यादें तुम्हारी
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यादें तुम्हारी
मीठी हैं बहुत
फिर क्यों टपकता है
आंखो से खारा पानी
जब-जब भी
सुनता-देखता हूं
तुम्हारी स्मृतियों की
उन्मुक्त कहानी !
दिल में
यादें थीं तुम्हारी
जिन पर
रख छोड़ा था मैंने
मौन का पत्थर
इस लिए था
दिल बहुत भारी ।
आंखों में थीं
मनमोहक छवियां
कृतियां-आकृतियां
लाजवाब तुम्हारी
जिनके पलट रखे थे
सभी पृष्ठ मैंने
अब भी चाहते हैं
वे अपनी मनमानी
इसी लिए टपकता है
रात-रात भर
लाल आंखो से
श्वेत खारा पानी ।
हर रात
ओस बूंद से
क्यों टपकते हैं
आंसू आंख से
घड़घड़ाता है
उमड़-घुमड़ दिल
जम कर कभी
क्यों नहीं होती बारिश !
.
*मेरा मीत *
चित चुराए
महक तुम्हारी चोर
हवा में बिखेर
पुष्प इतराया
ओढ़ विशेषण
झुक-झुक आया
गया वसंत
तब से मौन
मेरा मीत
मेरे भीतर
अब भी महके
पुष्प बता
अब तेरा कौन ।
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