गुरुवार, मई 22, 2014

बोलेगी नहीं यह मिट्टी


सचल थी तब
खुद लेती थी आकार
छोटा-बडा़ भू-मंडल में

तब बोलती थी मिट्टी
दिखाती थी दिशाएं
साथ-साथ चल कर
आज जब सचल से
अचल है मिट्टी
कलाकार के हाथ लग
ले रही है पुन: आकार
बोलेगी नहीं
डोलेगी नहीं
लग कर
किसी चौक-चौराहे
भवन या दीवार में
ठिठक जाएगी
अपने होने का
महज़ देगी आभास
इसी से पा जाएगी मंज़िल
पा जाएगी दिशाएं
आज सचल पडी़
दिशा भटकी मिट्टी !

=
[ प्रख्यात चित्रकार एवम 

मूर्तिकार भाई रामकिशन अडिग 
[ RAM KISHAN ADIG ]
द्वारा बनाई जा रही मूर्तियों को देखते हुए ]