गुरुवार, जून 20, 2013

*ऐषणाएं अधिक : वक्त कम *

एक वक्त ही था
जिसे मैं रोक न पाया
वरना जीवन में
बड़े-बड़े संकट रोक दिए ।

आज देह बनी है 
रोगों का आगार
खड़े हो कर
लील रहे हैं संकट
हाथ से निकला वक्त
चिढ़ा रहा है मुझे !

इस मृत्युलोक में
ऐषणाएं अधिक
वक्त मगर कम
क्यों देता है सृष्टिकर्ता !

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