रविवार, अक्तूबर 28, 2012

विजय दिवस नहीं


सदियों से
रावण दहन हो रहा है
आज फिर
धू-धू कर जला
बुराई पर
अच्छाई की विजय के
नारे हुए बुलन्द !

समूचे देश में
कोनें-कोनें से
असंख्य रावणों ने
घनघोर अट्टहास किया
बुराई की नहीं
बुराई के प्रतीक की
पराजय हुई है
अच्छाई की नहीं
अच्छाई के प्रतीक की
विजय हुई है
यह जय-पराजय
केवल प्रतीकों की
जय-पराजय है
झांक कर देखिए
मैं तो यथावत हूं
आज भी आपके दिलों में
ठीक वैसे ही
जैसे भूख रोटी से ही
होती है शान्त
रोटी के प्रतीक से नहीं
उसी तरह
बुराई के दहन हेतु
खुद बुराई को जलाना होगा
बुराई के पुतलों को नहीं

आनन फानन में

नहीं जला करता दशानन
रावण को मार कर
जलाने के लिए
अपने ही भीतर
उतरना पड़ता है
लड़ना पड़ता है
खुद से निर्णायक युद्ध !

आप ने तो अब तक

लकड़ी-बारूद
कागज-प्लास्टिक
जला-जला कर
मेरे दहन के बहाने
और और बुराइयों को
दिया है जन्म
इस पर भी गर्वित हो
पराजय को
विजय कह कर !

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