रविवार, अप्रैल 01, 2012

पसन्द और प्राप्ति

<>पसन्द और प्राप्ति<>
पसन्द और प्राप्त होना
कितना कष्ट देता है
तन-मन को
ये तुम जानते हो
या फिर मैं
जिन्हें याद है आज भी
अपनी-अपनी पसन्द
मलाल है प्राप्ति पर ।

प्राप्ति भी वह प्राप्ति
जो हम ने खुद
की नहीं प्राप्त
थोपी गई हम पर
पसन्द थी हमारी अपनी
हमारे पास ही रही
अतीत की स्मृति बन कर !

अब हम
भटकते हैं दिन भर
देह उठाए
बुनते हैं ताना बाना
अधूरे मन जीवन का
सांझ ढले सो जाते हैं
स्मृतियों के आंगन
अपने ही भीतर !

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