जब तलक वर्ण
छितरे रहे
न बटोर सके
मूरत अमूरत संवेदनाएं
जब से लगे हैँ बनाने
अपने अपने समूह
उतर आए उनमेँ
दृश्य-अदृश्य-सदृश्य
आकार-निराकार
उभरने-झलकने लगे
सुख-दुख-मनोरथ
आकांक्षाएं-लालसाएं
द्वंद्व-युद्द
अकारण सकारण सकल !
समवेतालाप
और एकालाप के
वशीभूत हो
मुखरित होने के
अपने संकट हैँ
रोना ही तो है यह
सब के बीच अकेले मेँ !
उभरने-झलकने लगे
सुख-दुख-मनोरथ
आकांक्षाएं-लालसाएं
द्वंद्व-युद्द
अकारण सकारण सकल !
समवेतालाप
और एकालाप के
वशीभूत हो
मुखरित होने के
अपने संकट हैँ
रोना ही तो है यह
सब के बीच अकेले मेँ !
रोना ही तो है यह
जवाब देंहटाएंसब के बीच अकेले मेँ !--- बहुत गहन अर्थ और भाव लिये। शुभ्कामनायें।
समवेतालाप
जवाब देंहटाएंऔर एकालाप के
वशीभूत हो
मुखरित होने के
अपने संकट हैँ
रोना ही तो है यह
सब के बीच अकेले मेँ !... मुखरित होते आंसू भी शुष्क हो जाते हैं