लिखनी थी मुझे
आज एक कविता
जो छटपटा रही थी
अंतस-अवचेतन मेरे
अंतहीन विषय-प्रसंग
बिम्ब-प्रतीक लिए ।
अनुभव ने कहा
आ मुझे लिख
जगत के काम आउंगा
तुम्हारी यश पताका
जगत मेँ फहराउंगा !
प्रीत बोली
मुझे कथ
तेरे साथ चल
तुम्हारा एकांत धोउंगी
तू हंसेगा तो हंसूंगी
तू रोएगा तो रोउंगी !
दृष्टि कौंधी
चल सौंदर्य लिख
जो पसरा है
समूची धरा पर
अनेकानेक रंग-रूपों में
जो रह जाएगा धरा
जब धारेगा जरा ।
आंतों की राग बोली
मुझे सुन
जठर की आग बोली
मुझे गुण
पेट की भूख बोली
मुझे लिख
हम शांत होंगे
तभी चलेगा जगत
नहीं तो जलेगा जगत !
मैंने पेट की सुन
आंतो की भूख
जठर की आग लिखदी
कोई इंकलाब बोल गया
कौसों दूर नुगरों का
आ मुझे लिख
जगत के काम आउंगा
तुम्हारी यश पताका
जगत मेँ फहराउंगा !
प्रीत बोली
मुझे कथ
तेरे साथ चल
तुम्हारा एकांत धोउंगी
तू हंसेगा तो हंसूंगी
तू रोएगा तो रोउंगी !
दृष्टि कौंधी
चल सौंदर्य लिख
जो पसरा है
समूची धरा पर
अनेकानेक रंग-रूपों में
जो रह जाएगा धरा
जब धारेगा जरा ।
आंतों की राग बोली
मुझे सुन
जठर की आग बोली
मुझे गुण
पेट की भूख बोली
मुझे लिख
हम शांत होंगे
तभी चलेगा जगत
नहीं तो जलेगा जगत !
मैंने पेट की सुन
आंतो की भूख
जठर की आग लिखदी
कोई इंकलाब बोल गया
कौसों दूर नुगरों का
मैंने पेट की सुन
जवाब देंहटाएंआंतो की भूख
जठर की आग लिखदी
कोई इंकलाब बोल गया
कौसों दूर नुगरों का... बेहद अच्छी अभिव्यक्ति