आज मूक दर्शक नहीं
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कुछ लोगों ने
मूंछ के लिए कुछ लोगों ने
पूंछ के लिए
युद्ध लड़े
तख्त तक
पलट दिए
पा लिए
तख्त ओ ताज ।
उस वक्त
मूंछ और पूंछ विहीन
बहुत से भूखे लोग
दो जून रोटी के लिए
गिड़गिड़ा रहे थे
उन्हें भूख के सिवाय
कुछ नहीं मिला
वे भूख का वरण कर
मारे गए !
आज फिर
वैसे ही लोग
मूंछें मरोड़ रहे हैं
उनके आगे
चालाक-चतुर लोग
पूंछें हिला रहे हैं
आज मगर
भूखे लोग
मूक दर्शक नहीं
मुठ्ठियां तान रहे हैं
पूंछ तोड़ने
मूंछ काटने के लिए
युद्ध की ठान रहे हैं!
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