मंगलवार, सितंबर 25, 2012

॥+॥ बिफरते थार में ॥+॥



पानी नहीं था
प्यास भर
सम्भावानाएं थी
असीम आस लिए
थिरकते जीवन की
बिफरते थार में
जो न जाने कब

खींच लाई
पुरखों को हमारे
अपने मरुथल द्वारे !

सांय-सांय करता

थरथर्राता थार
बाहें पसार
बुलाता रहा
सुलाता रहा
मीठी थपकियां दे ।

मैं भी बुनता रहा

सीने लग सपने
देखता रहा
दौड़ते मृग
तैरती तृष्णा
नहीं पकड़ पाए
हम तीनों
पानी जैसा पानी
फिर भी जी लिया
जीवन जैसा जीवन !

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