गुरुवार, जून 30, 2011

सावन के दोहे

सावन के दोहे




























सावन की बरखा पड़ी,लगी झड़ी दिन रैन ।
साजन बिन कहो बदरिया,किस विद आवै चैन ।1।

साजन बसेँ दूर देश मेँ,गये राज के काम ।
काम काम मेँ उधर जलेँ, इधर काम तमाम ।2।

सावन जलाए बदन को, बरखा लेती प्राण ।
साजन बिन अब सांवरा, पाएं कैसे त्राण ।3।

बूंद बूंद पानी पड़े, तन मेँ लागे आग ।
पिव वाणी के सामने,कड़वी कोयल राग ।4।

मिल कर झूला झूलती, पिव होते जो संग ।
बिन पिया तो ये सावन, करता कितना तंग ।5।
 
धन कमाने पिया गए,आया सावन मास ।
धन को तन नहीँ जाने, मांगे प्रीतम पास ।6।


अम्बर छाई बदरिया, धरती छाया नेह ।
प्रीतम आवन आस मेँ, सावन बरसे मेह ।7।


आंखेँ बरसी प्रीत मेँ, प्रीतम देखूं आह ।

धरती बादल मिल लिये,मेरी उलझी चाह ।8।

खत मेँ गत मैँ क्या लिखूं,आओ प्रीतम पास ।
सावन फीका जा रहा, तुझमेँ अटकी सांस ।9।

तुम बिन ये घर घर नहीँ, लगता है बनवास ।
सावन मेँ जो सग रहो, जीवन बांधूं आस ।10।

8 टिप्‍पणियां:

  1. ओम पुरोहित जी कई वर्ष पहले सूरतगढ़ में रहा हूँ और आपसे शायद भेंट भी हुई है, बहुत अच्छा लगा आज आपका ब्लाग देख कर।

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  2. आंखेँ बरसी प्रीत मेँ, प्रीतम देखूं आह।
    धरती बादल मिल लिये,मेरी उलझी चाह।।

    सावन का आभास करते सुंदर दोहे

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  3. धन कमाने पिया गए,आया सावन मास ।
    धन को तन नहीँ जाने, मांगे प्रीतम पास ।6।
    बहुत सुंदर रचना लगी, एक से बढ कर एक ,

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  4. ओम जी सारे के दोहे अद्भुत हैं और सावन के समस्त रंगों को उजागर कर रहे हैं...इन कमाल के दोहों के लिए मेरी बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  5. खत मेँ गत मैँ क्या लिखूं,आओ प्रीतम पास ।
    सावन फीका जा रहा, तुझमेँ अटकी सांस ।9।;;;;
    Barsaat mein Nayika ke mann ki virah-vedna ko in doho me badi safalta se ukera hai aapne...badhai...:)

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