रविवार, अप्रैल 01, 2012

चिंताएं

{()} चिंताएं {()}
कितनी देर चलूंगा
कितनी दूर चलूंगा
ज्ञात नहीं
तभी तो थक जाता हूं
अनजान राहों पर
चलते-चलते मैं ।

भाड़े का पगेरु
मांदा मजदूर
थक कर भी
नहीं थकता कभी
जानी पहचानी राहों पर ।

मैं
थक कर
सो जाना चाहता हूं
अगले काम के लिए
वह
सो कर
थकना नहीं चाहता
अगले काम के लिए ।

मेरी और उसकी यात्रा में
लाचारी प्रत्यक्ष है
फिर अंतर क्यों आ जाता है
हमारी थकावट में ।

शायद
उसकी यात्रा में
प्रयोजन पेट
मेरी यात्रा में
प्रयोजन चिन्ताएं हैं
चिन्ताएं भी सिरफिरी ;
यह यात्रा तो
कोई मजदूर भी कर लेता
अगर दिए होते
सो पच्चास !

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