'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
शुक्रवार, जून 15, 2012
बिरवा
नाता जो जमीं से था ।
सूरज को जचा नहीं ।।
इस नापसंदगी में ।
बिरवा वो बचा नहीं ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें