रविवार, अक्तूबर 21, 2012

यात्रा में बहता हुआ


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रेल में बैठे हुए
हमें लगता है
केवल हम ही व्यस्त हैं
इस यात्रा में
बाहर झांकेँ तो
खिड़की के उस पार
व्यस्त नजर आता है
सकल जागत
यात्रा में बहता हुआ !

पेड़-पहाड़-नदियां
गांव-खेत-ढाणियां
खिड़की के सामने
कितनी तेजी से
पास आ आ कर
जाते हैं हम से दूर
जैसे मची हो होड़
झलक दिखाने की !

रेल के साथ
हम दौड़ रहे हैं
बिना दौड़ते हुए
हम पहुंचते हैं
गाड़ी के साथ
अगले स्टेशन
मगर कहते हैं
स्टेशन आ गया !

पेड़ के पास
हम गए या पेड़ आया
सवाल है
उत्तर पेड़ का आना है
यह भी सवाल ही है
सवाल तो यह भी है
यात्रा में बैठे हुए
क्यों भूल जाते हैं
हम तथ्यात्मक व्याकरण !

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