मंगलवार, सितंबर 25, 2012

आजकल आप


चेहरे पर आपके
आज कल
बहुत रंग
आने लगे हैं
जिन्हें देख कर
अब तो
गिरगिट भी

शर्माने लगे हैं !

रुत आने पर

बोला करते थे
कभी सड़कों पर
लोगों के बीच आप
आजकल तो आप
बेवजह टीवी पर
टर्राने लगे हैं !

पीने को नहीं

झौंपड़ पट्टी में पानी
आप तो जनाब
नहाए हुए भी
नहाने लगे हैं !

खाने पर

पहरा आपका
रहा उम्र भर
मगर
वो जो मर गई
भूख में बस्ती
आप हाथ
उस में भी
विदेशी बताने लगे हैं !

रात गुजरती है

लाखों की
खुले आसमान तले
बेखौफ-बेफिक्र
आप तो
बन्द कमरों में भी
घबराने लगे हैं !

वो लाया था

लाठी-लाठी लंगोटी में
छीन कर आज़ादी
आप तो उसे
पांच कपड़ों में भी
गंवाने लगे हैं !

वो बांट गए प्रेम

पढ़ कर ढाई आखर
आप पढ़-पढ़
हजारों ग्रंथ
ज़हर नफ़रत का
फैलान लगे हैं !

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