मौसम बदलना होगा
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मन नहीं था
फिर भी सोचा
नई बात मिले तो
आज फिर लिखूं
कोई नई कविता !
कुछ भी न मिला
पत्नी के वही ताने
चीज न लाने के
मेरे वही बहाने
बजट में भी तो
कुछ नया नहीं था
जिस को पढ़-सुन
बैठ जाता सुस्ताने
मीडिया ओ सदनो में भी
पक्ष-विपक्ष की बहस
गरीबी है-
गरीबी नहीं है पर
अंतहीन अटकी है !
एक कांड भूलूं तो
दूसरा सामने आता है
कहां है अब
नानक से सच्चे सोदे
हर सोदे में दलाली
घरों में कंगाली
गलियों में मवाली
सीमाओं पर टकराव
बाजार में ऊंचे भाव
राजनीति के पैंतरै
नेताओं के घिनोने दांव
आंतो की अकुलाहट
आतंकी आहट
दिवसों पर सजावट
सब कुछ वैसा ही तो है
जब मैंने लिखी थी
पहली कविता !
अच्छा-बुरा
घट-अघट सब
ऊपर वाले की रज़ा
बेईमान को इनाम
ईमानदार को सज़ा
सत्ता का गणित साफ
गैरों से सब वसूली
अपनों की माफ
समाजवाद आएगा
राशन और रोशनी
घर-घर होगी
गरीबी मिटेगी
कपड़ा-मकान और रोटी
सब को मिलेगी
कब मिलेगा यह सब
न पहले तय थी
न आज तारीख तय है !
जब सब कुछ
वैसा ही समक्ष
तो कैसे लिखूं
कोई नई कविता
नया कागज
नई कलम
नई तकनीक
तासीर नहीं कविता की
कविता को चाहिए
चेहरे,चाल और चरित्र में
देश की स्थिति विचित्र में
बदलाव की बयार
जो देता है मौसम
हम-तुम नहीं
अब तो दोस्त
मौसम बदलना होगा
फौलाद को भी अब
संगीनों में ढलना होगा !
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मन नहीं था
फिर भी सोचा
नई बात मिले तो
आज फिर लिखूं
कोई नई कविता !
कुछ भी न मिला
पत्नी के वही ताने
चीज न लाने के
मेरे वही बहाने
बजट में भी तो
कुछ नया नहीं था
जिस को पढ़-सुन
बैठ जाता सुस्ताने
मीडिया ओ सदनो में भी
पक्ष-विपक्ष की बहस
गरीबी है-
गरीबी नहीं है पर
अंतहीन अटकी है !
एक कांड भूलूं तो
दूसरा सामने आता है
कहां है अब
नानक से सच्चे सोदे
हर सोदे में दलाली
घरों में कंगाली
गलियों में मवाली
सीमाओं पर टकराव
बाजार में ऊंचे भाव
राजनीति के पैंतरै
नेताओं के घिनोने दांव
आंतो की अकुलाहट
आतंकी आहट
दिवसों पर सजावट
सब कुछ वैसा ही तो है
जब मैंने लिखी थी
पहली कविता !
अच्छा-बुरा
घट-अघट सब
ऊपर वाले की रज़ा
बेईमान को इनाम
ईमानदार को सज़ा
सत्ता का गणित साफ
गैरों से सब वसूली
अपनों की माफ
समाजवाद आएगा
राशन और रोशनी
घर-घर होगी
गरीबी मिटेगी
कपड़ा-मकान और रोटी
सब को मिलेगी
कब मिलेगा यह सब
न पहले तय थी
न आज तारीख तय है !
जब सब कुछ
वैसा ही समक्ष
तो कैसे लिखूं
कोई नई कविता
नया कागज
नई कलम
नई तकनीक
तासीर नहीं कविता की
कविता को चाहिए
चेहरे,चाल और चरित्र में
देश की स्थिति विचित्र में
बदलाव की बयार
जो देता है मौसम
हम-तुम नहीं
अब तो दोस्त
मौसम बदलना होगा
फौलाद को भी अब
संगीनों में ढलना होगा !
अब तो दोस्त
जवाब देंहटाएंमौसम बदलना होगा
फौलाद को भी अब
संगीनों में ढलना होगा !
बदलाव तो चाहिए....
मौका भी है,दस्तूर भी है और अब तो जरूरत भी है....!