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आंखों से एक सपना खो कर आया हूं ।
अपनों में एक अपना खो कर आया हूं ॥
कांधे पर मेरे हाथ मत रख ऐ रकीब ।
यह लाश बडी़ दूर से ढो कर लाया हूं
न मांग मुझ से मेरी तन्हाईयां इस कदर ।
मैं इन्हें अपना सब कुछ खो कर लाया हूं ॥
क्या पढे़गा भला कोई इतिहास अब मेरा ।
मैं वो पृष्ठ स्याही में डुबो कर आया हूं ॥
न रुला अब किसी और अंजाम के लिए ।
अपने जनाज़े पर बहुत रो कर आया हूं ॥
निरी प्यास है इन में न कर तलाश पानी ।
मैं इन आंखों में अभी हो कर आया हूं ॥
आंखों से एक सपना खो कर आया हूं ।
अपनों में एक अपना खो कर आया हूं ॥
कांधे पर मेरे हाथ मत रख ऐ रकीब ।
यह लाश बडी़ दूर से ढो कर लाया हूं
न मांग मुझ से मेरी तन्हाईयां इस कदर ।
मैं इन्हें अपना सब कुछ खो कर लाया हूं ॥
क्या पढे़गा भला कोई इतिहास अब मेरा ।
मैं वो पृष्ठ स्याही में डुबो कर आया हूं ॥
न रुला अब किसी और अंजाम के लिए ।
अपने जनाज़े पर बहुत रो कर आया हूं ॥
निरी प्यास है इन में न कर तलाश पानी ।
मैं इन आंखों में अभी हो कर आया हूं ॥
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