रविवार, जनवरी 29, 2012

दो हिन्दी कविताएं

*अविचल पहाड़*


खड़ा था पहाड़


अटल-अविचल


नभ को नापता


सूरज को तापता


आंधियों ने


वो अविचल पहाड़


हिला दिया


काट-तोड़-फोड़


हवाओं ने वो पहाड़


मिट्टी में मिला दिया !
 
 
.


[<0>]प्रीत की साख[<0>]



निराशा के थेहड़ में भी


आशा की उज्ज्वल किरण


सुरक्षित है हमारे लिए


जो आ ही जाएगी


आत्मीय स्पर्श ले


हमारे सन्मुख


समय के साथ


इस लिए


मैं कर रहा हूं इंतजार


समय के पलटने का ।






समय दौड़ रहा है


आ रहा है समीप


या जा है रहा दूर


अभी तो देता नहीं


वांछित ऐहसास


आश्वस्त हूं मगर मैं


एक हो ही जाएगा


हमारे सन्मुख नतमस्तक !






इसी लिए


कहता हूं प्रिय


तुम भी करो इंतजार


बैठ कर अपने भीतर


बदलते समय का


यही आएगा


बन साक्षी


भरने प्रीत की साख !

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