खुली आंख से
हम ने देखे
सालों सपने
अब तो
थक गईं आंखें
राह भटक कर
औरों की आंखों
सो गए सारे
सपने अपने !
कुछ सपने
थे जो निज अपने
अपनी आंखो में
दम तोड़ गए
सच कहूं तो
सपने खुद
अपना ही
दामन छोड़ गए ।
अब तो
इन आंखों में
सपनों की लाशों का
लगा है अंबार
जिन्हें दफनाता हूं
करता हूं दाह-दाग
दिन रात
मौए सपनों की मिट्टी
लगे ठिकाने
तब देखूंगा
नए सपनें
जो खड़े हैं
पलकों के बाहर
आने से डरते
मेरी भस्मीकुंड आंखो में !
सपने अपने !
कुछ सपने
थे जो निज अपने
अपनी आंखो में
दम तोड़ गए
सच कहूं तो
सपने खुद
अपना ही
दामन छोड़ गए ।
अब तो
इन आंखों में
सपनों की लाशों का
लगा है अंबार
जिन्हें दफनाता हूं
करता हूं दाह-दाग
दिन रात
मौए सपनों की मिट्टी
लगे ठिकाने
तब देखूंगा
नए सपनें
जो खड़े हैं
पलकों के बाहर
आने से डरते
मेरी भस्मीकुंड आंखो में !
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