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मेरे गीतों में अनुराग मत देख ।
दर्द में रपटी है ये राग मत देख ।।
आंखों से बहते हैं शीतल झरने ।
दिल मे दहकी है वो आग मत देख ।।
आदम के जाए भर हैं ये आदमीं ।
दिल में बैठे हैं वो नाग मत देख ।।
वो बुत देख पुजवा रहा है खुद को ।
बदले हैं पत्थरों के भाग मत देख ।।
अपनी ही चादर को रख पाक साफ ।
उनके दामन पर हैं दाग मत देख ।।
अपनी ही चादर को रख पाक साफ ।
उनके दामन पर हैं दाग मत देख ।।
बेहतरीन ...
जवाब देंहटाएंक्योंकि देखने पर सरे दृश्य,अर्थ बदल जायेंगे
जवाब देंहटाएंआदम के जाए भर हैं ये आदमीं ।
जवाब देंहटाएंदिल में बैठे हैं वो नाग मत देख
जवाब नहीं आपका पुरोहित जी , लाजवाब
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंवो बुत देख पुजवा रहा है खुद को ।
बदले हैं पत्थरों के भाग मत देख ।।
अपनी ही चादर को रख पाक साफ ।
उनके दामन पर हैं दाग मत देख ।।
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अपनी ही चादर को रख पाक साफ
उनके दामन पर हैं दाग मत देख
वाऽह ! क्या बात है !
बहुत बढ़िया !
बहुत सुंदर !
हमेशा की ही तरह …
आदरणीय ओम पुरोहित'कागद'
जी
सादर प्रणाम !
आपकी रचनाओं के लिए क्या कहूं …
हर रचना सुंदर रचना !
अप्रतिम ! अद्वितीय ! अलौकिक !
:)
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआदम के जाए भर हैं ये आदमीं ।
जवाब देंहटाएंदिल में बैठे हैं वो नाग मत देख
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।