बुधवार, मई 25, 2011

OO मेरी पंजाबी कविताएं : पंजाब चित्तर O

पंजाब में उस आतंक के दौर को हम सब ने जीया-सहा जो समूचे पंजाब के जनमानस की चाहत नहीं था ! आतंक के उस दंश को पंजाब के जन मानस ने बहुत करीब से झेला ! आतंक के उस गुब्बर ने जो चिन्ह वहां छोडे़ उसके अक्स आज भी भयभीत करते हैं ! पंजाब के लोगों का दर्द किस कदर पीढियों में समाने लगा ! मैंने उस दर्द की तस्वीर अपने शब्दों में उस वक्त उतारी जो पंजाबी कवि फ़ूल सिंह मानव के सम्पादन में शिक्षा विभाग राजस्थान के संकलन " अंतर्भारती " [1993 ]में " पंजाब चित्तर " नाम से छपे एवम बहुत चर्चित हुए ! आपकी प्रतिष्ठा में प्रस्तुत है वही- " पंजाब चित्तर ! " राजस्थानी व हिन्दी अनुवाद सहित-

[ 1 ]


ਇਕ ਵਿਧਵਾ
ਦੂਜੀ ਵਿਧਵਾ ਨੂਂ
ਪੁਛਦੀ ਹੈ
ਤੀਜੀ ਵਿਧਵਾ ਦੇ ਹਾਲ
ਜੇਡੀ਼ ਜਾਣਦੀ ਹੈ
ਸਾਰਿਯਾਂ ਵਿਧਵਾਵਾਂ ਦੇ ਹਾਲ
ਤੇ ਦਸਦੀ ਹੈ
ਕਿ ਗਵਾਂਡ ਆਲ਼ੇ ਪਿਂਡ ਵਿੱਚ
ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਨੇਰੇ ਤੇ
ਅਜਕਲ
ਨੀਂ ਸੁੱਕਦਿਯਾਂ ਪੱਗਾਂ !

ਇਕ ਹੋਰ ਵਿਧਵਾ
ਜੇਡੀ਼ ਆਈ ਹੈ
ਦੂਜੇ ਜ਼ਿਲੇ ਤੋਂ / ਦਸਦੀ ਹੈ
ਘੋਡੀ਼ ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਸਜ਼ਦੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਨਿਕਲ ਦੀ ਜੰਨ
ਕਿਸੇ ਪਿਂਡ ਤੋਂ
ਕਿਸੇ ਪਿਂਦ ਲਈ!


ਗੱਲ ਦੇ ਬਾਦ
ਕਿਤੇ ਕੋਈ ਗੱਲ
ਬਾਕੀ ਨੀਂ ਰਹਿਂਦੀ
ਤੇ ਫ਼ੇਰ
ਬਲਾਂ
ਪੁੱਜ ਕੇ ਰੋਂਦਿਯਾਂ ਹੰਨ
ਮਿਲ ਬਹਿ ਕੇ
ਸਾਰਿਯਾਂ ਵਿਧਵਾਵਾਂ
ਗਿਧੇ ਦੀ ਤਰ੍ਜ਼ ਤੇ
ਪਿੱਟਦਿਯਾਂ ਹਨ ਛਾਤੀ !


[ 2 ]


ਪੁਛਦੀ ਹੈ ਅਂਬੋ ਤੋਂ
ਸੱਤ ਸਾਲ ਦੀ ਗੁਰਮੀਤ
ਵੱਡੇ ਹਨੇਰੇ ਵੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਆਵਂਦਾ
ਕੋਈ ਬਂਦਾ ਅਪਣੇ ਘਰ ?

ਦੱਸ ਅਂਬੋ
ਮੇਰੀ ਬੇਬੇ ਦਾ ਬ੍ਯਾਹ
ਕਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੋਯਾ ਸੀ ?
ਕਦੇ ਆ ਕੇ
ਮੇਰਾ ਸਿਰ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਪਲੂਸਦਾ ਬਾਪੂ
ਤੇ ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਲ੍ਯਾ ਕੇ ਦੇਂਦਾ
ਮਂਡੀ ਤੋਂ ਸ੍ਲੇਟ ਬਰਤਾ ?
ਕਿੱਥੇ ਹੈ ਬਾਬਾ
ਆਵਂਦਾ ਕ੍ਯੋਂ ਨੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੇ ਕਰਦਾ ਕੁੱਤਕੁਤਾਡਿਯਾਂ
ਮੇਰੇ ਪਿਂਦੇ ਤੇ ?


ਪਰ
ਸੱਤਰ ਸਾਲ ਦੀ ਕਰਤਾਰੋ
ਹੌਂਕਾ ਭਰ ਕੇ ਰਹ ਜਾਂਦੀ ਹੈ
ਅੰਨੀ ਅਖਾਂ ਤੇ ਖਿਚ ਕੇ ਚੁੰਨੀ
ਕੈਹਂਦੀ ਹੈ
ਸੋਂ ਜਾ ਪੁੱਤ
ਸਾਰੇ ਸੌਂ ਪਏ !


[  3 ]


ਦੱਸ ਤਾਈ
ਕਦੋਂ ਹੋਵੇਗੀ ਮੇਰੀ ਬੇਬੇ ਦੀ ਮਂਗਣੀ ?
ਪਹਿਲਾਂ ਦੱਸ ਸਚੀਂ
ਕਦੌਂ ਆਵਣਗੇ
ਤਾਯਾ ਜੀ ਘਰ ?


ਪਿਂਡ ਵਿਚ
ਕ੍ਯੋ ਨੀਂ ਬੋਲ ਦੇ ਆਪਸ ਵਿਚ ਸਾਰੇ
ਇਕ ਦੂਜੇ ਗਵਾਂਡੀ ਨਾਲ ?
ਵਾਹੇ ਗੁਰੂ ਦੇ ਘਰ ਵਿਚ ਵੀ
ਕ੍ਯੋਂ ਲਗਦਾ ਹੈ
ਧਮਾਕ੍ਯਾਂ ਦਾ ਡਰ ?


ਬੋਲੇ ਸੋ ਨਿਹਾਲ
ਕ੍ਯੋਂ ਨੀਂ ਹੋਂਦਾ ਅਜਕਲ ?

==============

राजस्थानी अनुवाद
==============

[ १ ]

ऐक विधवा
दूजी विधवा सूं
पूछै
तीजी विधवा रा हाल
जकी जाणै
सगळी विधवावां रा हाल
अर बतावै
कै पाडो़स आळै गांव में
किणी भी मंडेरी माथै
अजकाळै
नीं सुक्कै पागड़्यां !


ऐक और विधवा
जकी आई है
दूजै ज़िलै सूं / बतावै
घोडी़ क्यूं नीं सजै
क्यूं नीं निकलै बरात
किणीं गांव सूं
किणीं गांव सारू !


बातां रै बाद
कठै ई कोई बात
बाकी नीं रै’वै
अर पछै
बेजां
बोकाडा़ फ़ाड़ बोकै
भेळी बैठ
सगळी विधवावां
गिड़दै री तरज़ माथै
कूटै छाती !


[ २ ]


पूछै दादी सूं
सात साल री गुरमीत
दिन छिप्यां पछै भी
क्यूं नी आवै
कोई माणस आपणै घरां ?
बता दादी
म्हारी मा रो ब्यांव
किण रै साथै होयो ?
कदै ई आय’र
म्हारै सिर माथै
हाथ क्यूं नीं फ़ेरै बापू सा ?
अर क्यूं नीं ल्या’र देवै
बज़ार सूं स्लेट-बरतो ?


कठै है दादो सा
आवै क्यूं नीं
क्यूं नीं करै गिलगिलिया
म्हारै डी’ल माथै !


पण
सत्तर साल री करतारो
सिसकारो न्हाख’र ढब जावै
आंधी आंख्यां माथै खींच’र चुन्नी
बोलै
सोज्या बेटा
सगळा सोग्या !


[ ३ ]

बता बडिया
कद होसी म्हारी मा री सगाई ?
पै’ली बता सांची
कद आसी
बाबो जी घरां ?


गांव में
क्यूं नीं बोलै आपस में सगळा
ऐक-दूजै पाडौ़सी साथै ?


वाहे गुरू रै घर में भी
क्यूं लागै
धमीडां रो डर ?
बोलै सो निहाल
क्यूं नीं होवै अजकाळै ?

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हिन्दी अनुवाद
=================

[ १ ]


एक विधवा
दूसरी विधवा से
पूछती है
तीसरी विधवा के हाल
जो जानती है
सब विधवाओं के हाल
और बताती है
कि पडो़स के गांव में
किसी भी मुंडेर पर
आजकल
नहीं सूखतीं पगडि़यां !


एक और विधवा
जो आई है
दूसरे ज़िले से /बताती है
घोडी़ क्यों नहीं सज़ती
क्यों नहीं निकलती बारात
किसी गांव से
किसी गांव के लिए !

बातों के बाद
कहीं कोई बात
शेष नहीं रहती
और फ़िर
ऊंची आवाज में
जार जार रोती हैं
गिद्धे की तर्ज़ पर
पीटती हैं छातियां !


[ २ ]


पूछती है दादी से
सात साल की गुरमीत
सांझ ढले भी
क्यों नहीं आता
कोई बंदा अपने घर ?


बता दादी
मेरी मां का विवाह
किस के संग हुआ था ?
कभी आ कर पिताजी
क्यों नहीं करते प्यार
और क्यों नहीं ला कर देते
बाज़ार से स्लेट-बरता ?


कहां है दादाजी
आते क्यॊं नहीं
क्यॊ नहीं करते गिलगिली
मेरे शरीर पर ?


परन्तु
सत्तर साल की करतारो
सिसक कर रह जाती है
अंधी आंखों पर खींच कर चुन्नी
कहती है
सो जाओ बेटा
सब सो गए हैं !


[ ३ ]


बता बडी़ मां
कब होगी मेरी मां की सगाई ?
पहले बता सच
कब आएंगे ताऊ जी घर

गांव में
क्यों नहीं बोलते सभी
एक दूसरे पडो़सी के साथ ?


वाहे गुरू के घर में भी
क्यों लगता है
धमाकों का डर ?
बोले सो निहाल
क्यों नहीं होता आजकल ?






4 टिप्‍पणियां:

  1. पंजाबी तो मुझे लिखनी ओर पढनी नही आती,हां बोल लेता हुं खास दुआवे की, लेकिन उस दर्द को मै भी महसूस करता हुं, क्योकि हमारे ज्यादातर रिश्ते दार पंजाब मे रहते हे, ओर जब वो बताते हे तो आज भी रोंगटे खडे हो जाते हे

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  2. pranam !
    agar aap kavitaa ka anuwad bhi sath dete to hume jais punjaabi ke nirakshron ko aap ki sunder rachna ka rassadan karne ka soubhagya prapt hotaa .phir bhi aap ki punjaabi rachna ko dekh aap teem bhasho ke kavi haamre liye ho gaye hai . shesh patto ke khule ka pratiksah hai .
    saadar

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  3. भाई "कागद" जी राम-२ ,तीन भाषा माय रचनावां बांची जी सोरो होयो ,पूरो सुरों न्याव करयो,लिख्दाद
    """"""""""एक बात है -"कागद" होवे तो हर कोई बांचे """"""""""""""बापड़ो अनपढ़ हुवे ..तो काईं बांचे ?????

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