रविवार, अक्तूबर 21, 2012

पसन्द

मजदूर और किसान
हर दिन
जागते हैं मुंह अंधेरे
सोते हैं आंख अंधेरे
बीच के वक्त
बहाते हैं पसीना
सूरज की पहली किरण
नहीं है पहली पसन्द
अंतिम पसन्द भी
नहीं है चांदनी ।

नियति है
नियमित खटना
तिल-तिल घटना
हो भी कैसे
पहली और अंतिम
पसन्द किसी की
तपता सूरज
शीतल चांद !

पेट उठाता है
देखता है सूरज
लगाता है हाजरी
भूख सुलाती है
आंकती है चांदनी
तब पकती है बाजरी ।

शहर नहीं देखता
ऐसे दिन-रात
देखता ही नहीं
सूरज की पहली किरण
शीतल रात की चांदनी
कहानियों के अलावा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें