बुधवार, जून 06, 2012

ज़िन्दगी की कविता

ज़िन्दगी की कविता
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आज मेरा दोस्त बोला
आपकी कविता में
प्यार-रंग और रस
नहीं मिलता
जमाने भर का दर्द
उठाए फिरते हो
देखो तो सही
लोग क्या क्या लिखते हैं
पायल की झनकार
रेशमी बाल
गोरे गाल
मस्तानी चाल
बल खा कर चलती
छोरियां व गोरियां
सब होता है
उनकी कविता में
उनकी कविता
चलती नहीं दौड़ती है
तुम कहां टिकते हो ?

तुम्हारी कविता पर
लोग हो जाते हैं
गुमसुम उदास
मायूस बदहवास
मंचों के सामने
सो जाते है लोग
उनकी कविता पर
बजती हैं सीटियां
अथाह तालियां
पास पास आ जाते है
जीजे सालियां
न हों तो भी
बन जाती हैं यारियां !

तुम्हारी कविता पर
आते हैं कमेंट बीस
उनकी पर दो सो बीस
कौनसी कविता अच्छी
कौनसी बुरी है
यह तो तालियां ही
बताएंगी ना दोस्त ?

मैंने कहा
मेरे गुरुजी कहा करते हैं
ऐसे लोग कविता नहीं
कविता का नाश करते हैं
ये लोग कॉफी पी कर
पैशाब की तरह
कविता करते हैं ।

जब घर घर
चूल्हा मौन हो
तो कैसे याद आएगी
प्यार प्रीत की बातें
पायल की झनकार
गौरियों की आबरू
जब दांव पर हो तो
किस कमबख्त को
दिखेंगे पनघट-गौरियां
गाल गुलाबी
नयन शराबी
मस्तानी चाल
रेश्मी जुल्फें
घुंघराले बाल ?

मुझे तो भाई
ज़िन्दगी की
कविता लिखनी है
गन्दगी की नहीं
कविता में लिखूंगा अंगारे
जो एक न एक दिन
जरूर जला देंगे चूल्हा
ना भी जला पाए तो
उन चेहरों को
जलाने का
सामान जरूर जुटा देंगे
जो गरीब की बेबसी पर
तालियां बजाते हैं
मगर बरसों से मौन हैं
आप भी जानते हैं
वो लाचार कौन कौन हैं।

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