर्गा कॊलोनी, हनुमानगढ़ संगम.
मो.-०९४१४३८०५७१ E-mail- omkagad@gmail.com

शुक्रवार, मार्च 05, 2010

कार्तिकेय जननी स्कन्द माता

३१ कार्तिकेय जननी स्कन्द माता
आपणी भाषा-आपणी बात



कार्तिकेय जननी स्कन्द माता

-ओम पुरोहित कागद


आज माताजी रो पांचवों नोरतो। चौथै नोरतै री धिराणी स्कंद माता। स्कन्द माता दुरगाजी रो पांचवों सरूप। स्कन्द रो एक नांव कार्तिकेय भी। कार्तिकेय पण माताजी रो लाडेसर बेटो। कार्तिकेय री जामण होवण रै कारण ई इण सरूप रो नांव स्कन्द माता। देवतावां रै बैरी तारकासुर नै स्कन्द माता जमलोक पुगायो। माताजी रै च्यार हाथ। जीवणै पसवाड़ै रै एक हाथ सूं आपरै लाडेसर नै गोद्यां बैठाय'र झालियोड़ो दूजै हाथ में कमल पुहुप। डावै पसवाड़ै रै एक हाथ में आसीस छिब। दूजै हाथ में भळै कमल पुहुप। सिर माथै सोनै रो मुगट बिराजै। कानां में सोनै रा गैणा। सिंघ री सवारी। स्कन्द माता संसार्यां नै मोख दिरावै। ध्यावणियां भगतां री मनस्यावां पूरै। पांचवै नोरतै में ध्यावणिया जोग्यां रो मन विशुद्ध चक्र में थिर रैवै। इण कारण ध्यावणियां रै मनबारै री अनै भीतरली चित्त वरत्यां रो लोप हो जावै। पांचवै नोरतै नै साधक माताजी रै अंगराग अर चनण रा लेप करै। भांत-भांत रा गैणा-गांठा पैरावै।


लिछमी पांच्यूं


आज लिछमी पांच्यूं भी। लिछमी भी माताजी रो एक सरूप। लिछमीजी कमल आसन माथै विराजै। कमल मतलब पदम। इण सारू आप रो एक नांव पदमासना भी। बिणज-बौवार करणियां नैं माताजी रो ओ रूप डाडो भावै। ऐ लोग माताजी रै लिछमी रूप नै ध्यावै। बिणज अर धन रै बधेपै री कामना करै। माताजी बां रा मनोरथ पूरै।


खाता उल्टा पल्टी रो दिन


बिणज-बोपार में आज रो दिन रोकड़ खाता पल्टी रो। वित्तीय लेखा बरस रो पैलो दिन। इण दिन बोपारी हिसाब फळावै। लेण-देण चुकावै। तळपट मिलावै। आपरै बिणज री बईयां बदळै। रोकड़, खाता अर चौपड़ी पलटै। लेण-देण री खतोन्यां खतावै। नूवीं बईयां री पूजा करै। नूवीं रोकड़, खाता अर चौपड़ी रै पैलै पानै माथै 'गणेशाय नम:' लिखै। रोळी सूं साथियौ (साखियौ) मांडै। उण माथै पान-सुपारी, रोळी-मोळी अर फळ-प्रसाद चढावै। दूजै पानै माथै लिखै- 'लिछमीजी महाराज सदा सहाय छै। लाभ मोकळा देसी।' इणी माथै लिछमी सरूप 'श्री' इण भांत लिखै-

श्री
श्री श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री

इण रै असवाड़ै-पसवाड़ै 'शुभ-लाभ' अर 'रिद्धि-सिद्धि' लिखै। रोळी कूं-कूं चिरचै। चावळ भेंटै। नूंई लेखणी-कलम-कोरणी बपरावै। इण माथै भी मोळी बांधै। अब पण लोगड़ा कम्प्यूटर-लेपटाप बपरावै तो इण जूंनी परापर नै कठै ठोड़!

मधरी-मधरी मुळकै कूष्माण्डा

३० कूष्माण्डा/ राजस्थान-दिवस
आपणी भाषा-आपणी बात



मधरी-मधरी मुळकै कूष्माण्डा

-ओम पुरोहित कागद


आज माताजी रो चौथो नोरतो। चौथै नोरतै री धिराणी कूष्माण्डा माता। कूष्माण्डा कैवै कूम्हड़ै अर पेठै नै। ब्रह्मांड पैठै-कुम्हड़ैमान। इणी कूष्माण्डामान ब्रह्मांड री सिरजणहार माता कूष्माण्डा। दुरागाजी रै इणी चौथै सरूप रो नांव कूष्माण्डा माता। कूष्माण्डा री मधरी-मधरी मुळक। इणी मधरी मुळक सूं अण्ड अर ब्रह्मांड नै सिरज्या। अण्ड अर ब्रह्मांड री सिरजणां रै पैटै दुरगा रै इण सरूप नै कैवै कूष्माण्डा माता। ब्रह्मांड री सिरजणहार होवण रै पाण ई आप सिरस्टी री आद-सगत। आप रै सरीर रो तप-औज सुरजी मान पळपळावै। कूष्माण्डा माता रै आठ हाथ। इणी पाण आप अष्टभुजा देवी भी बखाणीजै। आप रै जीवणै पसवाड़ै रै च्यार हाथां में कमण्डळ, धनुख, बाण अर कमल बिराजै। डावै हाथां में इमरत कळस, जपमाळा, गदा अर च कर साम्भै। सीस सोनै रो मुगट। कानां सोनै रा गैणां। शेर री सवारी। कूष्माण्डा माता री ध्यावना सूं भगतां रा सगळा संताप मिटै। रोग-सोग समूळ हटै। उमर, जस, बळ अर निरोगता बधै।
चौथै नोरतै में साधक रो मन अनाहज चक्र में बास करै। इण सारू माणस नै निरमळ मन सूं कूष्माण्डा माता री ध्यावना करणी चाइजै। माताजी रा जप-तप अर ध्यावना भगत नै भवसागर पार उतारै। माणस री व्याध्यां रो मूळनास होवै। दुख भाजै। सुख रा डेरा जमै। इण लोक अर आगोतर री जूण सुधारण सारू कूष्माण्डा माता री ध्यावना करीजै।


राजस्थान-दिवस बधायजै


आज रो दिन ओर ओरयुं खास। आज रै ई दिन आपणै राजस्थान री थापणा हुई। बो दिन हो तीस मार्च-1949। राजस्थान नांव पच्छम रा इतिहासार 'कर्नन जेम्स टाड' 1829 में दियो। इण सूं पैली इण रो नाम राजपूताना हो। ओ नांव जार्ज थामस सन 1800 में दियो। राजपूतानै में 26 रियासतां ही। आं नै भेळ'र भारत में मिलावण री पैली चेस्टा 31 दिसम्बर, 1945 में पंडित जवाहरलाल नेहरू करी। बां उदयपुर में राजपूताना सभा बणाई। दूजी चेस्टा उदयपुर रा राजा भूपालसिंह अर बीकानेर नरेश सार्दुलसिंघजी करी। पैला गृहमत्री सरदार पटेल चौथी चेस्टा में इण राजपूतानै नै भारत संघ में रळायो। आज रै राजस्थान रै एकठ री बी सात चेस्टावां होई। पैली चेस्टा 18 मार्च, 1948 में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली नै भेळण री। नांव थरप्यो- मत्सय संघ। इणरी राजधानी बणी अलवर। राजप्रमुख बण्या धौलपुर नरेश उदयभान सिंघ। प्रधानमत्री बण्यां शोभाराम कुमावत। दूजी चेस्टा 25 मार्च, 1948 में हुई। मत्सय संघ में कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा, कुशलगढ, शाहपुरा, प्रतापगढ, किशनगढ, टोंक अर डूंगरपुर नै भेळ'र राजस्थान संघ बणायो। इणरी राजधानी कोटा। कोटा रा महाराज भीमसिंह राजप्रमुख। गोकळदास असावा प्रधानमंत्री। तीजी चेस्टा18 अप्रेल, 1948 में होई। इण बार उदयपुर राजस्थान संघ में भिळ्यो। उदयपुर रा महाराजा भूपालसिंह राजप्रमुख। माणिक्य लाल वर्मा बण्या प्रधानमंत्री। चौथी चेस्टा 30 मार्च, 1949 में। इण बार बण्यो बृहद राजस्थान। इण बार रियासतां भिळी बीकानेर, जयपुर, जैसलमेर अर जोधपुर। राजप्रमुख बण्या महाराजा भूपालसिंह। उप राजप्रमुख कोटा महाराव भीमसिंह। हीरालाल शास्त्री बण्या प्रधानमंत्री। पांचवी चेस्टा 15 मई, 1949 में होई। अबकै मत्सय संघ भिळ्यो। छठी चेस्टा 26 जनवरी, 1950 में होई। सिरोही नै भेळ्यो। सातवीं अर छेकड़ली चेस्टा 1 नवम्बर, 1956 में होई। अबकै अजमेर रियासत भिळी। इणी दिन 9 बज'र 40 मिनट माथै राजस्थान अर राजस्थानी लोकराज रै गेलै लाग्या। आज रै आपणै राजस्थान नै बणावण सारू सात चेस्टावां होई। राजस्थान दिवस पण तीजी चेस्टा रै दिन 30 मार्च नै ई मनावणो तेवड़ीज्यौ। राजस्थानी भासा रै पाण बण्यौ राजस्थान। हाल पण राजस्थानी भासा राज-मानता नै तरसै। मायड़भासा रा मौबीपूत सुरगवासी साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया रै काळजै री पीड़ दूहे में बांचो-


खाली धड़ री कद हुवै, चैरै बिन्यां पिछाण?
मायड़ भासा रै बिन्यां, क्यां रो राजस्थान ?

मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा

२९ मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा/ गणगौर
आपणी भाषा-आपणी बात



मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा

-ओम पुरोहित कागद


आज तीजो नोरतो। तीजै नोरतै री मैमा न्यारी। ध्यावै जगती सारी। तीजो नोरतौ जगजामण मात रै तीजै सरूप चंद्रघण्टा रै नांव। मात चंद्रघण्टा रै मस्तक माथै घण्टैमान चंद्रमा बिराजै। चंद्रमा मस्तक माथै सौभा पावै। इणी कारण माताजी रो तीजो सरूप चंद्रघण्टा। मात चंद्रघण्टा दस हाथ धारै। जीवणै पसवाड़ै रा पांच हाथ अभय दिरावण री छिब में। सरीर सोनै वरणो। एक हाथ में कमल। दूजै में धनुख। तीजै में बाण। चौथै में माळा। पांचवौ हाथ आसीस में उठियो थको। माताजी रै डावै हाथां में भी अस्तर। एक हाथ में कमण्डळ। दूजै में खड़ग। तीजै में गदा। चौथै में तिरसूळ। अर एक हाथ वायुमुद्रा में। चंद्रघण्टा रै शेर री सवारी। कंठा पुहुपहार। कानां सोनै रा गैणा। सिर सोनै रो मुगट। चंद्रघण्टा दुष्टां रो खैनास करण नै उंतावळी। दुष्टदमण सारू हरमेस त्यार। मानता कै चंद्रघण्टा नै ध्यावणियां शेर री भांत लूंठा पराकरमी अर भव में डर-मुगत भंवै। मात चंद्रघण्टा आपरै भगतां नै भुगती अर मुगती दोन्यूं एकै साथै देवै। मन-वचन-करम अर निरमळ हो विधि-विधान सूं चंद्रघण्टा रै सरणै आय जकौ ध्यावै उण नै मन-माफक वरदान मिलै। ऐड़ा भगत सांसारिक कष्टां सूं मुगत होय परमपद ढूकै। तीजै नोरतै री खास बात। इण नोरतै में माताजी नै खुद रो फुटरापो गोखाईजै। इण दिन उणां नै आरसी में मुंडो दिखाईजै। इणीज दिन माता जी नै सिंदूर भेंटीजै।


गणगौर पूजा


नोरतै रै तीजै दिन यानी चैत रै चानण पख री तीज नै गौरी-शंकर री पूजा होवै। गौरी मात जगदम्बा यानी पार्वती। पार्वती रा धणी शंकर। इण दिन आं दोन्यां री पूजा ईसर-गणगौर रै रूप में होवै। पार्वतीजी शंकर नै वर रूप पावण सारू तप करियो। शंकरजी राजी होया। वरदान मांगण रो कैयो। पार्वतीजी शंकरजी नै ई वर रूप मांग्यो। पारवती री मनसा पूरण होई। बस उणीज दिन सूं कुंवारी छोरियां मनसा वर पावण सारू ईसर-गणगौर पूजै। सुहागणां धणी री लाम्बी उमर सारू पूजै।
गणगौर री पूजा चैत रै अंधार पख री तीज सूं सरू होवै। होळका री राख सूं छोरियां बत्तीस पिंडोळिया बणावै। घर में थरपै अर सोळै दिनां तांणीं गणगौर पूजै। सोळै दिनां तांई भागफाटी उठ दूब ल्यावै। बाग-बाड़ी में गावै-


'बाड़ी आळा बाड़ी खोल, बाड़ी री किवाड़ी खोल, धीवड़्यां आई दूब नै।'


दूब लेय घरां आवै। माटी का काठ री गणगौर री देवळ नै दूब सूं काचै दूध रा छांटा देवै। राख री पिंडोळ्यां माथै कूं-कूं री टिक्की लगावै। कुंवार्यां अर सुहागणां भींत माथै कूं-कूं अर काजळ री टिक्की काढै। गावै-


'टिक्की राम्मा क झम्मा, टिक्की पान्ना क फूलां।'


कांसी री थाळी में दई, पाणी, सुपारी अर चांदी री टूम धर दूब सूं गणगौर नै संपड़ावै। गावै-


'केसर कूं-कूं भरी ऐ तळाई, जामें बाई गवरां ऐ न्हाई।'


आठवैं दिन ईसर बाई गवरजा नै लेवण सासरै ढूकै। इण दिन छोरियां कुम्हार रै घर सूं पाळसियो अर माटी ल्यावै। घरां माटी सूं ईसर, ढोली अर माळण बणावै। सगळी देवळ नै गणगौर भेळै पाळसियै में बैठावै। आगलै आठ दिन तक बनौरा काढै। दाख, काजू, बिदाम, मिसरी, मूँफळी, पतासा सूं दोन्यां री मनावार करै। सौळवैं दिन दायजै रो समान- दूब अर पुहुप भेळा करै। जीमण सारू बाजरी रा ढोकळा बणावै। ढोकळा चूर'र सक्कर बुरकावै अर ऊपर धपटवों घी घालै। जीमा-जूठी पछै बाई गवरजा नै आज रै दिन सासरै पधरावै। नदी, तळाब का कूवै नै सासरो मानै। भेळी होय ईसर-गणगौर री सवारी गाजै-बाजै सूं काढता थकां बठै ढूकै। देवळ्यां नै विद्या दीरीजै। कूवै, नदी का तळाब में पधरावै।
गवर पूजण आळ्यां सोळै दिन ऐकत राखै। इण दिन बरत खोलै। पग रै आंटै सूं ढोकळा जीमै। सुहागणां ब्यांव रै बाद गणगौर रो अजूणौ करै। अजूणै में ढोकळां री ठोड़ खीर-पू़डी अर सीरो बणै अर सौळै सुहागणां नै नूंत जीमावै।
गणगौर पूजा आखै राजस्थान में। उदयपुर री घींगा गवर, बीकानेर री चांदमल डढ्ढा री गवर नामी। उदयपुर रा महाराजा राजसिंह छोटी राणी नै राजी करण सारू चानण-पख री तीज री जाग्याँ अंधार-पख री तीज नै गणगौर री सवारी काढी। ओ काम धिंगाणै करीज्यो। इण सारू धींगा गवर बजै। बूंदी रा राजा जोधासिंह हाडा सम्वत में चैत रै चानण-पख री तीज नै गणगौर री देवळ अर आपरी जोड़ायत भेळै नाव चढ तळाब में सैर करै हा। अचाणचक नाव पळटी अर दोन्यूं धणी-लुगाई गणगौर समेत डूबगया। बस इणी दिन सूं बूंदी में गणगौर पूजण रो बारण। बूंदी में कैबा चालै- हाडो ले डूब्यो गणगौर।

धीरज धिराणी ब्रह्माचारिणी

२८ धीरज धिराणी ब्रह्माचारिणी
आपणी भाषा-आपणी बात


धीरज धिराणी ब्रह्माचारिणी

-ओम पुरोहित कागद


नवदुरगा रा नव रूप निराळा। हर रूप मनमोवणो -मनभावणो। रूपां री पण छिब निरवाळी। ऐड़ी ही निरवाळी छिब मात ब्रह्माचारिणी री। जग जामण महालक्ष्मी ब्रह्माचारिणी नै दूजी देवी रूप परगटाई। बह्मा सबद रो मतलब तप। ब्र्रह्माचारिणी घोर तप अर धीरज री धिराणी। आं में तप री सगति अपरम्पार। आं रै तप नै नीं कोई लख सकै, नीं लग सकै। चारिणी सबद रो मतलब चालण आळी। यानी तप रै गैंलां चालण आळी। घोर तप रै गैलां चालण रै कारण नांव थरपीज्यो ब्रह्माचारिणी। इण नावं सूं जग चावी। बडा-बडा रिखी-मुनि, जोगी, सिद्ध, ग्यानी-ध्यानी, तपिया-जपिया अर हठिया भी आं रो तप देख'र चकरी चढ्या। आंख्यां तिरवाळा खायगी।
ब्रह्माचारिणी रो रूप भव्य। लिलाड़ माथै तप रो ओज। आं रो सरूप जोता-जोत। जोतिर्मय। डावै हाथ में कमडंळ। जीवणै हाथ में जप माळा। सिर माथै सोनै रै मुगट री सोभा निरवाळी। नोरतां रै दूजै दिन इणी मां दुरगा री पूजा हौवै। उपासना करीजै। मां दुरगा रो सुरंगो रूप भगता नै भावै। आं री ध्यावना सूं भगतां, सिद्धां, जोग्यां, ध्यान्यां, तपियां अर जपियां रा मनोरथ पूरीजै। भगतां- सिद्धां नै अखूट-अकूंत फळै ब्रह्माचारिणी रा दरसण। धीरज-धिराणी ब्रह्माचारिणी री ध्यावना मिनखां में धीरज बपरावै। मिनखां में त्याग,वैराग्य अर धीरज रो बधैपो करै। इण री किरपा चौगड़दै। चौगड़दै सिद्धि। चारूकूंट विजय दिरावण वाळी। धीरज धिराणी बह्माचारिणी मिनखां में सदाचार अर संयम बगसावै। जोग्यां नै जोग सारू तेडै जोग-साधक दूजै दिन आपरै मन नै स्वाधिष्ठान चक्र में थिर करै। इण चकर में थिर मन माथै ब्रह्माचारिणी री किरपा बरसै। ऐडो साधक देवी री किरपा अर भगति नै पूगै।
नोरतां रै दूजै दिन मां दुरगा री खास पूजा होवै। इण दिन माता रा केस गूंथीजै। बाळ बांधीजै। चोटी में रेसमी सूत का फीतो बांधीजै। माता रै बाळां री सावळ संभाळ करीजै। लगो-लग श्री दुरगा सप्त्सती अर मारकण्डेय पुराण पाठ करीजै। एकत पण चालतौ रैवै। आज रो बरत नोरतै रो दूजौ बरत बजै।

आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी

२६ 'आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी' लेखमाळा 1 सदा भवानी दाहिनी
आपणी भाषा-आपणी बात



आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी


आपणी भाषा-आपणी बात स्तंभ में आज सूं रामनवमी तांईं आपां राजस्थानी रा लूंठा लिखारा ओम पुरोहित 'कागद' रा नवरात्रां रै मंगळ मौकै सारू लिख्योड़ा खास लेख बांचस्यां। 27 मार्च नै घटस्थापना रै साथै ई देवी आराधना रा अनुष्ठान सरू व्है जावैला। 'आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी' लेखमाळा रै पैलै दिन आज जाणो नोरतां रो पूजन विधान।


सदा भवानी दाहिनी

-ओम पुरोहित कागद


राजस्थान रजपूतां-रणबंका री खान। पण सारू रण। पण पाळै अर रण भाळै। जीत री पाळै हूंस। हूंस पण स्यो-सगत रो वरदान। इणीज कारण स्यो रा गण भैरूं अठै पूजीजै। मां सगत दुरग रूखाळी। इणीज कारण दुरगा बजै। रणबंका खुद नै सगत रा पूत बतावै। मरूधरा रै कण-कण में रण री छाप। रण री देवी रणचंडी री ध्यावना आखो राजस्थान करै। नोरतां में तो कैवणो ई काँईं।घर-घर दुरगा री पूजा हुवै। सरूपोत में गजानंद महाराज अर सुरसत सिंवरीजै। भळै मात भवानी ध्यावै।


सिमरूं देवी सारदा। गुणपत लागूं पांय।।
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख होय गणेश।
पांच देव रक्षा करै, ब्रह्मा विष्णु महेश।।


एक साल में च्यार नोरता आवै। चैत, आसाढ, आसौज अर माघ रै चानण पख री एक्युं सूं नौमीं ताईं। चैत रा नोरतां नै वासन्तिक नौरता। आसाढ अर माघ रा नोरता गुप्त नोरता। आसोज रा नोरता बजै शारदीय नोरता। नोरता में जगजामण मां भागोती रै सैंकड़ूं रूपां री पूजा होवै। तीन मूळ देवियां- महालक्षमी, महाकाळी अर महासरस्वती। शक्ति रा उपासक आं री ध्यावना करै। शक्ति रा उपासक इणी पाण शाक्त बजै।
दीठमान जग रै सरूपोत में बिरमा जी परगट्या। एकला डरप्या। साथ री गरज पाळी। खुद रै ई रूप सूं देवी परगटाई।इण सारू बिरमा अर सगत में राई-रत्ती रो ई भेद नीं मानीजै। महादेवी कैवै- म्हैं अर बिरम सदीव एक हां। बुद्धि रै भरम सूं ई भेद लखावै। इणी जग जामण शून्य जगत नै पूरण करियो। महादेवी यानी महालक्ष्मी देवियां अर देव परगटाया। महालक्ष्मी पैली महाकाळी अर महासरस्वती नै प्रगट करी। भळै आं दोन्यां नै एक-एक स्त्री-पुरूष सिरजण री आज्ञा दीवी। खुद बिरमां अर लक्ष्मी नै सिरज्या। महाकाळी शंकर अर त्रयी नै। महासरस्वती विष्णु अर गौरी नै। पछै आपस में जोड़ा बनाया। शंकर-गौरी, विष्णु-लक्ष्मी, बिरमा-त्रयी(सुरसत) रा जोड़ा बण्या। भळै बिरमां अर सुरसत जगत रच्यो। विष्णु अर लक्ष्मी जगत नै पाळ्यो। शंकर अर गौरी परळैबेळा में जगतसंहार करियो।
महालक्ष्मी-महाकाळी अर महासरस्वती ई नौ देवियां परगट करी। शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी अर सिद्धिदात्री। आं रा दूजा रूप है-चामुंडा, वाराही, ऐन्द्री, वैष्णवी, महेश्वरी, कौमारी, लक्ष्मी, ईश्वरी अर ब्राह्मामी। नोरतां में इणी नौ देवियां री पूजा देवी भागवत मार्कण्डेय पुराण अर दुर्गासप्तसती में बताई विधि मुजब नौ दिनां तक होवै। पैलै दिन केश-संस्कार। दूजै दिन केश गूंथण-संस्कार। तीजै दिन सिंदूर-आरसी संस्कार। चौथै दिन मधुपर्क तिलक संस्कार। पांचवै दिन अंगराग-आभूषण संस्कार। छठै दिन पुष्पमाळा संस्कार। सातवैं दिन ग्रहमध्य पूजा। आंठवैं दिन उपवास अर पूजन। नौवैं दिन कुमारी पूजा। कुमारी कन्यावां नै जीमाइजै। दसवैं दिन पूजा करणियैं री पूजा अर जीमण, दान-दखणां। नौ रातां ताणी एकत करै। इणी कारण ऐ नौ दिन नोरता बजै।


नोरतां रो पूजन विधान


पैली घट थापना होवै। बेकळा री वेदी थरपीजै। वेदी में जौ-कणक रा ज्वारा बाईजै। इण माथै सोनै, चांदी, तांबै या माटी रो कळसियो धरै। कळसियै माथै देवी री फोटू लगावै। फोटू ना होवै तो कळसियै रै लारै साथियो। असवाड़ै-पसवाड़ै त्रिसूळ। पोथी या साळगराम धरै। पैलै नोरतै में स्वस्तिवाचन अर शान्ति पाठ कर'र संकळप लेईजै। भळै गणपत, षोडष मात्रिका, लोकपाळ, खेतरपाळ, नवग्रह, वरूण, ईष्टदेव री ध्यावना करै। प्रधान देवळ री षोडषोपचार सूं पूजा होवै। अनुष्ठान में महाकाळी अर महासरस्वती री पूजा होवै। नौ दिन तक दुर्गा-सप्तशती रा पाठ करै। नौ रातां दिवळो चेतावै। आधीरात, भखावटै अर दिनूगै जोत करीजै। सम्पदा चावणियां आठवैं दिन अर आखी धरती रै राज री मनस्या राखणियां नौवैं दिन माताजी री कढ़ाई करै। कढ़ाई रै दिन कुमारी पूजन होवै। कन्यावां नै देवी मान पग धोय'र गन्ध पुहुप सूं पूजा करियां पछै जीमावै। चूनड़ी-गाभा भेंटै। नोरतां में कन्यावां री पूजा रा फळ बखाणीजै। एक सूं एश्वर्य। दो सूं भोग अर मोक्ष। तीन सूं धर्म अर्थ अर काम। च्यार सूं राज्यपद पांच सूं विद्याङ्क्तबुद्धि। छै सूं षटकर्म सिद्धि। सात सूं राज्य। आठ सूं सम्पदा अर नौ सूं पिरथी री प्रभुता मिलै । दस वर्ष सूं कम री कन्यावां न्यारी-न्यारी देवी मानीजै। दो बरस री कन्या कुमारी। तीन बरस री त्रिमूर्तिनी। च्यार बरस री कल्याणी। पांच बरस री रोहिणी। छै: बरस री काळी। सात बरस री चंडिका। आठ बरस शाम्भवी। नौ बरस री दुर्गा अर दस बरस री कन्या सुभद्रा या स्वरूपा बजै।

राजस्थानी सबद अर संस्कार

२२ राजस्थानी सबद अर संस्कार
आपणी भाषा-आपणी बात



राजस्थानी सबद अर संस्कार

-ओम पुरोहित 'कागद'


राजस्थानी भाषा जित्ती मीठी, बित्ती ई संस्कारी। संस्कारां री छिब पग-पग माथै। खावण-पीवण, पैरण-ओढण, उठण-बैठण में संस्कार। बोलण-बतळावणं में संस्कार। सबदां रा संस्कार सिरै। कैबा कै बाण रा घाव मिटै, पण बोली रा घाव नीं मिटै। इण सारू सावचेती सूं बोलणो। बोलण सारू बगत-घड़ी, वेळा-कुवेळा अर ठोड़-ठिकाणों देखणो। ऊंच-नीच अर काण-कायदो देखणो। बो' ई सबद बपरावणो, जकै री दरकार। मांदो नीं बोलणो। नन्नो नीं बरतणो। यानी नकार नीं बरतणो। बडेरा सिखावै कै नीवड़णो, बंद करणो, कमती होवणो, बुझावणो, आग लगावणो जेड़ा सबद नीं बोलणा। नीं, कोनी अर खूटणो मूंडै सूं नीं काढणो।
आपणी भाषा री मठोठ देखो। चूल्है में आग बाळणो नीं, चूल्हो चेतन करणो कैईजै। मरणै नै सौ बरस पूगणो। दुकान बंद करणै नै दुकान मंगळ करणो। दीयो बुझावण री ठोड़ दीयो बडो करणो। घटती नै बढती। मारणै नै हिंडावणो या धोबा देवणो। लूण नै मीठो। गुण बायरै नै रंगरूड़ो का रोहिड़ै रो फूल। पाणी में चीज न्हाखण नै पधरावणो। जावणै नै पधारणो। जांवण री इग्या मांगणियै नै जा' री ठोड़ 'बेगो आई' कैवणो। कठै जावै पूछणो होवै तो पूछीजै सिधसारू, पण कठकारो नीं देईजै।
कांण-मोकाण में लोकाचार। मरियोड़ै री 12 दिन बैठक। मरियोड़ै रै समचार नै चिट्ठी। अस्त चुगण नै फूल चुगणो। इणी कारण पुहुप नै फूल नीं कैईजै। सांप रै डसण नै पान लागणो। मरियोड़ै टाबर नै माटी देवणै नै आडै हांथां लेवणो। साग-सब्जी नै काटणो नीं, बंधारणो का सुंवारणो कैईजै। ओसर-मोसर, कारण-ऐढां माथै जीमण सारू बुलावण नै नूंतो। फगत बुलावण सारू तेड़ो। जवाई नै तेड़ो। गीतां रो तेड़ो। मैं'दी-पीठी रो तेड़ो। उच्छब-रैयाण रो तेड़ो कैईजै। जकै रै बाप नीं होवै बो बापड़ो। मा रै जिको चिप्यो रैवै बो मावड़ियो। हांचळ सूं दूध नीं पीवै, पण आंगळ्यां सूं कुचरणी करै बो कुचमादी। सासरै जांवती छोरी रै कूकणै नै बिराजी होवणो। पोतियो गमी में पै'रीजै। जींवतै रो सिराणो उतरादै नीं करीजै। बडेरो मरियां बाळ कटावणै नै भदर होवणो कैईजै। आडै दिनां दाड़ी-मूंछ नीं कटाईजै। दाड़ी-मूंछ मायतां रै मरियां ई कटाईजै। पण बाळ कटावण नै सुंवार करावणो कैईजै। यानी बात साफ है कै काटणो अर कटावणो कैवणो ई कोनी। एक सोरठो चेतै आवै-


मरता जद माईत, मूंछ मुंडाता मानवी।
रोज मुंडावण रीत, चाली अद्भुत चकरिया।।


हाजत-आफत सारू बी न्यारा सबद। गा छंगास। मिनख पाळी। सांढ-ऊंठ चीढै अर भैंस मूत करै। पण अब तो मिनख मूत करण लागग्या। निमटणै री संका नै हाजत। निमटणै नै संका भांगणो। जंगळ जावणो। दिसा जावणो। फिरणो। बन जावणो। भरिया करण का छी छी जावणो कैईजै। पैसाब करण नै संको पालणो, भीजिया का नाडो खोलणो कैईजै। रितु धरम नै गाभा।
रोटी खास्यूं कैयां बडेरा कैवै डाकी है के? ईं सारू सबद है जीमण। जीमण सारू थाळी लगावणो। पुरसणो। जिमावणै नै पुरसगारी अर जिमावणियै नै पुरसगारो कैईजै। बातां तो भोत है, पण बडेरां खनै बैठ्यां ई लाधै।