'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
मंगलवार, सितंबर 25, 2012
बस पढ़ लो
जिसने भी प्यार बोया है ।
वही जार जार रोया है ।।
प्रीत लाया और बांट दी ।
बस यूं रिश्तों को ढोया है ।।
बीज नफरत के थे हाथ में ।
उस ने भला क्या खोया है ।।
वो खूब उड़ा आकाश में ।
पंछी कब वहां सोया है ।।
आ कर मुझे भी देख यार ।
ये ज़िन्दा है या मोया है ।।
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