'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
बुधवार, जून 06, 2012
जो दबता है
दब गया तो
गया काम से
यही वह गीत है
जो सब से जादा
गाया जाता है
जो दबता है
उसे ही हर बार
दबाया जाता है !
*
आदमी का
जान न पाया
कोई भेद
धरती और आकाश में
कर के बैठ गया
अपने हाथों छेद !
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