मंगलवार, मार्च 09, 2010
हाथ: पांच चित्र / ओम पुरोहित "कागद"
(१)
खुदा देता है
सब को
दो-दो हाथ
जन्म के साथ ही
दुआ-दया-खिदमत
इनायत के लिए
फ़िर भी
कुछ लोग
दो-दो हाथ
कर लेने का
भ्रम पालते हैं
फ़िर
उठ ही जाते हैं हाथ
बद सबब में.
(२)
मेरे हाथ
मेरे कंधों पर थे
फ़िर भी
लोगों ने
मेरे हाथ ढूंढे
क्रांतियो में
भ्रांतियो में
यानी
तमाम अपघटितों में
बेबाक गवाहियां
निर्लज्ज पुष्टियों में थी
जबकि मैं
असहाय मौन
दूर खड़ा
दोनों हाथ
मलता रहा.
(३)
कुछ लोग
जुबान चला रहे थे
कुछ लोग
हाथ चला रहे थे
कुछ लोग
इन पर
बात चला रहे थे
मामला शांत हुआ !
अब
लोग बतिया रहे थे;
मामला सुलझाने में
हमारी जुबान थी
कुछ ने कहा
हमारी बातों का
सिलसिला था
कुछ ने कहा
इस समझाइश में तो
हमारा ही हाथ था
में
ढूंढ रहा था
उन हाथों को
जिसने रचा था
इस घटनाक्रम को
आद्योपांत !
(४)
बहुत लोग थे वहीं
सब के सब
समझदार थे
धाए हुए भी थे
उनके बीच
किसी के हाथ
आसमान की ओर उठे
लोगों ने समझा
मांगेगा
या
मारेगा
कोई न था वहां
जो समझता
हाथ
कभी-कभी
दुआ में भी
उठते हैं.
(५)
लोगों ने
हाथ से हाथ मिलाए
दूर तक चलने की
शपथ ली
निकल भी पड़े
साथ-साथ
यात्रा में
किसी
मनचाही मंजिल की ओर
लेकिन
मन दौड़ रहे थे
विपरीत दिशाओं में
यात्रा के अंत में
लोग ढूंढ रहे थे
एक दूसरे का हाथ
खाली हाथ लौटने में
संपर्क- २४, दुर्गा कॊलोनी, हनुमानगढ़ संगम.
मो.-०९४१४३८०५७१ E-mail- omkagad@gmail.com
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om ji sadar vandan, apne samvad ka safar kiya. aapka shukriya.......
जवाब देंहटाएंmain niymit roop se aapka blog padta rahunga..
mujhe bhi kavya mai ruchi hai....
thanks......
bhai ji
जवाब देंहटाएंghani ghani badhai
aapri sagli kavita ek se badhakar ek hai
bahut anand aayo
bhai ji
जवाब देंहटाएंsandar aapri sagli kavita ek se badhkar ek hai
वंदन गुरुजी !
जवाब देंहटाएं"कोई न था वहां
जो समझता
हाथ
कभी-कभी
दुआ में भी
उठते हैं."
हाथ ही हाथ दिखा दिया आपने कि जब बात शब्दों और अभिव्यकित की आती है तो आपके हाथ कितने लंबे हैं ! :)