सच बता भगवान
===========
भगवान को नहीं देखा
मंदिरों से निकल
पहाड़ों से उतर
कभी आते-जाते
भूखे-दुखी-गरीब के घर
दुखों में
आकंठ डूबा आदमी
हो असहाय जाता है
मंदिरों में
पर्वत शिखर पर
पाषाण ढले
भगवान की शरण
लौटने पर
सुख तो नहीं
दिखता है
चेहरे और पांवों पर
उतर आया
दुखों का पहाड़ ।
पहाड़ का पत्थर
तराश तराश
जिसे ने दिया
तुझ निराकार को
मनमोहन आकार
वह भूखा
तुझ को भोग
क्यों भगवान
क्यों रचता है
ऐसे योग-दुर्योग !
तेरी कृपा पाने
अपना और परिवार का
पेट काट
खरीद चढ़ाता है
रुचिकर चढ़ावा
ऐसा भोग
कैसे लगा लेता है
सच बता भगवान !
स्थाई रोजगार
दो जून रोटी की
लगा कर अरजी
रख-रख उपवास
करता है सवामणी
भरता है भक्त
तेरा पेट-पाषाण
सचा बता
कैसे खा लेता है तूं
भूखे के सामने
सवा सवा मण ?
यह भी तो बता
तुझ निराकार को
क्यों लगती है
इतनी भूख
धार कर
रूप पाषाण !
तेरी कृपा पाने
जवाब देंहटाएंअपना और परिवार का
पेट काट
खरीद चढ़ाता है
रुचिकर चढ़ावा
ऐसा भोग
कैसे लगा लेता है
सच बता भगवान !
प्रश्न तो स्वाभाविक है......लेकिन कोई करता ही नहीं.....( कभी कभी तो मैं भी नहीं )