रविवार, जनवरी 29, 2012

एक हिन्दी कविता

<> आए सपने <>




रात भर


जगी आंख


आए सपने


सपनों मेँ अपने


जो रहे मूक


हम न रहे मून ।






हमारा एकालाप


तलाश न पाया


मुकाम वांछित


फिर भी


थमा नहीं


सिलसिला बात का


थाम कर


डोर शब्दों की


करता रहा पीछा


तुम्हारे अंतस का

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें