मंगलवार, सितंबर 25, 2012

आने दो सपनों को


लम्बी व सकून भरी
निरापद रात में भी
दिखें मनवांछित सपने
जरूरी तो नहीं !

हमारा जिस्म

चाहे गौरा हो

या फिर हो काला
कभी भी तन के रंग
सपनों में नहीं उतरते
मन को रंगते है
दुनियावी इन्द्रधनुष में
उभरे वर्ण-अवर्ण
चाहे अखरती रहें
रंगविहीन प्रतिक्रियाएं
सपनों में तो प्रतिबिम्ब
हो ही जाते हैं प्रत्यक्ष ।

स्याह रात में

उजले सपने
उजली रात में
स्याह सपने
आ ही जाते हैं
चाह के विरुद्ध
जिस दुनिया से
हम तक आते हैं
मीठे-कड़वे सपने
वह कहीं और नहीं
हमारे ही भीतर
रची गई होती है
हमारे ही द्वारा !

रोको नहीं

आने दो सपनों को
सपने जब भी आते हैं
ले कर कुछ नहीं
कुछ न कुछ
जाते हैं दे कर
चाहे वह हो
अगली रात की नींद !

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