सोमवार, जुलाई 16, 2012

शब्दों का संवेदन


* शब्दों का संवेदन*

इस ने बोले
उस ने बोले
बोली दुनिया सारी
एक-एक शब्द की
बांध पोटली
ऊंच चले
शब्दोँ के व्यपारी !

तेरे हाथ
कलम लगी तो
बन बैठे तुम व्यवहारी
एक-एक शब्द को
बांच-टांच कर
रच दी माया सारी !

इस माया नगरी में
अब खोये शब्द अमोले
न वो बोले
न तुम बोले
शब्द मांगते अपनी
डूबी आज उधारी
कलम नौचती
कागज बैठी
रोता संवेदन
कैसी ये लाचारी !

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