सोमवार, अप्रैल 16, 2012

एक हिन्दी कविता

 
आ ज़िन्दगी
 
आ ज़िन्दगी
यादों की गठरी खोलें
अपना अपना मुख खोलें
करें समागम
बात करे !

मैं तेरा
तू मेरी ज़िन्दगी
फिर भी
बीच हमारे
दूरी क्यों
तेरी और मेरी
हर आस
अधूरी क्यों ?

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