रविवार, मई 20, 2012

एक हिन्दी कविता

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मेरी माँ कहती है
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आसमान में गर्द
ज़मीन पर ज़लजला
वातावरण में तमस
गलियों में भेड़िए
सड़कों पर लक्कड़बग्घे
ताक में शिकारी
कितना भयानक है
मंजर सामने हमारे
यह तस्वीर अब तो
बदलनी चाहिए
मगर बदलेगा कौन ?

मेरी मां कहती है
तुम नहीं जानते
यकीनन उसे
जो बदलेगा मंजर
वह कौन है ?

थूक बिलोने वाले
भाषणबाज जीभले
नहीं ला सकते बदलाव
वो जो भीड़ में
बैठा है सब से पीछे
मुठ्ठियां तानें मौन
सारा बदलाव
वही नत्थू लाएगा
सुनना वो गीत
भीड़ से उठ कर
जब वो एकांत में गाएगा
देखना एक दिन
यही मरदूद क्रांति लाएगा !
 


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