हवा के आंचल
बैठ अकेला
उड़ चला बीज
चाहे दिशा रही
गंतव्यहीन हर पल ।
पाया अचानक
स्नेहिल अपनापन
छोड़ हवा का आंचल
उतर गया जमीं पर
पा कर नमी अंकुराया
हुई पल्लवित प्रीत
नेह मुस्काया
हो पुष्पित महका
चहकी प्रकृति
छिड़ गई स्वर लहरी
भंवरों की गुंजन में
जिसे ले उड़ी बयार
मधुरिम महक फैलाने !
प्रकृति के आंचल
पगी प्रीत
प्रकट हो फड़फड़ाए
बीज के बीज
उड़ चले
हाथ बयार का थाम
पसरने लगी
प्रीत की प्रीत !
छोड़ हवा का आंचल
उतर गया जमीं पर
पा कर नमी अंकुराया
हुई पल्लवित प्रीत
नेह मुस्काया
हो पुष्पित महका
चहकी प्रकृति
छिड़ गई स्वर लहरी
भंवरों की गुंजन में
जिसे ले उड़ी बयार
मधुरिम महक फैलाने !
प्रकृति के आंचल
पगी प्रीत
प्रकट हो फड़फड़ाए
बीज के बीज
उड़ चले
हाथ बयार का थाम
पसरने लगी
प्रीत की प्रीत !
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