सोमवार, जुलाई 16, 2012

प्यार और प्यास

प्यार और प्यास
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कुछ लोग
ढूंढ़ रहे थे
प्यार और प्यास में
एकाकी समानता
कुछ ने तो
कर ही दी स्थापना
इस स्वयंभु सत्य की ।

सत्य जब
छन कर आया
ऐहसास पाया ;
प्यास नहीं है प्यार
प्यास तो बुझ जाती है
मंतव्य पा कर
प्यार मगर बढ़ता है
बढ़ता ही जाता है
मुकाम पा कर ।
प्यास
बादलों की उड़ीक में
धीरज खो गई रेत
उड़ कर हवा संग
पहुंच गई आकाश में
बादलों को नोचने
रेत विहीन धरती
पपड़ा गई
आसमान ताकते ताकते
प्यास भर तो बरस
रेत के समन्दर में !

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