अपना घर
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दिखने में
बहुत छोटा है
मेरा घर
इस में
समा जाती है
सारी दुनिया
मगर
घर से बाहर
रखते ही कदम
आ जाता है परदेस
आता नहीं नज़र
अपना घर !
सोचता हूं
जब आदमी
अपने घर से
दूर हो जाता है
तब वह कितना
मजबूर हो जाता है !
समतल मैदान में
खुले आसमान तले
परिजन के बीच बैठा
कहता है नत्थू
घर के लिए
जरूरी नहीं है
दीवारों पर टिकी
मजबूत छत का होना
जरूरी है
अपनत्व पर टिकी
प्यार-स्नेह
अपनत्व की महक
जो रख सके
बांध कर सब को
अपने सम्मोहन में !
सचमुच
बहुत खुश है नत्थू
अपने घर में
सवाल तो है
भवन की जगह
कब बनाएंगे हम
अपना-अपना घर ?
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कुछ लोग जी रहे हैं
पेप्सी और कोलगेट
बर्गर और चॉकलेट के लिए
नत्थू जी रहा है
बच्चों के पेट के लिए ।
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