मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

ढोली ढोल बजाओ,गैरिया गैर रमै

१० गैरिया गैर रमै
आपणी भाषा-आपणी बात


ढोली ढोल बजाओ,

गैरिया गैर रमै

-ओम पुरोहित 'कागद'


रंग रूड़ो राजस्थान। चोगड़दै रंगां री रेळ-पेळ। रंग-रंगीलै तीज-तिंवारां री छोळ। तातै लोही री राती होळी रमण री रीत। मोट्यार रंगारा। धरा रंगीजै। सीळवत्यां हथळेवै सूं सीधी अगन री पीळी झाळां साम्ही। रंगां री ऊजळी कीरत। आ कीरत होळी सूं कमती कद!


बसंत पांच्यूं धरा रंगीजै। रूंखां-झाड़कां, बांठकां माथै कूंपळां फूटै। फोगड़ा पांगरै। चीणा अर कणक माथै होळा लागण ढूकै। हरिया पानका। लाल, पीळा, केसरिया, हिरमिच, बैंगणियां अर धोळा पुहुप। फागण रो बाजै बायरियो। फूल-पानका लहरियो करै। फागणियो फरफरावै। लोगड़ा कैवै- भगवान किरसण फाग रमै। आठ्यूं सूं लागै होळका। होळी रो डांडो रुपै। मोट्यार साम्भै डफ, झींझा, बांकिया, थाळी, झालर, घूघरा, चिमटा अर ढोल। चूनड़ी रा साफा। लेहरियो, मोलियो, पंचरंगी पेचा बांध आय ढूकै चौपाळां। डांडिया रमै। तरवारां भांजै। लट्ठ बजावै। झीणी-झीणी गुलाबी सर्दी पड़ै। धूणी चेतन करै। डफ ताता करै अर बजावै। भेळा होय गोळ में गावै- 'उठ मिल लै रे भरत भाई, हर आयो रे, कै उठ मिल लै।' दूजै गोळ में सुणीजै- 'थारै तो कारण म्हैं मोहन हिरणी होई, होय हिरणी जंगळ सारो हेरयो रे।' 'ढोली ढोल बजाओ, गैरिया गैर रमै।' छोरयां आठ्यूं सूं ही गोबर रा बड़कूलिया बणावणां सरू करै। गोबर सूं शंख, तारा, झेरणो, गट्ट, चाँद, सूरज, पान, दिवलो, होळका री मूरत आद बणावै। होळी मंगळावण सूं पैली बड़कूलिया सूकै। आं री माळा बणावै। होळी रै दिनां बैनां भायां रै सिर सूं उंवारै। वारणा लेवै। भाई री लाम्बी उमर री कामना करै। आई उतार'र बड़कूलियां री माळा नै झळती होळी में न्हांखै। पून्यूं रै दिन होळी मंगळाइजै। इण दिन लोगड़ा छाणा, थेपड़ी, लकड़ी आद बळीतै री चौक में ढिगली करै। बड़कूलियां भेळीजै। ढिगली रै सूंऐ बिचाळै प्रहलाद रूपी खेजड़ी रो हरियो डाळो रोपीजै। पंडितजी मंगळावण रो मुहरत काढै। पूजा करै। बडेरो लांपो लगावै। होळी मंगळाइजै। कुंवारा मोट्यार इण प्रहलाद नै काढ भाजै। सुगनी झळ में सुगन देखै। झळ जिण दिस जावै उण दिस जमानो जबर बतावै। लोग-लुगाई होळी रै खीरां में पापड़, खीचिया, कणक रा सिट्टा सेकै। होळा करै। आं नै बारा म्हीनां साम्भै। मानता है कै ऐ पापड़-खीचिया टाबरां रो खुलखुलियो ठीक करै। कुंवारी छोरयां राख सूं पिंडोळ्यां बणावै। आं पिंडोळ्यां सूं सोळा दिन गवर पूजै। होळका मंगळावण रै दूजै दिन गैर रमीजै। इण दिन नै छारंडी, धुलंडी अर धूड़िया-फूसिया कैवै। लोग-लुगाई अर टाबर-बडेरा झांझरकै ई घरां सूं निकळै। हाथां में रंग-गुलाल, पिचकारी अर रंग री बोतलां। साथी-संगळी, भायेला-पापेला अर सग्गा सोई नै रंगै। टोळ रा टोळ बगै। धमाळां गावै। डफ बजावै। सूगला बोलै। मसखरियां करै। गळी-गळी में भाठां, डोलच्यां रा फटीड़ अर कोरड़ां रा सरड़ाट सुणीजै। देवर-भोजाई रंगण नै खसै। कादो मसळै। थोबड़ा ऐड़ा रंगीजै कै बेमाता ई नीं पिछाणै। गधे़डां चढै। मींगणां री माळा। खल्लां रा मौड़। डील माथै राख-धू़ड-कादो मसळै। मै'री नचावै। गैर रम्यां पछै भोजायां देवर अनै दूजां नै पैलड़ै दिन बणायोड़ा पकवान परोसै। कनाणा (बाड़मेर) री गैर, शेखावाटी री गींदड़, बीकाणै री अमरसिंघ हेड़ाऊ, मै'री री रम्मत अर हरसां-ब्यासां री होळी। भरतपुर री लट्ठमार होळी अर रसिया इणी दिन रंग में आवै।
हिरणाकुस री बैन होळका। होळका नै अगन सिनान रो वरदान। अगन सिनान सूं उणरो रूप निखरै। होळका रो भतीजो प्रहलाद बिस्णु रो भगत। हिरणाकुस बिस्णु नै मानै दुसमण। होळका प्रहलाद नै बाळ मारण री धारै। प्रहलाद नै गोदी में लेय'र अगन-सिनान करै। वरदान फुरै। होळका बळै। पण प्रहलाद बच जावै। इण री साख में होळी मंगळाइजै। हिरणाकुस री बैन होळका रो ब्याव राजस्थान रा ईलोजी साथै बसंत पांच्यूं नै तय। ईलोजी जान लेय'र ढूकै। होळका रै बळ मरण रो समचार मिलै। ईलोजी बगना हो जावै। गैलायां करै। भौमका जाय'र राख में लिटै। धूळ-कादो मसळै। लोगड़ा उण माथै पाणी फैंकै। गुलाल-कादो न्हाखै। ईलोजी बसंत पांच्यूं सूं पून्यूं तक गै'ला हुयोड़ा फिरै। छेकड़ हरीसरण होय देवता बणै। लोगां नै परचा देवै। एकर सीतळा माता वरदान देवै- ईलोजी रूसो मती ना, जिका थानै होळी रै दूजै दिन पूजैला, वांका कारज सरैला। बस उणी दिन सूं धुलंडी मनाईजै। इण दिन लोगड़ा ईलोजी दांई बगना होय गैलायां करता दोपारै तांईं गैर रमै। दोपारां पछै जाणकारां रै घरां राम रमी करण निसरै।

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