रविवार, जनवरी 29, 2012

एक हिन्दी कविता

.


[<>] कयास बहुत हैं [<>]



कल क्या होगा


अच्छा-बुरा


यह-वह


कयास तो बहुत हैं


मेरे-तुम्हारे पास


उन में मगर


किन्तु-परन्तु बहुत हैं !






सायास न भी हो


अनायास तो कुछ न कुछ


हो ही सकता है


मसलन


सच्चाई को मिल जाए


उसकी उज्ज्वल कीमत


किन्तु देगा कौन ?






कल शायद


नेता के वादे


हो जाएं पूरे


पूरे हो जाएं


सपने अधूरे


पूरा का पूरा बजट


लग जाए योजना पर


परन्तु लगाएगा कौन ?






कल हो सकता है


वक्त पर आ जाए


रेल मेरे कस्बे में


देशद्रोहियों को


सरे राह लग जाए फांसी


डाले गए वोट की कीमत


पहचान ली जाए


मगर पहचानेगा कौन !






कल तो


यह भी हो सकता है


पेड़ों पर लगने लगें रोटियां


मिलने लगें डिब्बा बंद घर


शरीर पर चमड़ी की जगह


बनने लगे कपड़ा


यदि ऐसा हुआ तो


देश का बजट कैसे बनेगा ?


यदि देश का बजट


न बना तो


नेता चलेगा कैसे ?






कल कुछ न कुछ


होगा ज़रूर


और नहीं तो


तारीख तो बदल ही जाएगी


तारीख बदली तो


साल महीने भी बदलेंगे


फिर तो


आ ही जाएगा नया कैलेण्डर


जो लटकेगा दीवार पर


नत्थू की पगार की तरह ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें