शुक्रवार, जून 21, 2013

सावन की बरखा

सावन की बरखा पड़ी,लगी झड़ी दिन रैन ।
साजन बिन कहो बदरिया,किस विद आवै चैन ।1।
साजन बसेँ दूर देश मेँ,गये राज के काम । 
काम काम मेँ उधर जलेँ, इधर काम तमाम ।2।
सावन जलाए बदन को, बरखा लेती प्राण ।
साजन बिन अब सांवरा, पाएं कैसे त्राण ।3।
बूंद बूंद पानी पड़े, तन मेँ लागे आग ।
पिव वाणी के सामने,कड़वी कोयल राग ।4।
मिल कर झूला झूलती, पिव होते जो संग ।
बिन पिया तो ये सावन, करता कितना तंग ।5।

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