ओम पुरोहित "कागद" की
दो हिन्दी कविताएं 1.
याद आता है बचपन
याद आता है बचपन;
वो दौड़ कर तितली पकड़ना
आक के पत्ते झाड़ना
पोखर में नहाना
और फिर
धूल में रपटना
मां की डांट खा करकभी-कभी
मां के संग
मंदिर जाना
खील-बताशे खाना
स्कूल न जाने के लिएपेट दर्द का
बहाना बनाना
फिर मां का दिया
चूर्ण चटखाना
होम वर्क की कॉपी
छुपाना-जलाना
कुल्फी से
होंठ रंगना।
बिल्ली जैसा
म्याऊं करना
कभी रोना मचलना
कभी रूठना मनना
मन करता है
बचपन फिर आए
मां लोरियां सुनाए
न दु:ख हो
न दर्द हो
हर भय की दवा
मां बन जाए
मैं लम्बी तान कर
सोऊं दोपहर तलक
मां जगाए-खिलाए
मैं खा कर सो जाऊं
न दफ्तर की चिंता
न अफसर का डर हो
बस लौट आए
वही बचपन
वही मां की गोद।
2.
फिर वैसी ही चले बयार
फिर वैसी ही
चले बयार
जिसके पासंग में
पुहुप बिखरे महक
महक में बेसुध
गुंजार करते भंवरे
पुहुप तक आएं।
फिर हो
वैसी ही अमां की रात
जिस में ढूंढ लें
जुगनू वृंद
नीड़ अपना
फिर हो
वैसी ही निशा
निशाकर की गोद में
सोई निशंक
जिसकी साख भरता
खग वृंद
छोड़ अपना नीड़
बतियाएं दो पल
मुक्त गगन तले।
फिर हो
चंदा और चकौरी में
उद्दात वार्तालाप
जिसे सुन सके
ये तीसरी दुनिया
फिर हो वैसी ही
स्नेह की बरखा जिस के जल में
भीग जाए
यह सकल जगती।
waah.......
जवाब देंहटाएंshaandar,,
दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी ..बचपन की यादें ऐसी ही होती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचनाये...बचपन की रचना हमें भी बचपन के हिंडोले में झूला गयी.
जवाब देंहटाएंsaadar pranam !
जवाब देंहटाएंek antraal ke baad aap ki saunder kavitae padh achcha laga , sadhuwad .
खूबसूरत कवितायें.. बचपन को फिर से जी लिया हमने भी आपकी कविता के माध्यम से.. साभार..
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavitaayen hain. aise hi likhten rahen. bahut - bahut shubhkamna
जवाब देंहटाएंhriday k chhoone wali kavitaye hai........
जवाब देंहटाएंdono kavitaen bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंsrijan ke naye bimb rachati huyi kavitaon ke liye sadhuwad
जवाब देंहटाएं....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
जवाब देंहटाएंvery nice..
जवाब देंहटाएंमाँ की गोद की याद के साथ बचपन की सभी गलियों में घूम आया आप की सुंदर कविता के साथ ..कोई लोटा दे मेरे बीते हुए दिन.फिर फूल खुशबु और भोरे ने चाँदचकोरी के अबोल संवाद से वाकिफ कराया ,साधुवाद
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