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उत्सव नहीं भय है मृत्यु
==============
जहां से होता है
अंत जीवन का
ठीक वहीं से
शुरु होती है मृत्यु !
किसी ने कहा है -
मृत्यु उत्षव है
जीवन के अंत का
या कि देह के
आत्मा से विलग हो
परमात्मा से मिलन की
अकूंत घड़ी का !
मृत्यु उत्सव है तो
भयभीत क्यों हूं मैं
मना क्यों नहीं पाता
इस उत्सव को
अपने परिजनों के साथ
गाता-नाचता हुआ ?
मेरे कदम स्थिर
अचल हैं
मैं नहीं जा रहा
वही आ रही है
मेरी ओर दौड़ती हुई
उस के स्वागत में
उठते क्यों नहीं
मेरे दो-चार कदम ?
जब भी उटे
मृत्यु के विरुद्ध ही उठे
मेरे कमजोर कदम
कर आए हैं पार
मृत्यु की पचपन सीढ़ियां
आवाज गूंजती है
मेरे कानों में ;
और आगे नहीं
आगे खड़ी है मत्यु
मुझे लगता है
उत्सव नहीं
भय ही मृत्यु !
आत्मा ओ परमात्मा
जो हैं अजर अमर
बैठै हैं क्यों छुप कर
मेरे बाहर भीतर
उनके मिलन के
उत्सव का माध्यम
मेरी मृत्यु ही क्यों है
इतने बड़े विराट में
क्या कोई और नहीं है
माध्यम सिवाय मृत्यु के ?
उत्सव नहीं भय है मृत्यु
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जहां से होता है
अंत जीवन का
ठीक वहीं से
शुरु होती है मृत्यु !
किसी ने कहा है -
मृत्यु उत्षव है
जीवन के अंत का
या कि देह के
आत्मा से विलग हो
परमात्मा से मिलन की
अकूंत घड़ी का !
मृत्यु उत्सव है तो
भयभीत क्यों हूं मैं
मना क्यों नहीं पाता
इस उत्सव को
अपने परिजनों के साथ
गाता-नाचता हुआ ?
मेरे कदम स्थिर
अचल हैं
मैं नहीं जा रहा
वही आ रही है
मेरी ओर दौड़ती हुई
उस के स्वागत में
उठते क्यों नहीं
मेरे दो-चार कदम ?
जब भी उटे
मृत्यु के विरुद्ध ही उठे
मेरे कमजोर कदम
कर आए हैं पार
मृत्यु की पचपन सीढ़ियां
आवाज गूंजती है
मेरे कानों में ;
और आगे नहीं
आगे खड़ी है मत्यु
मुझे लगता है
उत्सव नहीं
भय ही मृत्यु !
आत्मा ओ परमात्मा
जो हैं अजर अमर
बैठै हैं क्यों छुप कर
मेरे बाहर भीतर
उनके मिलन के
उत्सव का माध्यम
मेरी मृत्यु ही क्यों है
इतने बड़े विराट में
क्या कोई और नहीं है
माध्यम सिवाय मृत्यु के ?
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