एक हिन्दी कविता
दिल के आंसू
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आंसू
आंख ही से टपके
तभी जानें ;
दुखी है कोई
गहरा दर्द है उसे
यह जरूरी तो नहीं
दिल भी तो रोता है
बार-बार
जार-जार
समझो मेरे यार !
आंख नहीं होती
दिल के
वह मगर देखता है
समझता है सब कुछ
समझ कर ही
करता है प्रीत
तभी तो
अंधा होता है प्यार
खा जाता है ठोकर
फिर रोता है जार-जार !
दिल के आंसू
दिखते तो नहीं हमें
आओ !
उन आंसूओं को जानें
जो टपकाता है दिल
तभी मानें
हम दोस्त हैं किसी के !
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