मुस्कुराहट
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छप्पन साल से
ढल रही है सांझ
हो रही है भोर
इतने सालों में
कितने कागज लिखे
कितने कागज पढ़े
ठीक से ध्यान नहीं
बस याद है
दीवार पर टंगा कैलेण्डर
जो खूंटी से उतर
पोथी पर चढ़ जाता था
बस उस दिन
एक साल बढ़ जाता था
खूंटी पर आज भी
डोरी के निशान हैं
जो उतर आए हैं
मेरे चेहरे पर ।
पिताजी ने एक बरस
कैलेण्डर का एक पन्ना
चढ़ाया था "गोदान" पर
आज भी वह
तर ओ ताजा है
जिस पर मुस्कुराता है
मधुबाला का चेहरा ।
सोचता हूं
आज न मधुबाला है
न पिताजी
फिर क्यों शेष है
वह मुस्कुराहट
क्या इसी तरह
बची रहेगी
मेरे घर
कोई मुस्कुराहट ?
behatareeen..
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