'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, मई 20, 2012
एक हिन्दी कविता
कौन है वो
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खुली आंख
दिखता नहीं
दिखता है तो
रुलाता है ।
बन्द आंख
दिखता है
बार-बार
गुदगुदाता है !
कौन है वो
जो रमता है
भीतर मेरे ?
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