रविवार, अक्तूबर 21, 2012

शब्द तो नहीं बदलते


।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
पायल की झंकार सुन
लिख दिए तुम ने
अगणित छंद
गा दिए ऊंचे स्वर में
मधुरिम गीत
लिखी नहीं कभी
एक भी पंक्ति
भूखे की पुकार पर
मासूम बच्चों के
क्रंदन अपार पर !

कभी जनवादी
कभी राष्ट्रवादी
कभी प्रगतिशील
क्यों हो जाते हो कवि
तुम कवि हो तो
कवि क्यों नहीं रह पाते
हर बार
बदलते ही सरकार
बन कर झंडाबरदार
क्यों डट जाते हो मैदान में
कह सकते हो जब मंच से
क्यों कुछ कहते हो
मंत्री के कान में !

पक्षी बन कर
क्यों बैठते हो
सत्ता की डाल
क्यों उड़ जाते हो
विपक्षी बन कर
खड़े क्यों नहीं रह पाते
हर सू जन के साथ
क्यों बदल जाती हैं
सत्य की परिभाषाएं
शब्द तो नहीं बदलते
अपने अर्थ
तुम क्यों बदल जाते हो
सर्वथा व्यर्थ !

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