मजदूर और किसान
हर दिन
जागते हैं मुंह अंधेरे
सोते हैं आंख अंधेरे
बीच के वक्त
बहाते हैं पसीना
सूरज की पहली किरण
नहीं है पहली पसन्द
अंतिम पसन्द भी
हर दिन
जागते हैं मुंह अंधेरे
सोते हैं आंख अंधेरे
बीच के वक्त
बहाते हैं पसीना
सूरज की पहली किरण
नहीं है पहली पसन्द
अंतिम पसन्द भी
नहीं है चांदनी ।
नियति है
नियमित खटना
तिल-तिल घटना
हो भी कैसे
पहली और अंतिम
पसन्द किसी की
तपता सूरज
शीतल चांद !
पेट उठाता है
देखता है सूरज
लगाता है हाजरी
भूख सुलाती है
आंकती है चांदनी
तब पकती है बाजरी ।
शहर नहीं देखता
ऐसे दिन-रात
देखता ही नहीं
सूरज की पहली किरण
शीतल रात की चांदनी
कहानियों के अलावा ।
नियति है
नियमित खटना
तिल-तिल घटना
हो भी कैसे
पहली और अंतिम
पसन्द किसी की
तपता सूरज
शीतल चांद !
पेट उठाता है
देखता है सूरज
लगाता है हाजरी
भूख सुलाती है
आंकती है चांदनी
तब पकती है बाजरी ।
शहर नहीं देखता
ऐसे दिन-रात
देखता ही नहीं
सूरज की पहली किरण
शीतल रात की चांदनी
कहानियों के अलावा ।
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