ओम पुरोहित “कागद”
चारूं कूंटां है
खड़ी भींतां ई भींतां
आदमी कठै?
मरजी थांरी
फरमान आपरै
चालै है सांसा।
जग री राड़
मिटै मिनखां मतै
कठै है मतौ?
सिर गिणल्यौ
बगै है आ दुनियां
पग उठायां ।
भेजौ कविता
छपै जागती जोत
बांचसी कुण?
नूंईं कहाणी
लेखक री खेचळ
बोदी डकार।
लुगाई जात
प्रेम रो सागर
डूबै जगत।
मोह बादळ
सावण री बिरखा
मा रो परस।
घंटी खडक़ै
टण टणण टण
नीं जागै देव।
बोदिया बांस
नीं टिकी बा छात
पडग़ी धच्च।
थांरी सोगन
परभात हो ई सी
म्हारी सोगन।
अंतस पीड़
ऊबकी खद बद
टपकी आंख्यां ।
पीळा पानड़ा
हवा सूं बतळावै
झड़स्यां अब ।
घर रो मोह
कदै नीं छूटियौ
छूट्या बडेरा।
आया बातां में
भर दी सै ढोलक्यां
पडग़या वोट ।
करगया कोल
पाछा ई नीं बावड्या
चूकगया दिखां ।
अंधारो घणो
चाईजै जै चानणौ
कर खटकौ ।
ऊंचौ है आभौ
मिल ई सी मंजल
पग तो उठा ।
सिराध नेड़ा
टंक टळसी अबै
मिलसी नूंता ।
जूनी झूंपड़ी
बिरखा अणथाग
भीतर टोपा ।
मंजल दूर
पूगणौ बी लाजमी
बिसाई छोड ।
फूटरौ मुंडौ
आरसी मुंदगियौ
करड़ कच्च ।
खोपड़ी फूटै
सुण जग री बातां
चा सुरडक़ ।
चुप हा जितै
देवता गिणीजता
बोल्यां मिनख ।
थां री बकरी
परायौ खेत चरै
दूई देखाण ।
झीणा जे गाभा
मन ऊजळौ राख
उल्लू रा पट्ठा ।
किताबां पढ
लिख नां ओ कूटळौ
रूंख बकसी ।
कित्ती ई लिखी
कित्ती न कित्ती छपी
ले लै ईनाम ।
दुनियां घूम्या
कोई नीं सुणै बात
घर ई भलौ ।
गयौ सूरज
पूरब सूं पछम
अंधार घुप्प ।
बातां भोत है
करां तो कीयां करां
सिर रौ डर ।
देखता जितै
उतरगी फोटूड़ी
घरड़ घच्च ।
धरती फाड़
निकळ्यौ भंपोड़
अरड़ झप्प ।
फाटक माथै
आंवता ई खुलियौ
चरड़ ड? चूं ।
बोल देखाण
अणबोली ककर
भासा दिराव ।
धरम निभै
गऊ माता आपणी
बोखड़ी रूळै ।
परमेसर
पंच-सरंपचड़ा
जे नीं जीतै तो?
चढै परसाद
धाप गिटै पुजारी
देवता मून।
संपादक जी
रोज लिखै कविता
आप ई छापै ।
चाळीस पोथी
ईनाम नै उड़ीकै
बण कामरेड ।
मैं भले ही ऑस्ट्रेलिया में रहती हूँ पर हूँ तो सौ फीसदी भारतीय! मैं जमशेदपुर में पली बड़ी हूँ इसलिए हिंदी भाषा से मेरा बहुत ही लगाव है! मैं बंगाली हूँ पर बंगला लिखना पढ़ना घर में सीखी हूँ अपनी दादीमा से और हिंदी जैसा बंगला में मैं लिख नहीं पाती! मैं राजस्थान में दो साल थी, जयपुर में, इसलिए राजस्थानी भाषा समझती हूँ थोड़ी बहुत! बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना! लिखते रहिये!
जवाब देंहटाएंहे भगवान् ,मुझे राजस्थानी कौन सिखाएगा
जवाब देंहटाएंआदरजोग कागद साहब ,
जवाब देंहटाएंथारी सारी रचनावां पढ़ी . पढ़'र हमेशा री तरियां चोखी लागी. थारे स्यूं जद - कद भी मिलन रो मोको मिले है , मैं हर बार एक नुइं चीज सीखूं. थार हाइकु जमाने री हालत पर चोट करे है
म्हारी शुभकामनावा ...............
जीतेन्द्र कुमार सोनी ' प्रयास '
www.mulkatimaati.blogspot.com
www.jksoniprayas.blogspot.com
मुझे राजस्थानी भाषा नहीं आती पर कविता पड़ने में काफी कुछ
जवाब देंहटाएंसमझ आया |कविता के भाव अच्छे लगे |
आशा
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जवाब देंहटाएंघणी चोखी लागी सा
जवाब देंहटाएंओमजी ; नमस्कार सा, आप री राजस्थानी कविता पढ़ी. मन प्रसन्न हुईग्यो सा. अबे मैं आप री राजस्थानी कवितान्वा रोजीना पढू ला. मैं आज तक तो कोई राजस्थानी कविता कोणी लिखी. लेकिन आप सुं प्रेरणा ले ने मैं भी कोशिश करूला कि राजस्थानी कविता लिखूं. मैं जोधपुर सूँ हूँ . आपने पगेलागानो.
जवाब देंहटाएंwww.nareshnashaad.blogspot.com
Respected Sh.Omji
जवाब देंहटाएंNamasker,
Glad to read the blog and the poems.
Hope you will continue your efforts in this direction.
Poet has got wide spectrum imagination field and serves the mankind with the blessings of the GOD in his voice.
God bless you. my heartiest congratulations.
Ashok Ohri