शब्द हो गए मौन
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चेहरों से
उल्झे चेहरे
शब्दों का
व्यवहार हुआ
खिंचे शब्द
तने , झल्लाए
थमा संवाद
शब्द हो गए मौन !
बाद मुद्दत के
मन के भरमाए
शब्द अबोले
चाहें होना
मुखर बल से
छले गए जो
चेहरों के छल से ।
मन के भीतर
जम कर बैठे
जस के तस
कुछ शब्द संदेही
गूंथे गांठें
इन गांठों को
अब खोले कौन
शब्द साध कर
बैठै मौन !
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